संपादकीयः केंद्र सरकार के एक नोटिस के कारण महाराष्ट्र में 10 लाख अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति रुकी...रद्द किया जाए ये फैसला

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 29, 2022 03:51 PM2022-11-29T15:51:03+5:302022-11-29T15:52:13+5:30

 यह बात सच है कि हमारा देश सभी क्षेत्रों में लगातार प्रगति करता चला जा रहा है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश की आबादी का करीब 22 फीसदी हिस्सा अभी भी अक्षर ज्ञान से दूर है। शिक्षा पर अरबों-खरबों रुपए खर्च करने के बावजूद देश का सिर्फ एक राज्य केरल ही पूरी तरह साक्षर है। देश में सरकारी स्कूलों की हालत बहुत अच्छी नहीं है।

central government notice stop scholarship of 10 lakh minority students in Maharashtra | संपादकीयः केंद्र सरकार के एक नोटिस के कारण महाराष्ट्र में 10 लाख अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति रुकी...रद्द किया जाए ये फैसला

संपादकीयः केंद्र सरकार के एक नोटिस के कारण महाराष्ट्र में 10 लाख अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति रुकी...रद्द किया जाए ये फैसला

केंद्र सरकार के एक नोटिस के कारण महाराष्ट्र में दस लाख अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति का भुगतान रुक गया है। इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि जब फीस लगती ही नहीं है तो छात्रवृत्ति क्यों दी जाए। केंद्र सरकार मुस्लिम, बौद्ध, जैन, सिख तथा अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के रूप में एक हजार रुपए देती है। नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल पर छात्रवृत्ति के आवेदनों को रद्द करने का निर्देश शिक्षा संचालक कार्यालय को आ गया। इसमें कहा गया है कि कक्षा पहली से आठवीं तक के विद्यार्थियों को मुफ्त में शिक्षा प्रदान की जाती है। ऐसे में इन विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति की सुविधा नहीं दी जा सकती। केंद्र सरकार ने केवल 9वीं तथा 10वीं के विद्यार्थियों के छात्रवृत्ति आवेदन ही मंगवाए हैं। 

सरकार के इस फैसले से अल्पसंख्यक समुदायों के गरीब विद्यार्थियों के हितों को नुकसान पहुंचेगा। यह बात समझ के परे है कि अचानक यह पैमाना कैसे तय हो गया कि मुफ्त शिक्षा पाने वाले विद्यार्थी छात्रवृत्ति के पात्र नहीं हो सकते। केंद्र सरकार की यह योजना गरीब तबके के विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा हासिल करने के लिए प्रोत्साहित करने वाला एक कदम है। यह सरकार की महत्वपूर्ण कल्याणकारी योजना का हिस्सा है। केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रही है कि कोई बच्चा आर्थिक कारणों से शिक्षा से वंचित न रहे। इसलिए उसने शिक्षा को नि:शुल्क करने के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित किया कि शालेय सामग्री खरीदने में विद्यार्थियों को आर्थिक परेशानी न आए। इसीलिए सरकार प्रतिवर्ष एक हजार रुपए की छात्रवृत्ति अलग से प्रदान कर रही है। यह नि:शुल्क शिक्षा के साथ-साथ अलग से दी जाने वाली आर्थिक सुविधा है। यह ‘पढ़ेगा भारत, तभी तो आगे बढ़ेगा भारत’ के लक्ष्य को हासिल करने के सरकार के इरादे का महत्वपूर्ण अंग है। 

आजादी के बाद शिक्षा को लेकर कई सर्वेक्षण हुए। सबसे ज्यादा सर्वेक्षण इस बात को लेकर हुए कि विद्यार्थी प्राथमिक शिक्षा के बाद स्कूल क्यों छोड़ देते हैं। सर्वेक्षणों से यह तथ्य सामने आया कि आर्थिक कारणों से अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा देने में असफल हैं। सर्वेक्षणों से यह तथ्य भी सामने आया कि बीच में ही शिक्षा ग्रहण करना छोड़ देने वाले बच्चों में अल्पसंख्यक वर्ग के बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए अल्पसंख्यक विद्यार्थियों के लिए अलग से कई योजनाएं शुरू की गई हैं। केंद्र तथा राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर विभिन्न योजनाएं चलाती हैं। इनमें पोषक आहार देने से लेकर छात्रावास और उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति जैसी योजनाएं भी शामिल हैं। ये सुविधाएं नि:शुल्क शिक्षा से अलग हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों ने छात्रवृत्ति को मुफ्त शिक्षा से जोड़कर कोई पैमाना तय नहीं किया है। ऐसे में मुफ्त शिक्षा की आड़ लेकर अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति रोक देना बड़े आश्चर्य की बात है। अल्पसंख्यक बच्चों को प्रतिवर्ष वजीफा देने की योजना नई नहीं है। लंबे समय से यह योजना चल रही है। नौकरशाही में अचानक यह ज्ञान कहां से प्रकट हो गया कि फीस और छात्रवृत्ति का परस्पर गहरा संबंध है तथा मुफ्त शिक्षा का लाभ उठाने वाले बच्चे शिष्यवृत्ति पाने के हकदार नहीं हैं।

 यह बात सच है कि हमारा देश सभी क्षेत्रों में लगातार प्रगति करता चला जा रहा है लेकिन शिक्षा के क्षेत्र में अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद देश की आबादी का करीब 22 फीसदी हिस्सा अभी भी अक्षर ज्ञान से दूर है। शिक्षा पर अरबों-खरबों रुपए खर्च करने के बावजूद देश का सिर्फ एक राज्य केरल ही पूरी तरह साक्षर है। देश में सरकारी स्कूलों की हालत बहुत अच्छी नहीं है। शाला भवन जर्जर हैं, उनमें बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, विद्यार्थियों के मुकाबले शिक्षकों की संख्या भी बहुत कम है और सबसे बड़ी बात यह है कि सबको गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा नि:शुल्क मुहैया करवाने के लिए सरकार के पास आर्थिक संसाधनों की बेहद कमी है। ऐसे में सरकार उन वर्गों पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित कर रही है, जो आर्थिक कारणों से अपने बच्चों को स्कूल भेज नहीं पाते। मुफ्त शिक्षा एवं छात्रवृत्ति जैसे कदम सरकार के सर्वशिक्षा अभियान की बुनियाद को मजबूत करते हैं। अत: अल्पसंख्यक विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति रोकने के फैसले को तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।

Web Title: central government notice stop scholarship of 10 lakh minority students in Maharashtra

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