सीडीएस: बेहतर तालमेल से मजबूत होगी सेना, पढ़ें अवधेश कुमार का ब्लॉग

By अवधेश कुमार | Published: January 3, 2020 06:35 AM2020-01-03T06:35:58+5:302020-01-03T06:35:58+5:30

दुनिया की रक्षा तैयारियों को देखें तो निष्कर्ष यही निकलता है कि आने वाले समय में जो भी युद्ध होगा वह काफी सघन होगा किंतु वह ज्यादा लंबा नहीं चल सकता. एक साथ देश की पूरी ताकत उसमें झोंकी जाएगी. इसमें जिसके पास सेना के तीनों अंग समान रूप से सक्षम होंगे तथा इनके बीच बेहतर समन्वय होगा उसकी स्थिति मजबूत होगी.

CDS: Army will be strengthened by better coordination, read Awadhesh Kumar blog | सीडीएस: बेहतर तालमेल से मजबूत होगी सेना, पढ़ें अवधेश कुमार का ब्लॉग

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत। (फाइल फोटो)

सरकार द्वारा चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के पद पर जनरल बिपिन रावत की नियुक्ति से भारत के रक्षा क्षेत्न में एक नए युग की शुरुआत हुई है. सीडीएस का आविर्भाव रक्षा महकमे में बहुआयामी प्रभाव डालने वाला कदम है. रक्षा की दृष्टि से यह अत्यंत महत्वपूर्ण घटना है.

प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से सीडीएस की नियुक्ति की घोषणा की थी उसके बाद यह साफ हो गया था कि निकट भविष्य में ही कोई जनरल इस पद पर नियुक्त होगा. 24 सितंबर को मंत्रिमंडल की बैठक में इसे मंजूरी दे दी गई थी. 28 दिसंबर को सरकार ने सैन्य अधिनियम में बदलाव किया था. वास्तव में यह लंबे समय से रक्षा विशेषज्ञों की मांग को पूरा किए जाने का कदम है. प्रधानमंत्नी ने लाल किले से यही कहा था कि बदले हुए समय में हमें सेना के तीनों अंगों को समान रूप से विकसित करना होगा. तीनों का अपना महत्व है. इसी क्रम में यह भी आवश्यक है कि तीनों सेनाओं के बीच पूर्ण तालमेल हो. सीडीएस की भूमिका इसीलिए महत्वपूर्ण हो गई है.

दुनिया की रक्षा तैयारियों को देखें तो निष्कर्ष यही निकलता है कि आने वाले समय में जो भी युद्ध होगा वह काफी सघन होगा किंतु वह ज्यादा लंबा नहीं चल सकता. एक साथ देश की पूरी ताकत उसमें झोंकी जाएगी. इसमें जिसके पास सेना के तीनों अंग समान रूप से सक्षम होंगे तथा इनके बीच बेहतर समन्वय होगा उसकी स्थिति मजबूत होगी.

बड़ी रक्षा चुनौतियों से घिरे भारत जैसे देश के लिए तो यह अपरिहार्य है. जिन्हें 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना की हमारी सीमा में घुसपैठ और उसके बाद हुए युद्ध की पूरी कहानी पता है वे जानते हैं कि किस तरह उस दौरान थलसेना और वायुसेना के बीच मतभेद उभरे थे. युद्ध आरंभ होने के 22 दिन बाद सरकार को वायुसेना को शामिल होने का आदेश देना पड़ा था और तब तक काफी क्षति हो चुकी थी. इसका मूल कारण यही था कि तीनों सेनाओं के बीच रणनीतिक विमर्श का तालमेल तथा सरकार के साथ समन्वय बिठाने वाला अधिकारप्राप्त कोई पद नहीं था.

वास्तव में रक्षा महकमा तथा विशेषज्ञ इसकी मांग लंबे समय से कर रहे थे. 26 जुलाई को कारगिल युद्ध की समाप्ति के बाद 29 जुलाई 1999 को वाजपेयी सरकार ने दो समितियां गठित की थीं. इनमें एक कारगिल रिव्यू कमेटी यानी कारगिल समीक्षा समिति का गठन के. सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में तथा रक्षा मंत्नालय द्वारा विशेषज्ञों की समिति जनरल डी.बी. शेकाटकर की अध्यक्षता में गठित की गई थी. 7 जनवरी, 2000 को रिपोर्ट भी आ गई. दोनों समितियों ने उसी समय सीडीएस की सिफारिश की थी. इनमें इसकी आवश्यकता के साथ इसकी भूमिका का भी उल्लेख था. कारगिल समीक्षा समिति ने अपनी सिफारिशों में सीडीएस के साथ ही एक वाइस सीडीएस बनाने की सिफारिश भी की थी.

रिपोर्टो पर विचार करने के लिए तत्कालीन उपप्रधानमंत्नी लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में 2001 में मंत्रियों का एक समूह गठित हुआ जिसने रिपोर्ट को स्वीकार कर सीडीएस बनाने की अनुशंसा कर दी.

इसके बाद की भूमिका नौकरशाही के हाथ आ गई. वहां से इसमें अड़ंगा लगना आरंभ हो गया. यह तर्क दिया गया कि अगर तीनों सेनाओं की एक कमान बनाकर उसके शीर्ष पर किसी व्यक्ति को बिठा दिया गया तो सैन्य विद्रोह की संभावना बढ़ जाएगी. किंतु वाजपेयी इस पर अड़ गए. इसमें एक नई संरचना सामने आई. अक्तूबर, 2001 में हेडक्वार्टर इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (एचक्यूआईडीएस) बनाया गया. यह एक ऐसा संगठन बन गया जो 18 वर्ष से काम कर रहा था लेकिन इसका अलग से कोई प्रमुख तक नहीं रहा. वस्तुत: वीसीडीएस को चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ में तब्दील करते हुए चेयरमैन चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीआईएससी) का रूप दिया गया. तीन सेना प्रमुखों में से जो वरिष्ठ है उसे चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का अध्यक्ष बना दिया जाता था. लेकिन उसके पास कोई अधिकार नहीं था. वहां से रक्षा मंत्नी तक पत्नाचार होता था. रक्षा सचिव उसे फाइलों में रख दें या रक्षा मंत्नी तक ले जाएं एवं कार्रवाई हो, यह उनके अधिकार क्षेत्न में रहा है.

ध्यान रखने की बात है कि सीडीएस की नियुक्ति के बाद भी तीनों सेना प्रमुख विशेष मामलों को लेकर रक्षा मंत्नी को सलाह देते रहेंगे. सीडीएस की जिम्मेदारी और भूमिका देखने के बाद साफ हो जाता है कि अब सेना की ओर से आई सलाह फाइलों में दबी नहीं रहेगी. ज्यादातर मामलों में सीडीएस की भूमिका तीनों सेनाओं के बीच तालमेल की रहेगी. तालमेल का मतलब है कि उनके बीच जहां भी मतभेद होगा उसे भी दूर करने में सीडीएस भूमिका निभाएंगे.

इस तरह कहा जा सकता है कि सीडीएस के आविर्भाव के साथ सेनाओं की कार्यप्रणाली में काफी सुधार हो जाएगा. जब सीडीएस की नियुक्ति हो गई है तो सेना के तीनों प्रमुखों की भूमिका में भी थोड़ा बदलाव होगा. इसे थोड़ा और परिभाषित और उल्लेखित करने की जरूरत होगी. तीनों सैन्य प्रमुखों को सामान्य स्थिति में जवानों के प्रशिक्षण, संगठन और सैन्य साजो-सामान से सुसज्जित करने जैसे मूल काम पर फोकस करना चाहिए. इनके लिए भी सुविधा हो गई है कि ये जिस क्षण चाहें सीडीएस से बात कर अपना मंतव्य पहुंचा सकेंगे.

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