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Caste Census of India: पिछड़े लोगों की कोई जाति नहीं होती, हर जाति में पिछड़े और हर जाति में अगड़े हैं

By वेद प्रताप वैदिक | Updated: September 25, 2021 09:40 IST

भारत सरकार ने कहा है कि जनगणना करते समय अन्य पिछड़ी जातियों की जनगणना नहीं की जाएगी

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ठळक मुद्देमहाराष्ट्र सरकार ने अदालत की थी पिछड़ी जातियों की भी गणना की मांगकेंद्नेर ने कहा है कि जनगणना करते समय अन्य पिछड़ी जातियों की जनगणना नहीं की जाएगी अब तक सिर्फ अनुसूचित जातियों और कबीलों की गणना की गई

सर्वोच्च न्यायालय के एक प्रश्न के जवाब में भारत सरकार का यह कहना पूर्णतया तर्कसंगत है कि जनगणना करते समय अन्य पिछड़ी जातियों की जनगणना नहीं की जाएगी. महाराष्ट्र सरकार ने अदालत से कहा है कि वह केंद्र सरकार को यह निर्देश दे कि वह इस साल हो रही जनगणना में पिछड़ी जातियों की भी गणना करे.

महाराष्ट्र की शिवसेना और कांग्रेस की गठबंधन सरकार का तर्क यह है कि 2011 की जनगणना में सरकार ने एक आयाम जोड़ा था, जिसके अंतर्गत जातियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति पर आंकड़े इकट्ठे किए गए थे. सरकार ने वे आंकड़े उस वक्त जाहिर नहीं किए थे. उन्हें वह अब जाहिर करे. इस तर्क को रद्द करते हुए सरकार ने कहा है कि उस समय इकट्ठे किए गए आंकड़े इतने अजीबोगरीब थे कि उन्हें जाहिर करना उचित नहीं होता.

यह ठीक है कि अब तक सिर्फ अनुसूचित जातियों और कबीलों की गणना की गई है. जहां तक पिछड़ों की गणना का सवाल है, पहली बात तो यह है कि हर जाति के लोग अपने आप को पिछड़ा बताने के लिए तैयार हो जाते हैं, कारण है नौकरियों में आरक्षण. 

उसका नतीजा यह होना है कि किसी प्रदेश के एक जिले में जो जाति सवर्ण है, वही दूसरे प्रदेश के अन्य जिले में पिछड़ी है. अकेले महाराष्ट्र में जो हुआ, वही हमारे लिए बड़ा सबक है. महाराष्ट्र की आबादी 10 करोड़ 3 लाख है. उसमें से 1.17 करोड़ ने लिखाया कि उनकी कोई जाति नहीं है. 

1931 की जनगणना में जातियों की संख्या पूरे भारत में 4147 थी लेकिन 2011 की जनगणना में उनकी संख्या छलांग मारकर 46 लाख तक पहुंच गई. किसी भी व्यक्ति की जाति को निर्धारित करने का कोई निश्चित वैज्ञानिक पैमाना नहीं है. वह जो कह दे, वही सही है. 

सच्चाई तो यह है कि पिछड़ा, पिछड़ा होता है. उसकी कोई जाति नहीं होती. हर जाति में पिछड़े हैं और हर जाति में अगड़े हैं. इसीलिए जनगणना करने वाले बाबू लोग कभी-कभी बड़े विभ्रम में पड़ जाते हैं. वे देखते हैं कि गांवों के बड़े-बड़े जमींदार, जिनके बच्चे विदेशों में पढ़ रहे हैं, वह अपनी जाति के आधार पर अपने को पिछड़ों में शामिल करवा लेते हैं. 

सरकार ने 2011 में पिछड़ेपन का सर्वेक्षण करवाया था. उसमें जाति संबंधी जानकारी भी मांग ली जाती थी लेकिन 2010-11 में चले हमारे सर्वदलीय ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’आंदोलन ने इतना तगड़ा दबाव बनाया कि सरकार ने उन आंकड़ों को प्रकट ही नहीं किया. 

वर्तमान भाजपा सरकार का यह संकल्प स्वागत योग्य है कि वह जातीय जनगणना नहीं करवाएगी. महाराष्ट्र सरकार में शामिल सभी वर्तमान और पूर्व कांग्रेसियों को अपनी महान परंपरा का पालन करते हुए जातीय जनगणना का विरोध अवश्य करना चाहिए.

टॅग्स :सुप्रीम कोर्टमहाराष्ट्रCentral and State Government
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