Canada-India relations: कनाडा पड़ा नरम और मोदी हुए सख्त!

By हरीश गुप्ता | Updated: October 24, 2024 05:13 IST2024-10-24T05:13:52+5:302024-10-24T05:13:52+5:30

Canada-India relations: पीएम मोदी इस बात से बेहद परेशान हैं कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और हत्या से जुड़े भारतीय सरकारी अधिकारियों का नाम लिया.

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Highlightsपीएम मोदी ने इस मामले को गंभीरता से लेने का फैसला किया.संवेदनशील मुद्दों पर उसके साथ सभी खुफिया जानकारी साझा करते हैं.जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा के सदस्य नहीं हैं.

Canada-India relations: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर अमेरिकी धरती पर पन्नू की हत्या की साजिश में भारतीयों के शामिल होने के आरोपों पर अमेरिका को संतुष्ट करने के लिए प्रयास कर रहे हैं, तो उन्होंने पिछले वर्ष ब्रिटिश कोलंबिया में खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोपों पर कनाडा के खिलाफ अपना रुख कड़ा कर दिया है. बताया जाता है कि मोदी इस बात से बेहद परेशान हैं कि कनाडा के प्रधानमंत्री ने भारत की छवि को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की और हत्या से जुड़े भारतीय सरकारी अधिकारियों का नाम लिया.

चूंकि भारत हमेशा से ही कनाडा के प्रति नरम रहा है (1985 में कनिष्क बम विस्फोट को याद करें), इसलिए मोदी ने इस मामले को गंभीरता से लेने का फैसला किया. कनाडा भी कुछ हद तक अलग-थलग है, हालांकि ‘फाइव आइज’ वाले देश (अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया) सभी संवेदनशील मुद्दों पर उसके साथ सभी खुफिया जानकारी साझा करते हैं.

लेकिन कनाडा के प्रधानमंत्री ने हद पार कर दी जब उन्होंने ‘भारत सरकार’ के खिलाफ ठोस सबूतों के बजाय केवल ‘खुफिया जानकारी’ के आधार पर आरोप लगाए. अमेरिका समेत बाकी चार देश कनाडा के साथ दिखावटी वादा कर रहे हैं, क्योंकि हर कोई भारत के साथ व्यापार करने को उत्सुक है.

कनाडा जानता है कि उसकी धरती पर रहने वाले तीस लाख भारतीय प्रवासियों में से सभी जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी ऑफ कनाडा के सदस्य नहीं हैं. मोदी ने इस प्रवासी समुदाय में गहरी पैठ बना ली है. अब कनाडा सरकार दोस्ताना पहल कर रही है, क्योंकि कनाडा के विश्वविद्यालयों को भारतीय छात्रों के बिना आर्थिक रूप से टिके रहना मुश्किल हो रहा है.

कनाडा सरकार देश में बेरोजगारी और महंगाई के कारण बड़े पैमाने पर अशांति का सामना कर रही है. भारत ने ओटावा के साथ इस ताजा विवाद से वहां के भारतीय प्रवासियों पर पड़ने वाले असर की आशंकाओं को दूर किया, जब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि यह मुद्दा एक खास राजनीति तक सीमित है. यह सामने आया है कि भारत सरकार ने यहां चाणक्यपुरी में कनाडाई उच्चायोग को दिए गए बड़े पैमाने पर पुलिस सुरक्षा कवर को वापस ले लिया है और उन्हें बताया है कि उन्हें अपने निजी गार्ड रखने होंगे.

चुपचाप चुकाते हैं कीमत

देश की शीर्ष जासूसी खुफिया एजेंसी, रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के सभी अधिकारी चुप और अदृश्य रहते हैं. अगर उन्हें पुरस्कृत किया जाता है तो यह पर्दे के पीछे और बिरादरी की चारदीवारी के भीतर किया जाता है और अगर वे पीड़ित होते हैं, तो उन्हें पीड़ा भी चुपचाप ही सहनी पड़ती है.

रॉ के पिछले प्रमुख, जिन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया, वे 1984 बैच के पंजाब कैडर के आईपीएस अधिकारी सामंत कुमार गोयल थे. पंजाब में आतंक के खिलाफ लड़ाई के उनके प्रभावशाली रिकॉर्ड को देखते हुए मोदी सरकार ने उन्हें रॉ का प्रमुख बनाया और जून 2023 में उन्होंने पद छोड़ दिया.

उन्होंने रॉ प्रमुख के रूप में सराहनीय काम किया था और बताया जाता है कि उन्होंने पाकिस्तान की धरती से संचालित आतंकी मॉड्यूल की पहचान करने और आतंकी नेटवर्क को नष्ट करने में सरकार की ‘सक्रिय नीति’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उन्होंने पूरे पाकिस्तान में मुखबिरों का एक नेटवर्क बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिन्हें अतीत में लगभग खत्म कर दिया गया था. वे शायद एकमात्र पूर्व रॉ प्रमुख हैं जिन्हें गृह मंत्रालय ने उनकी जान को कथित खतरे के कारण सेवानिवृत्ति के बाद जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की थी.

सरकार के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि सामंत गोयल को उनके जबरदस्त योगदान के कारण संवैधानिक पद से पुरस्कृत किया जाना था. लेकिन कनाडा और अमेरिका में एजेंसी से कथित तौर पर जुड़े कुछ मॉड्यूल की भूमिका को लेकर विवाद छिड़ गया. हालांकि अभी तक कोई सबूत सामने नहीं आया है, लेकिन इसकी वजह से गोयल को गुमनामी में रहना पड़ रहा है.

कांग्रेस की राज्यसभा के लिए चुनौती

हरियाणा की पराजय के बाद, महाराष्ट्र और झारखंड में कांग्रेस और उसके सहयोगियों के लिए जीत महत्वपूर्ण है. कई कारणों से यह मुख्य विपक्षी दल के लिए करो या मरो की लड़ाई हो सकती है और सबसे प्रमुख कारण राज्यसभा में इसकी प्रमुख भूमिका है. कांग्रेस की विशेष रूप से महाराष्ट्र में हार से राज्यसभा में हलचल पैदा हो सकती है, जहां यह पहले से ही कमजोर है क्योंकि इसने अतीत में अपने कई वरिष्ठ नेताओं को दलबदल करते देखा है. कांग्रेस के पास वर्तमान में 27 सांसद हैं और मल्लिकार्जुन खड़गे के पास विपक्ष के नेता पद को बनाए रखने के लिए सिर्फ दो और की जरूरत है.

यदि पार्टी महाराष्ट्र में हार जाती है, तो संभावना है कि महाराष्ट्र और यहां तक कि कर्नाटक से आने वाले इसके कुछ सांसद कांग्रेस छोड़ सकते हैं. भाजपा ने पहले ही ऐसे पांच राज्यसभा सांसदों की पहचान कर ली है जो कमजोर हैं. दिल्ली में कांग्रेस की हालत खराब है जहां विधानसभा चुनाव होने हैं और वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बिहार में भी हालत बहुत अच्छी नहीं है.

इन राज्यों में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं. दूसरी बात, टीम-राहुल अपने तरीके से व्यवहार करना जारी रखे हुए है और राहुल गांधी ने भी अपनी कार्यशैली नहीं बदली है क्योंकि वे भ्रम में हैं. भ्रम में रहने वाला व्यक्ति ऐसी बातों पर विश्वास करता है जो संभवतः सच नहीं हो सकती हैं.

नीतीश का चूका निशाना !

हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के शपथ ग्रहण समारोह में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अनुपस्थिति ने कई लोगों को चौंका दिया. कारण यह कि नीतीश एनडीए के एकमात्र ऐसे मुख्यमंत्री थे जो इस समारोह में शामिल नहीं हुए, हालांकि प्रधानमंत्री मोदी व्यक्तिगत रूप से इस समारोह की निगरानी कर रहे थे.

अब पता चला है कि नीतीश कुमार ने व्यक्तिगत रूप से मोदी को फोन किया था और यात्रा करने में असमर्थता के लिए ‘कुछ कारण’ बताए थे. हालांकि नीतीश पटना में दशहरा के दौरान ‘रावण वध’ समारोह में शामिल हुए थे, लेकिन वे निशाना साधने में चूक गए, जिससे उनके स्वास्थ्य की वास्तविक स्थिति का पता चला. नीतीश कुमार को रावण के पुतले पर तीर चलाना था ताकि आतिशबाजी शुरू हो सके

वह आग की लपटों में घिर जाए. इस अवसर पर राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर भी मौजूद थे. लेकिन कुमार गड़बड़ा गए और उनका धनुष और बाण जमीन पर गिर गया. कुमार के तीर के बिना ही पुतला जल गया. जाहिर है, उनका स्वास्थ्य ठीक होने की पहले की रिपोर्टें सही नहीं थीं, और ऐसा महसूस किया जा रहा है कि यह नीतीश के मनोभ्रंश से पीड़ित होने का एक और उदाहरण है.

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