वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग : बुद्ध और कबीर की पुण्यभूमि में
By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 15, 2018 05:05 PM2018-10-15T17:05:13+5:302018-10-15T17:05:13+5:30
मेरे पिछले दो दिन ऐसे बीते, जो जीवन में हमेशा याद रहेंगे। मैंने महात्मा बुद्ध का जन्म स्थान, लुंबिनी देखा। उ
मेरे पिछले दो दिन ऐसे बीते, जो जीवन में हमेशा याद रहेंगे। मैंने महात्मा बुद्ध का जन्म स्थान, लुंबिनी देखा। उनका परिनिर्वाण-स्थल कुशीनगर देखा। संत कबीर के निर्वाण स्थल मगहर के भी दर्शन किए। यहां के भाजपा सांसद जगदंबिका पाल का निमंत्रण था।
महात्मा बुद्ध का जन्म लुंबिनी में 2500 साल पहले हुआ था। तब यह स्थल भारत में ही था लेकिन अब नेपाल में है। मैं नेपाल कई बार गया लेकिन काठमांडू से लुंबिनी का रास्ता 10 घंटे का है। मैं चीन, जापान, कोरिया, श्रीलंका, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान और मध्य एशिया के राष्ट्रों में लगभग सभी बौद्ध क्षेत्रों को देख चुका हूं लेकिन लुंबिनी और कुशीनगर में मुङो जो रोमांच हुआ, वैसा मुङो सिर्फ अजमेर में महर्षि दयानंद के कार्य-स्थल को देखकर हुआ था।
इन दोनों महापुरुषों का कोई जोड़ीदार मुङो सारे विश्व में दिखाई नहीं पड़ता, हालांकि दोनों दार्शनिक दृष्टि से दो परस्पर विरोधी सिरों पर खड़े दिखाई पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के छात्र के नाते मैं अस्तित्ववाद पर कितने ही गंभीर तर्क करता रहा लेकिन अब मुङो सृष्टि के निमित्त कारण (सृष्टिकर्ता) पर शक होने लगा है।
एक सम्मेलन में मैंने यह भी कह दिया कि मनुष्यों को जैसा ईश्वर पसंद आता है, वैसा ही वे गढ़ लेते हैं। सृष्टि स्वचालित है। यह बुद्ध की दृष्टि है। मैं सोचता हूं कि वे सृष्टिकर्ता को नहीं मानते हैं तो भी क्या फर्क पड़ता है? उसकी जगह उनके भक्तों ने बुद्ध को ही भगवान मान लिया है। कबीर ने मगहर में प्राण त्यागे, क्योंकि वे इस अंधविश्वास को चुनौती देना चाहते थे कि जो काशी में मरे, वह स्वर्ग जाता है और जो मगहर में मरे, वह नरक जाता है।
कबीर जैसे क्र ांतिकारी चिंतक दुनिया में कितने हुए हैं? कबीर के सैकड़ों दोहे मुङो बचपन से ही कंठस्थ हैं। कभी वे मेरी लालटेन बनते हैं, कभी मेरा कुतुबनुमा, कभी मेरी बांसुरी, कभी मेरा मरहम और कभी मेरी ठंडाई!