ब्लॉग: दुनिया में प्रेम जैसी नहीं होती है कोई और शक्ति
By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: February 14, 2024 11:11 AM2024-02-14T11:11:32+5:302024-02-14T11:15:23+5:30
कहा जाता है कि प्रेम अंधा होता है, लेकिन प्रेम अंधा नहीं बल्कि इसमें इतनी रोशनी है कि मानव सत्य से परिचित हो जाता है।
कहा जाता है कि प्रेम अंधा होता है, लेकिन प्रेम अंधा नहीं बल्कि इसमें इतनी रोशनी है कि मानव सत्य से परिचित हो जाता है। दैहिक अस्तित्व से ऊपर उठकर संसार के सभी प्राणियों के प्रति करुणा, कल्याण की भावना, शुभकामनाएं रखना प्रेम का व्यापक रूप है। प्रेम हृदय की श्रेष्ठतम शक्ति है।
सच्चा प्रेम अपने को समर्पित करता है। जब दिया जलता है तो यह नहीं देखता कि किस किस को प्रकाश देना है, जब फूल खिलता है तो वह भी नहीं देखता कि किसको खुशबू देनी है। उसी प्रकार जब प्रेम सच्चा होता है तो यह नहीं देखता कि किसे प्रेम करना है और किसे नहीं। प्रेम है ही प्रेम, तब जब यह सर्व के प्रति हो। केवल अपने जीवन से प्रेम करना प्रेम का संकीर्ण रूप है।
प्रेम को समर्पित वैलेंटाइन डे रोम के संत वैलेंटाइन की याद में मनाया जाता है। तीसरी सदी में रोम के अत्याचारी राजा क्लॉडियस का मानना था कि अकेला सिपाही एक शादीशुदा सिपाही के मुकाबले युद्ध के मैदान में अधिक उचित और प्रभावशाली बन सकता है इसलिए उसने सिपाहियों की शादियों पर पाबंदी लगा दी थी। संत वैलेंटाइन ने इस नाइंसाफी का विरोध करते हुए सिपाहियों की गुप्त तरीके से शादियां करवाईं जिसके फलस्वरूप उन्हें मौत की सजा सुनाई गई।
प्रेम को समर्पित यह पर्व संदेश देता है कि प्रेम में अनेक शक्तियां होती हैं। प्रेम एक सुगंध है जो चित्त को प्रसन्न रखता है, प्रेम इंद्रधनुष है, प्रेम मिठास है इसका जितना भी स्वाद लो, बढ़ता जाता है. प्रेम एक पूजा है जो परमात्मा के करीब लाता है.।प्रेम में अनेक गुण समाए हुए हैं जैसे त्याग, सहनशीलता, शुभकामना, दया, ममता आदि। प्रेम का सेवा से निकट का संबंध है, प्रेमरहित सेवा फलीभूत नहीं होती।
आज हर चीज का बाजारीकरण होने के कारण प्रेम का स्वरूप भी विकृत होता जा रहा है। स्वार्थ, लालच, भोग वासना, आडंबर, आकर्षण आदि प्रेम के पर्याय बन गए हैं इसलिए वैलेंटाइन डे पर महंगे उपहार, चॉकलेट, फूल दिखावटी सामान लेने की होड़ सी लगी रहती है। प्रेम को प्रदर्शन की वस्तु मान लिया गया है। यह संक्रमण तेजी से बढ़ता जा रहा है इसलिए कुछ संगठन इसका विरोध करते हैं। अगर प्रेम में वासना, बुरी भावना, स्वार्थ, अपेक्षा हो तो वह प्रेम नहीं है।
सच्चा प्रेम मर्यादित, स्वानुशासित होता है। मनुष्य के कर्म सुंदर हो जाते हैं। किसी कर्म में शांति, किसी में शक्ति और किसी में ज्ञान की आवश्यकता होती है लेकिन प्रेम तो हर कर्म में चाहिए तभी वह कर्म सुंदर कहलाएगा। कहा जाता है यदि सुख में कोई याद आए तो समझो हम उसे प्रेम करते हैं और दुख में कोई याद आए तो वह हमसे प्रेम करते हैं। हम सभी को दुख में परमात्मा ही याद आते हैं क्योंकि वे ही हमसे सही मायने में प्रेम करते हैं।