ब्लॉग: आज भी प्रासंगिक है स्वामी दयानंद सरस्वती का जीवन दर्शन
By योगेश कुमार गोयल | Published: February 12, 2024 10:18 AM2024-02-12T10:18:30+5:302024-02-12T10:23:31+5:30
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती देशभक्त, समाज सुधारक, मार्गदर्शक और आधुनिक भारत के महान चिंतक थे।
भारत की पावन धरा पर अनेक समाज सुधारकों, देशभक्तों, महापुरुषों और महात्माओं ने जन्म लिया है, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन देश के प्रति न्यौछावर कर दिया। आर्य समाज के संस्थापक के रूप में स्वामी दयानंद सरस्वती भी ऐसे ही देशभक्त, समाज सुधारक, मार्गदर्शक और आधुनिक भारत के महान चिंतक थे, जिन्होंने न केवल ब्रिटिश सत्ता से जमकर लोहा लिया बल्कि अपने कार्यों से समाज को नई दिशा और ऊर्जा भी प्रदान की। 1857 की क्रांति में स्वामी दयानंद सरस्वती का अमूल्य योगदान था।
स्वामी दयानंद का जन्म गुजरात के टंकारा में 12 फरवरी 1824 को हुआ था। परिवार की भगवान शिव में गहरी आस्था होने तथा मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण स्वामी दयानंद का बचपन का नाम उनके माता-पिता ने मूलशंकर रखा था। जाति से ब्राह्मण स्वामीजी ने अपने कर्मों से ‘ब्राह्मण’ शब्द को परिभाषित करते हुए बताया कि ज्ञान का उपासक होने के साथ-साथ अज्ञानी को ज्ञान देने वाला दानी ही ब्राह्मण होता है।
स्वामी दयानंद का बचपन बहुत अच्छा बीता लेकिन उनके जीवन में घटी एक घटना ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि वे 21 वर्ष की आयु में ही अपना घर-बार छोड़कर आत्मिक एवं धार्मिक सत्य की तलाश में निकल पड़े और संन्यासी बन गए। जीवन में ज्ञान की तलाश में वे स्वामी विरजानंद से मिले, जिन्हें अपना गुरु मानकर उन्होंने मथुरा में वैदिक तथा योग शास्त्रों के साथ ज्ञान की प्राप्ति की. 1845 से 1869 तक कुल 25 वर्षों की अपनी वैराग्य यात्रा में उन्होंने कई प्रकार के दैविक क्रियाकलापों के बीच विभिन्न प्रकार के योगों का भी गहन अभ्यास किया।
देश के स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। वेदों का प्रचार-प्रसार करने के साथ-साथ उनकी महत्ता लोगों तक पहुंचाने तथा समझाने के लिए उन्होंने देशभर में भ्रमण किया। जीवनपर्यंत वेदों, उपनिषदों का पाठ करने वाले स्वामीजी ने पूरी दुनिया को इस ज्ञान से लाभान्वित किया। उनकी किताब ‘सत्यार्थ प्रकाश’ आज भी दुनियाभर में अनेक लोगों के लिए मार्गदर्शक साबित हो रही है।
वेदों को सर्वोच्च मानने वाले स्वामी दयानंद ने वेदों का प्रमाण देते हुए हिंदू समाज में फैली कुरीतियों और अंधविश्वासों का डटकर विरोध किया। जातिवाद, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने में उनका योगदान उल्लेखनीय है, इसीलिए उन्हें ‘संन्यासी योद्धा’ भी कहा जाता है। दलित उद्धार तथा स्त्रियों की शिक्षा के लिए भी उन्होंने कई आंदोलन किए। सभी धर्मों में फैली बुराइयों और अंधविश्वासों का उन्होंने जोरदार खंडन किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव कल्याण, धार्मिक कुरीतियों की रोकथाम तथा वैश्विक एकता के प्रति समर्पित कर दिया।