ब्लॉग: संसद की सुरक्षा बढ़े, पर दर्शकों को न हो दिक्कत
By अवधेश कुमार | Published: December 15, 2023 11:10 AM2023-12-15T11:10:24+5:302023-12-15T11:12:13+5:30
संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही मजबूत है। प्रत्येक सत्र के पहले सुरक्षा एजेंसियां सुरक्षा समीक्षा करती हैं। तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है। परिसर के बाहर दिल्ली पुलिस का सुरक्षा प्रबंध है और अंदर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की जिम्मेवारी रहती है।
नई दिल्ली: संसद के अंदर और बाहर की घटना ने पूरे देश को विस्मित किया है। संसद में लोकसभा के अंदर दो व्यक्तियों का कूदना, परिसर के बाहर नारा लगाना, पीला धुआं छोड़ना निश्चित रूप से संपूर्ण देश के लिए चिंता का विषय है। केंद्रीय लोकसभा सचिवालय के अनुरोध पर गृह मंत्रालय ने घटना की जांच का आदेश दे दिया है। सीआरपीएफ के महानिदेशक अनीश दयाल सिंह की अध्यक्षता वाली जांच समिति में सुरक्षा एजेंसियों के सदस्य और विशेषज्ञ शामिल होंगे तो अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा करनी चाहिए। किंतु यह ऐसी घटना नहीं है जिसकी अनदेखी की जाए या जिसको हल्का मान लिया जाए।
जैसा हम जानते हैं, सदन के भीतर कोई दर्शक तभी जा सकता है जब किसी सांसद की सिफारिश हो। इसके लिए विजिटर फार्म होता है जिसमें पूरी जानकारी भरनी होती है और उसमें सांसद को हस्ताक्षर करना होता है। संसद भवन की सुरक्षा व्यवस्था पहले से ही मजबूत है। प्रत्येक सत्र के पहले सुरक्षा एजेंसियां सुरक्षा समीक्षा करती हैं। तीन स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था है। परिसर के बाहर दिल्ली पुलिस का सुरक्षा प्रबंध है और अंदर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की जिम्मेवारी रहती है। मुख्य भवन की सुरक्षा पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस यानी संसद सुरक्षा सेवा के पास होती है। यह पूरे परिसर पर दृष्टि रखती है। यही नहीं परिसर में प्रवेश करने से पहले किसी भी विजिटर को कई चरणों की जांच से गुजरना पड़ता है।
संसद के दोनों सदनों में दर्शकों के लिए दीर्घा है कोई भी आम व्यक्ति सदन की कार्यवाही देख सकता है। पास बनाने के लिए संबंधित व्यक्ति को सांसद का सिफारिशी पत्र और आधार कार्ड या फिर कोई दूसरा पहचान पत्र देना होता है। मोबाइल फोन भी रिसेप्शन पर ही रखवा लिया जाता है। वहां से लोकसभा में और दर्शक दीर्घा में जाने तक तीन जांच होती है। आप एक कलम तक अंदर नहीं ले जा सकते। पहले विजिटर को पास एक घंटे के लिए दिया जाता था लेकिन बाद में इसे घटाकर 45 मिनट कर दिया गया था। इन्होंने पहली पंक्ति में ही अपने लिए बैठने की व्यवस्था की. जब पीछे के दर्शकों का समय पूरा हुआ, वो जाने लगे तब इनमें से एक अंदर कूदा, दूसरा लटका और फिर जो कुछ हुआ वह हमारे सामने आ चुका है।
जांच के बाद इसके पीछे का षड्यंत्र सामने आएगा। पर ऐसा माहौल न बना दिया जाए कि आम लोगों को दर्शक के रूप में भी संसद भवन को देखने के रास्ते बंद हो जाएं। किसी एक घटना का मतलब यह नहीं कि सारे दर्शक संदिग्ध ही होंगे। सुरक्षा मजबूत करिए और उसके साथ-साथ देश का वातावरण ऐसा बनाइए कि पक्ष और विपक्ष की लड़ाई लोकतांत्रिक सहमति और असहमति की हो, नफरत और दुश्मनी की नहीं। नफरत और दुश्मनी की राजनीति से ही इस तरह की भयानक घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है।