शोभना जैन का ब्लॉग: ईरान की अमेरिकी घेराबंदी में फंसा भारत
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 27, 2019 07:16 AM2019-04-27T07:16:13+5:302019-04-27T07:16:13+5:30
अगर यहां भारत की बात करें तो वह जानता है कि अमेरिका की ही तरह ईरान भी उसका मित्न देश है, दोनों के साथ उसके सामरिक रिश्ते हैं और हकीकत यही है कि दोनों के साथ खास रिश्तों के अलग-अलग पहलू हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान से तेल खरीदने पर भारत समेत आठ देशों को दी गई छूट आगे न बढ़ाने के अल्टीमेटम से भारत एक पेचीदा संकट में घिर गया है। भारत ने हालांकि ट्रम्प के अल्टीमेटम के बाद संकेत दिया कि वह ईरान से तेल नहीं खरीदेगा लेकिन फिलहाल उसने साफ तौर पर इस आशय की साफ घोषणा भी नहीं की है, अलबत्ता कहा है कि धीरे-धीरे वह ईरान से तेल खरीदना बिल्कुल बंद कर जीरो कर देगा।
हालांकि साथ ही उसने यह भी कहा कि आगामी दो मई को इस छूट की समाप्ति के बाद की स्थिति से निबटने के लिए वह समुचित तौर पर तैयार है। ऐसे में जबकि भारत के तेल के एक अन्य प्रमुख आयातक वेनेजुएला पर भी अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के चलते भारत का वेनेजुएला से तेल का आयात भी (लगभग 6।7 प्रतिशत) कम होता जा रहा है और अमेरिका ईरान की तरह ही विश्व समुदाय से वेनेजुएला से तेल नहीं खरीदने का दबाव बना रहा है या यूं कहें कि धमकी दे रहा है, स्थिति चिंताजनक है। इस नई स्थिति में एक और अहम बात गौर करने लायक है कि पिछले तीन वर्षो में ईरान से भारत के लिए तेल आयात बढ़ा है, जो कि सऊदी अरब के बाद भारत का खनिज तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है। ऐसे में भारत के पास क्या विकल्प है?
अगर यहां भारत की बात करें तो वह जानता है कि अमेरिका की ही तरह ईरान भी उसका मित्न देश है, दोनों के साथ उसके सामरिक रिश्ते हैं और हकीकत यही है कि दोनों के साथ खास रिश्तों के अलग-अलग पहलू हैं। वास्तव में ईरान के परमाणु कार्यक्र म से क्षुब्ध अमेरिका ने नवंबर 2018 में 180 दिनों की ये छूट भारत, चीन, इटली, ग्रीस, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान और तुर्की को दी थी। अब इसकी समय सीमा 2 मई को खत्म हो रही है। तुर्की और चीन जैसे देशों ने जहां अमेरिका के इस एकतरफा फैसले का खुल कर विरोध किया है, वहीं भारत ने सतर्कता बरतते हुए भविष्य में इस पेचीदा स्थिति से निकलने के लिए फिलहाल बीच का रास्ता निकालने की राह बचा रखी है ताकि समस्या का निराकरण ऐसे हो कि उसके हित भी बने रहें और ऊर्जा सुरक्षा की स्थिति भी ठीक बनी रहे।
सऊदी अरब में भारत के पूर्व राजदूत व पेट्रोलियम मंत्नालय में अतिरिक्त सचिव रह चुके तलमीज अहमद ने अमेरिका के इस कदम की कड़े शब्दों में आलोचना करते हुए कहा कि विश्व बिरादरी के सम्मुख ट्रम्प प्रशासन की इस ब्लैकमेलिंग से भारी अनिश्चितता व्याप्त हो गई है, तेल की कीमतें तो बढ़ेंगी ही। उन्होंने कहा हमारे अपने राष्ट्रीय हित, ऊर्जा सुरक्षा की स्थिति हमारी प्राथमिकता है। भारत के सम्मुख सभी विकल्प खुले हुए हैं। उन्हें लगता है भारत सरकार इस मामले पर सैद्धांतिक रुख अमेरिकी सरकार के आगे रखेगी कि उस पर यह नियम इस तरह से नहीं लादा जाए। उनका मानना है, भारत के लिए यह स्थिति संकट की जरूर है, लेकिन इससे निबटने के लिए हम रास्ते भी खोज लेंगे।