प्रो.संजय द्विवेदी का ब्लॉग: आरएसएस के नए सरकार्यवाह के सामने हैं कई चुनौतियां

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: March 22, 2021 12:50 IST2021-03-22T12:35:26+5:302021-03-22T12:50:07+5:30

संघ की वैचारिक आस्था को जानने वाले जानते हैं कि संघ में व्यक्ति की जगह ‘विचार और ध्येयनिष्ठा’ ज्यादा बड़ी चीज है. बावजूद इसके जब उनकी जगह दत्तात्नेय होसबले ले रहे हैं, तब यह देखना जरूरी है कि यहां से अब संघ के सामने क्या लक्ष्य पथ होगा और होसबले इस महापरिवार को क्या दिशा देते हैं.

Blog of Prof. Sanjay Dwivedi: Many challenges are facing the new Sarkaryavah of RSS. | प्रो.संजय द्विवेदी का ब्लॉग: आरएसएस के नए सरकार्यवाह के सामने हैं कई चुनौतियां

सांकेतिक तस्वीर (फाइल फोटो)

संघ के सरकार्यवाह के रूप में 12 साल का कार्यकाल पूरा कर जब भैयाजी जोशी विदा हो रहे हैं, तब उनके पास एक सुनहरा अतीत है, सुंदर यादें हैं और असंभव को संभव होता देखने का सुख है.

केंद्र में अपने विचारों की सरकार का दो बार सत्ता में आना शायद उनके लिए पहली खुशी न हो किंतु राम मंदिर का निर्माण और धारा 370 दो ऐसे सपने हैं, जिन्हें आजादी के बाद संघ ने सबसे ज्यादा चाहा था और वे सच हुए.

संघ की वैचारिक आस्था को जानने वाले जानते हैं कि संघ में व्यक्ति की जगह ‘विचार और ध्येयनिष्ठा’ ज्यादा बड़ी चीज है. बावजूद इसके जब उनकी जगह दत्तात्नेय होसबले ले रहे हैं, तब यह देखना जरूरी है कि यहां से अब संघ के सामने क्या लक्ष्य पथ होगा और होसबले इस महापरिवार को क्या दिशा देते हैं.

अंग्रेजी में स्नातकोत्तर, आधुनिक विचारों के वाहक, जेपी आंदोलन के बरास्ते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता रहे होसबले ने जब 13 साल की आयु में शाखा जाना प्रारंभ किया होगा, तब उन्हें शायद ही यह पता रहा होगा कि यह विचार परिवार एक दिन राष्ट्र जीवन की दिशा तय करेगा और उसके नायकों में वे एक होंगे.

आपातकाल में 16 महीने जेल में रहे कर्नाटक के शिमोगा जिले के निवासी दत्तात्रेय होसबले भी यह जानते हैं कि इतिहास की इस घड़ी में उनके संगठन ने उन पर जो भरोसा जताया है, उसकी चुनौतियां विलक्षण हैं. उन्हें पता है कि यहां से उन्हें संगठन को ज्यादा आधुनिक और ज्यादा सक्रिय बनाते हुए उस ‘नए भारत’ के साथ तालमेल करना है जो एक वैश्विक महाशक्ति बनने के रास्ते पर है.

कोरोना जैसे संकट में हारकर बैठने के बजाय उन्हें अपने कार्यकर्ताओं में वह आग फूंकनी है जिससे वे नई सदी की चुनौतियों को जिम्मेदारी से वहन कर सकें. 1992 के कानपुर विद्यार्थी परिषद के अधिवेशन में जब वे संघ के वरिष्ठ प्रचारक मदनदास देवी से परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्नी का दायित्व ले रहे थे, उसी दिन यह तय हो गया था कि वे एक दिन देश का वैचारिक नेतृत्व करेंगे.

उसके बाद संघ के बौद्धिक प्रमुख और अब सरकार्यवाह के रूप में उनकी पदस्थापना इस बात का प्रतीक है कि परंपरा और सातत्य किस तरह किसी विचार आधारित संगठन को गढ़ते हैं. देश की आजादी के अमृत महोत्सव वर्ष में उनका संगठन शीर्ष पर होना कुछ कहता है. इसके मायने वे समझते हैं.

सत्ता से मर्यादित दूरी रखते हुए वे उससे संवाद नहीं छोड़ते और अपना लक्ष्य नहीं भूलते. वे लोकजीवन में गहरे धंसे हुए हैं. वे स्वयं दक्षिण भारत से आते हैं, पूर्वोत्तर उनकी कर्मभूमि रहा है, असम की राजधानी गुवाहाटी में रहते हुए वे वहां के लोकमन की थाह लेते रहे हैं. पटना और लखनऊ में वर्षो रहते हुए उन्होंने हिंदी हृदय प्रदेश की भी चिंता की है.
देश की युवा और छात्न शक्ति के बीच काम करते हुए उन्होंने उनके मन की थाह ली है.

वे नई पीढ़ी से संवाद करना जानते हैं. वे छात्र राजनीति के रास्ते समाज नीति में आए हैं इसलिए उनकी रेंज और कवरेज एरिया बड़ा है. संघ के शिखर पदों पर रहते हुए वे देश के शिखर बुद्धिजीवियों, कलाकारों, विचारकों, साहित्य, संगीत, पत्नकारिता और सिनेमा की दुनिया के लोगों से संवाद रखते रहे हैं. इन बौद्धिक संवादों ने उनकी चेतना को ज्यादा सरोकारी और ज्यादा समावेशी बनाया है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक खास परिपाटी है. संगठन स्तर पर वहां कोई चुनौती नहीं है. वह अपने तरीके से चलता है और आगे बढ़ता जाता है. किंतु दत्तात्रेय होसबले का नेतृत्व उसे ज्यादा समावेशी, ज्यादा सरोकारी और ज्यादा संवेदनशील बनाएगा और वे अपने स्वयंसेवकों में वही आग फूंक सकेंगे जिसे लेकर वे शिमोगा के एक गांव से
विचारयात्रा के शिखर तक पहुंचे हैं. उनका यहां पहुंचना इस भरोसे का भी प्रमाण है कि ध्येयनिष्ठा से क्या हो सकता है.

 

Web Title: Blog of Prof. Sanjay Dwivedi: Many challenges are facing the new Sarkaryavah of RSS.

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