ब्लॉग: पिघलते ग्लेशियरों की निगरानी जरूरी

By निशांत | Published: October 10, 2023 03:36 PM2023-10-10T15:36:35+5:302023-10-10T15:38:02+5:30

साल 2021 में एक अध्ययन से पता चला था कि दक्षिण लोनाक झील का आकार गंभीर रूप से बढ़ चुका है। इस अध्ययन में यह भी कहा गया था कि अब झील भारी बारिश जैसे चरम मौसम के प्रति संवेदनशील हो गई है।

Blog Monitoring of melting glaciers necessary flood in sikkim | ब्लॉग: पिघलते ग्लेशियरों की निगरानी जरूरी

सिक्किम बाढ़ का सामना कर रहा है

Highlightsसिक्किम में दक्षिण लोनाक झील पर बहुत भारी बारिश हुईझील के पानी ने चुंगथांग बांध को तोड़ दिया और इसके बाद तबाही आई फिलहाल चालीस से ज्यादा लोगों की मौत की खबर है

नई दिल्ली: पिछले दिनों सिक्किम में दक्षिण लोनाक झील पर बहुत भारी बारिश हुई। इसके चलते झील के पानी ने अपना किनारा छोड़ दिया। सब कुछ इतना अचानक हुआ कि झील के पानी ने चुंगथांग बांध को तोड़ दिया और इसके बाद तबाही का ऐसा दौर आया कि फिलहाल चालीस से ज्यादा लोगों की मौत की खबर है, तमाम लोग गायब हैं, अनगिनत लोग चोटिल हैं, और सिक्किम के कई हिस्सों में बाढ़ आ चुकी है।

मौसम विज्ञानियों के अनुसार, क्षेत्र में ऐसी भीषण बारिश के लिए मौसम की स्थिति पूरी तरह से अनुकूल थी। इसकी वजह थी आस-पास कम दबाव के क्षेत्र का होना। लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन ने भी निश्चित तौर से इस बरसात को इतना भीषण बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

दरअसल साल 2021 में एक अध्ययन से पता चला था कि दक्षिण लोनाक झील का आकार गंभीर रूप से बढ़ चुका है। इस अध्ययन में यह भी कहा गया था कि अब झील भारी बारिश जैसे चरम मौसम के प्रति संवेदनशील हो गई है। अब क्योंकि हम यह अनुमान नहीं लगा सकते कि ग्लेशियर में बाढ़ कब आएगी, इसलिए ऐसी किसी बाढ़ के लिए तैयार रहना ही हमारे पास एकमात्र विकल्प है। जरूरत है उचित आपदा जोखिम न्यूनीकरण योजना और क्षति नियंत्रण की।

स्थिति की गंभीरता समझाते हुए ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. फारूक आजम कहते हैं, "साल 2021 में भविष्यवाणी की गई थी कि यह झील ओवरफ्लो हो जाएगी और बांध को प्रभावित करेगी। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने के कारण ग्लेशियर झीलों की संख्या में वृद्धि हुई है। जब ग्लेशियर का आकार बढ़ता है, तब वे नदी के तल में गहराई तक जाते हैं। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन ने वैसे भी अप्रत्याशित स्थितियां पैदा कर दी हैं। ठीक वैसी जैसी सिक्किम में पिछले हफ्ते की भीषण बारिश की शक्ल में दिखीं। इस बारिश से झील ओवरफ्लो कर गई। जब ग्लेशियर नष्ट हो जाते हैं तो वे आधारशिला पर अधिक दबाव डालते हैं। इससे अधिक गाद पैदा होती है। बाढ़ और भूस्खलन, फिर अधिक गाद और मलबा नीचे की ओर ले जाते हैं, जिससे विनाश बढ़ जाता है।"

वैसे ग्लेशियर झीलें भले ही ज्यादातर सुदूर पहाड़ी घाटियों में होती हैं, लेकिन उनका फटना नीचे की ओर कई किलोमीटर तक नुकसान पहुंचा सकता है। जीवन, संपत्ति और बुनियादी ढांचे पर असर पड़ सकता है। जैसा कि फिलहाल सिक्किम में देखने को मिल रहा है।

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