ब्लॉग: इतिहास रचने के करीब पहुंचते भारतीय वैज्ञानिक
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: August 23, 2023 11:14 AM2023-08-23T11:14:05+5:302023-08-23T11:17:45+5:30
चांद की यात्रा पर निकले ‘चंद्रयान-3’ के ‘लुनार मॉड्यूल’ और चंद्रमा की कक्षा का पहले से चक्कर लगा रहे ‘चंद्रयान-2’ के ‘ऑर्बिटर’ के बीच जब सोमवार को दोतरफा संचार स्थापित हुआ तो वह देशवासियों के लिए गर्व का एक अनूठा पल था।
चांद की यात्रा पर निकले ‘चंद्रयान-3’ के ‘लुनार मॉड्यूल’ और चंद्रमा की कक्षा का पहले से चक्कर लगा रहे ‘चंद्रयान-2’ के ‘ऑर्बिटर’ के बीच जब सोमवार को दोतरफा संचार स्थापित हुआ तो वह देशवासियों के लिए गर्व का एक अनूठा पल था। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘स्वागत है दोस्त! ‘चंद्रयान-2’ आर्बिटर ने औपचारिक रूप से ‘चंद्रयान-3’ लैंडर मॉड्यूल का स्वागत किया। दोनों के बीच दोतरफा संचार स्थापित हो गया है...’’
आज बुधवार को ‘चंद्रयान-3’ के लैंडर मॉड्यूल के शाम करीब 6:04 बजे चंद्रमा की सतह पर उतरने के साथ ही भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक इतिहास रच देगा क्योंकि वह चांद के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बन जाएगा। हालांकि अंतरिक्ष के क्षेत्र में हमारा मिशन यहीं पर रुकने वाला नहीं है। ‘चंद्रयान-3’ के सफल होने के बाद ‘गगनयान’ देश का बड़ा मिशन होगा और अगले वर्ष के आरंभ में इसरो महिला रोबोट ‘वायु मित्र’ को चंद्रमा पर भेजने की तैयारी भी कर रहा है।
यह महिला रोबोट चंद्रमा पर उतरकर पूरी तरह से इंसानों की तरह ही सभी कार्यों को अंजाम देगी। वह चंद्रमा पर मिट्टी खोदकर उसकी जांच भी करेगी और इंसानों की तरह ही उसकी वापसी भी धरती पर होगी। इस रोबोट मिशन के सफल होने के बाद अगले वर्ष ही भारत चंद्रमा पर इंसान भेजेगा।
अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के मुकाबले भारत के अभियान इसलिए भी पूरी दुनिया में महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं क्योंकि उनके मुकाबले अत्यल्प बजट में हम ऐसा करने में सफल हो पा रहे हैं। भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिए हाल के बजट में 1.5 अरब डॉलर यानी लगभग 12 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था।
जबकि अमेरिका में ये बजट 25 अरब डॉलर यानी लगभग दो लाख करोड़ रुपए है लेकिन पैसा अंतरिक्ष अभियानों में सफलता की गारंटी नहीं होता, जिसका हालिया उदाहरण रूस के लूना-25 का क्रैश होना है। अपने ताकतवर रॉकेट पर सवार होकर दस अगस्त को प्रक्षेपण के बाद वह केवल छह दिनों में चंद्रमा की कक्षा में पहुंच गया था, जबकि चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को लॉन्च होने के बाद चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने में 23 दिन लग गए, क्योंकि हमारे पास अभी उतना शक्तिशाली रॉकेट नहीं है।
लेकिन कछुए और खरगोश की दौड़ में कछुए के जीतने की कहानियां हमने किताबों में पढ़ी हैं और आज 23 अगस्त की शाम जब हमारे ‘चंद्रयान-3’ का लैंडर मॉड्यूल सफलतापूर्वक चांद पर उतर जाएगा तो पूरी दुनिया हमारे वैज्ञानिकों की प्रतिभा का लोहा मानेगी, इसमें कोई शक नहीं है।