ब्लॉग: जिला निर्माण की चुनावी राजनीति पर रोक लगे
By राजकुमार सिंह | Published: January 12, 2024 12:13 PM2024-01-12T12:13:09+5:302024-01-12T12:29:18+5:30
प्रशासनिक सहजता और जनता की सुविधा के लिए नए जिले या तहसील बनाने में कुछ भी गलत नहीं, पर उसके लिए किसी विश्वसनीय प्रक्रिया का पालन तो किया ही जाना चाहिए।
ओडिशा उच्च न्यायालय द्वारा पिछले दिनों राज्य की नवीन पटनायक सरकार को नए जिलों के गठन की घोषणा करने से रोकने से नए जिलों की चुनावी राजनीति फिर से बहस का मुद्दा बन गई है। उच्च न्यायालय ने यह आदेश एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया, जिसमें कहा गया था कि सरकार बिना दिशा-निर्देशों और सिद्धांत के नए जिले बनाने जा रही है।
प्रशासनिक सहजता और जनता की सुविधा के लिए नए जिले या तहसील बनाने में कुछ भी गलत नहीं, पर उसके लिए किसी विश्वसनीय प्रक्रिया का पालन तो किया ही जाना चाहिए। चुनावी राजनीति के दबाव में या लाभ की लालसा में अपेक्षित प्रक्रिया को नजरअंदाज करनेवाली नवीन पटनायक सरकार अकेली नहीं।
प्रशासनिक जरूरतों का अध्ययन किए बिना ही जनता की मांग पर या क्षेत्र विशेष के मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने के लिए नए जिलों की चुनावी राजनीति पिछले कुछ सालों में राष्ट्रीय प्रवृत्ति बन गई है। पिछले साल नवंबर में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए, उनमें से राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी नए जिलों की चुनावी लॉलीपॉप खूब बांटी गई।
राजस्थान में कांग्रेसी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पांच साल के कार्यकाल में दो-चार नहीं, पूरे 20 नए जिले बना दिए। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने भी नए जिलों का चुनावी दांव चला। एक नवंबर, 2000 को जब छत्तीसगढ़ अलग राज्य बना, मध्य प्रदेश में 45 जिले रह गए थे। अब जिलों की संख्या 55 पर पहुंच गई है।
मध्य प्रदेश से अलग राज्य बने छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी पांच साल में पांच नए जिले बना डाले। दो-तीन शहरों-कस्बों को मिला कर दिया गया नए जिलों का नामकरण भी यही संकेत देता है कि प्रशासनिक सुविधा के बजाय लोकप्रियता की चुनावी राजनीति का ध्यान रखा गया। इसी साल अगस्त में असम में भी चार नए जिले बनाए गए। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने तो अप्रैल, 2022 में जिलों की संख्या दोगुना कर कमाल ही कर दिया।
तेलंगाना के पृथक राज्य बन जाने के बाद आंध्र में 13 जिले रह गए थे, जिन्हें 26 कर दिया गया। दरअसल 2020 के बाद नए जिलों की यह राजनीति ज्यादा जोर पकड़ती नजर आती है। 2014 से 2023 तक देश भर में कुल 103 नए जिले बने, जिनमें से 50 पिछले तीन साल में ही बनाए गए यानी साढ़े नौ-दस साल में बने नए जिलों के 49 प्रतिशत मात्र तीन साल में बने हैं।
सरकार से अपेक्षा की जाती है कि प्रशासनिक जरूरतों और जनता की सुविधा के आधार पर ही जिले-तहसील आदि का पुनर्गठन किया जाए, लेकिन अब यह भी लोक लुभावन राजनीति के औजार बनते जा रहे हैं।