ब्लॉगः जातीय जनगणना की मांग उचित नहीं
By वेद प्रताप वैदिक | Updated: November 2, 2022 13:16 IST2022-11-02T13:10:07+5:302022-11-02T13:16:38+5:30
अंग्रेज सरकार ने भारत में जातीय जनगणना इसलिए चालू करवाई थी कि वे भारत के लोगों की एकता को तोड़ना चाहते थे। क्योंकि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर अंग्रेज सरकार की जड़ें हिला दी थीं।

ब्लॉगः जातीय जनगणना की मांग उचित नहीं
अपनी 'भारत जोड़ो' यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने कहा है कि भारत में जातीय जनगणना फिर से शुरू की जानी चाहिए। 2011 में कांग्रेस पार्टी ने जातीय जनगणना करवाई थी लेकिन भाजपा सरकार ने उस पर पानी फेर दिया। उसे सार्वजनिक ही नहीं होने दिया और अब 2021 से जो जनगणना शुरू होनी थी, उसमें भी जातीय जनगणना का कोई स्थान नहीं है। अंग्रेज सरकार ने भारत में जातीय जनगणना इसलिए चालू करवाई थी कि वे भारत के लोगों की एकता को तोड़ना चाहते थे। क्योंकि 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों ने मिलकर अंग्रेज सरकार की जड़ें हिला दी थीं।
पहले इन दो आबादियों को तोड़ना और फिर जातियों के नाम पर भारत के सैकड़ों-हजारों दिमागी टुकड़े कर देना ही इस जातीय जनगणना का उद्देश्य था। इसीलिए 1871 से अंग्रेजों ने जातीय-जनगणना शुरू करवा दी थी। कांग्रेस ने इसका डटकर विरोध किया था। महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू ने जातीय जनगणना के विरोध में सारे भारत में जनसभाएं और प्रदर्शन आयोजित किए थे। इसी का परिणाम था कि 1931 में सेंसस कमिश्नर जे.एच. हट्टन ने जातीय जनगणना पर प्रतिबंध लगा दिया। इस तरह की गणना कितनी गलत, कितनी अशुद्ध और कितनी अप्रामाणिक होती है, यह उन्होंने सिद्ध किया लेकिन कांग्रेस की मनमोहन-सरकार ने 2011 में इसे फिर से करवाना शुरू कर दिया। किसी भी पार्टी ने इसका विरोध नहीं किया, क्योंकि सभी पार्टियां थोक वोट पाने की फिराक में रहती हैं। इसके विरोध का झंडा अकेले मैंने उठाया। मैंने 'मेरी जाति हिंदुस्तानी' आंदोलन शुरू किया। मैं सोनिया गांधी को धन्यवाद दूंगा कि जैसे ही वे न्यूयॉर्क में अपनी माताजी के इलाज के बाद दिल्ली लौटीं, उन्होंने तत्काल जातीय जनगणना को बीच में ही रुकवा दिया।