ब्लॉग: नेताओं के पलायन पर कांग्रेस को करना होगा आत्मचिंतन
By राजकुमार सिंह | Published: January 18, 2024 10:35 AM2024-01-18T10:35:33+5:302024-01-18T10:49:38+5:30
मुश्किल वक्त में कांग्रेस का हाथ छोड़नेवालों में मिलिंद देवड़ा का नाम भी जुड़ गया। पार्टी से इस्तीफा देते हुए मिलिंद ने कहा भी कि वो कांग्रेस के साथ अपने परिवार का 55 साल पुराना संबंध तोड़ रहे हैं।
मुश्किल वक्त में कांग्रेस का हाथ छोड़नेवालों में मिलिंद देवड़ा का नाम भी जुड़ गया। बेशक लोकसभा सदस्य रह चुके मिलिंद बड़े जनाधारवाले नेता नहीं हैं, लेकिन दो पीढ़ियों से कांग्रेस और उससे भी ज्यादा नेहरू-गांधी परिवार के वफादारों में उनकी गिनती होती रही। मिलिंद ने कहा भी कि उन्होंने कांग्रेस के साथ अपने परिवार का 55 साल पुराना संबंध तोड़ लिया है।
सच यह भी है कि मिलिंद देवड़ा राहुल गांधी की टीम के सदस्य रहे। मनमोहन सिंह के दूसरे प्रधानमंत्रित्वकाल में राहुल गांधी तो प्रशासनिक अनुभव के लिए किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालने को तैयार नहीं हुए, पर उनकी टीम के सदस्य माने जानेवाले कई युवाओं को मंत्री बनाया गया था। उन युवाओं में सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह के अलावा मिलिंद देवड़ा भी शामिल थे।
राहुल गांधी की विडंबना देखिए कि लगभग दस साल बाद अब उनमें से सिर्फ सचिन पायलट ही कांग्रेस में बचे हैं बाकी सबने समय और सुविधा के अनुसार अपनी राजनीतिक राह बदल ली। कारोबारी पृष्ठभूमिवाले मिलिंद ने भावी राजनीति के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की शिवसेना को चुना है, जो भाजपा का मित्र दल है, वरना तो टीम-राहुल के ज्यादातर सदस्यों ने सीधे-सीधे कमल थामा। जब आप दल बदलते हैं तो आप उसे देश और समाज के ही हित में बताते हैं, निजी हित के सवाल से मुंह चुरा कर बच निकल जाते हैं।
कांग्रेस का हाथ छोड़ने वाले टीम-राहुल के अन्य सदस्यों की तरह मिलिंद ने न सिर्फ कांग्रेस, बल्कि खुद राहुल गांधी पर भी कुछ आरोप लगाए हैं, पर यह सच भी सबके सामने है कि जिस मुंबई दक्षिण सीट से मिलिंद और उनसे पहले उनके पिता मुरली देवड़ा लोकसभा चुनाव लड़ते रहे, उस पर ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच सीट बंटवारे में उद्धव ठाकरे की शिवसेना दावा कर रही है।
यह दावा निराधार भी नहीं है। आखिर शिवसेना के अरविंद सावंत पिछले दो लोकसभा चुनाव यानी कि 2014 और 2019 में देवड़ा को हराकर वहां से सांसद चुने जाते रहे हैं। यह अपेक्षा ही अतार्किक और अव्यावहारिक थी कि जीता हुआ दल हारे हुए उम्मीदवार के लिए किसी सीट पर अपना दावा छोड़ दे।
यह संभव ही नहीं था कि कांग्रेस मिलिंद को उस सीट का आश्वासन दे पाती। ऐसे में दो ही विकल्प थे: मिलिंद देवड़ा पार्टी के हित को निजी हित से ऊपर मानते और लोकसभा के बजाय विधानसभा चुनाव की संभावनाएं खोजते या फिर कांग्रेस उन्हें समय आने पर राज्यसभा भेजने का भरोसा दिलाती, क्योंकि वर्तमान राजनीति का कड़वा सच यही है कि सत्ता बिना कोई नेता किसी का सगा नहीं। मिलिंद से पहले उनके पिता मुरली देवड़ा भी मनमोहन सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे थे।