ब्लॉग: सामूहिक नाकामी है जानलेवा होता वायु प्रदूषण

By राजकुमार सिंह | Published: November 2, 2023 11:14 AM2023-11-02T11:14:47+5:302023-11-02T11:19:25+5:30

हर साल सर्दियों की आहट के साथ ही दिल्लीवासियों की सांसों पर संकट शुरू होता है। धीरे-धीरे यह संकट पूरे एनसीआर में फैल जाता है, पर इससे निपटने के आधे-अधूरे सरकारी प्रयास भी तभी शुरू होते हैं, जब दम घुटने लगता है।

Blog: Collective failure is leading to deadly air pollution | ब्लॉग: सामूहिक नाकामी है जानलेवा होता वायु प्रदूषण

फाइल फोटो

Highlightsहर साल सर्दियों की आहट के साथ ही दिल्लीवासियों की सांसों पर संकट शुरू होता हैप्रदूषण से निपटने के आधे-अधूरे सरकारी प्रयास भी तभी शुरू होते हैं, जब दम घुटने लगता हैप्रदूषण संकट से निपटने के सतत प्रयास और दूरगामी नीति कहीं नजर नहीं आती

हर साल सर्दियों की आहट के साथ ही दिल्लीवासियों की सांसों पर संकट शुरू होता है। धीरे-धीरे यह संकट पूरे एनसीआर में फैल जाता है, पर इससे निपटने के आधे-अधूरे सरकारी प्रयास भी तभी शुरू होते हैं, जब दम घुटने लगता है।

इस संकट से निपटने के सतत प्रयास और दूरगामी नीति कहीं नजर नहीं आती। जाहिर है, यह आग लगने पर कुआं खोदने की सरकारी मानसिकता का भी परिणाम और प्रमाण है। सरकारें और उनकी संबंधित एजेंसियां खुद कुछ करने से ज्यादा दिल्लीवासियों को आगाह कर, कुछ और सख्त प्रतिबंध लगा कर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं।

अब जैसे ही दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 300 के पार गया है, सरकारी नसीहतें और प्रतिबंध सामने आने लगे हैं। बेशक यह भी जरूरी है, मगर ये सब तो आपात कदम हैं तात्कालिक राहत के लिए। ऐसी कोई ठोस दूरगामी नीति क्यों नहीं बनाई-अपनाई जाती कि दिल्ली-एनसीआर में करोड़ों लोग पूरे साल स्वच्छ हवा में सांस ले सकें?

यह सवाल भी हर साल इन्हीं दिनों पूछा जाता है पर तर्कसंगत ठोस जवाब कभी नहीं मिलता। मिलती है तो वायु प्रदूषण रोकने की जिम्मेदारी और उसमें नाकामी के मुद्दे पर दिल्ली सरकार की केंद्र तथा पड़ोसी राज्य सरकारों के साथ अशोभनीय तकरार।

सरकारें कितनी जिम्मेदार और जवाबदेह हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सर्दियों में जानलेवा हो जानेवाले वायु प्रदूषण का दोष मौसम, पराली और पटाखों के सिर मढ़ कर पल्ला झाड़ लिया जाता है। बेशक यह सच है कि वायु प्रदूषण को खतरनाक स्तर तक बढ़ाने में मौसम, पराली और पटाखों की भूमिका रहती है, पर उनके बिना भी दिल्लीवालों को स्वच्छ और स्वस्थ हवा उपलब्ध हो पाती है क्या?

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद जागी सरकारों ने खतरनाक वायु प्रदूषण पर इन दिनों नियंत्रण के लिए जो कार्य योजनाएं बनाई हैं, वे एक्यूआई 200 के पार जाने पर ही धरातल पर उतरती दिखाई देती हैं। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कितने एक्यूआई तक की हवा जीवन के लिए स्वच्छ और स्वस्थ मानी जाती है।

दरअसल 50 एक्यूआई तक की हवा ही अच्छी मानी जाती है। उसके बाद 51 से 100 एक्यूआई तक की हवा संतोषजनक मानी जाती है और 101 से 200 एक्यूआई तक मध्यम। हमारी सरकारें तब जागती हैं, जब एक्यूआई 201 पार कर हवा खराब हो जाती है।

जैसे-जैसे हवा बहुत खराब (301-400) और गंभीर (401-500) होती जाती है, सरकारी प्रतिबंध बढ़ने लगते हैं। ध्यान रहे कि जब एक्यूआई 450 के पार चला जाता है, तब दिल्ली में लॉकडाउन की स्थिति होती है यानी स्कूल बंद, ऑनलाइन क्लासें शुरू और दफ्तर बंद, वर्क फ्रॉम होम शुरू। निश्चय ही यह आदर्श या सामान्य जीवन नहीं है।

Web Title: Blog: Collective failure is leading to deadly air pollution

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