ब्लॉग: विपक्षी बिखराव के बीच भाजपा की चुनावी बिसात

By राजकुमार सिंह | Published: February 15, 2024 10:51 AM2024-02-15T10:51:49+5:302024-02-15T10:53:56+5:30

अपनी सरकार की हैट्रिक में उन्हें जिन-जिन राज्यों में, जिन-जिन क्षत्रपों से मुश्किलें पेश आ सकती थीं, वहां ऐसी पेशबंदी की है कि चुनाव से पहले ही पासा पलटता दिख रहा है। बदलते परिदृश्य में, सात महीने पहले जोर-शोर के साथ बना इंडिया बिखराव के कगार पर है। 

BJP's electoral chessboard amid opposition disintegration | ब्लॉग: विपक्षी बिखराव के बीच भाजपा की चुनावी बिसात

फाइल फोटो

Highlightsइंडिया गठबंधन की राह नहीं है आसानहैट्रिक मारने के लिए सभी राज्यों में भाजपा ने बिसात रखी हैजिसका उदाहरण महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण का भाजपा में शामिल होना है

अगर नैतिकता के प्रति आग्रही न बनें तो अपनी सरकार को चुनौती के इरादे के साथ बने 28 विपक्षी दलों के गठबंधन 'इंडिया' के अंतर्विरोधों के बीच ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 के लोकसभा चुनाव की जैसी बिसात बिछाई है, वह राजनीतिक प्रबंधन की मिसाल है। अपनी सरकार की हैट्रिक में उन्हें जिन-जिन राज्यों में, जिन-जिन क्षत्रपों से मुश्किलें पेश आ सकती थीं, वहां ऐसी पेशबंदी की है कि चुनाव से पहले ही पासा पलटता दिख रहा है। बदलते परिदृश्य में, सात महीने पहले जोर-शोर के साथ बना इंडिया बिखराव के कगार पर है। 

सूत्रधार कहे गए नीतीश कुमार फिर पलटी मार कर एनडीए में लौट गए हैं। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है, तो आप ने भी पंजाब से दिल्ली तक कांग्रेस को ठेंगा दिखा दिया है। 80 सीटोंवाला उत्तरप्रदेश, 40 सीटोंवाला बिहार, 48 सीटोंवाला महाराष्ट्र और 28 सीटोंवाला कर्नाटक भाजपा के प्रमुख शक्ति स्रोतों में रहे हैं। ‘इंडिया’ बनने के बाद 2019 का चुनावी गणित गड़बड़ाता भी दिख रहा था-400 पार का नारा तो दूर की बात है। हालांकि, संसद में बोलते हुए मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि अकेलेदम भाजपा का लक्ष्य 370 सीटों का है, जबकि पूरे एनडीए का लक्ष्य 400 का है।

नरेंद्र मोदी और अमित शाह सरीखे चुनावी रणनीतिकार अच्छी तरह जानते हैं कि लक्ष्य निर्धारित करना और उसे हासिल करना दो अलग-अलग चीजें हैं। हां, लक्ष्य घोषित करने से उसे हासिल करने का दबाव अवश्य बढ़ जाता है, और फिर आप उसके लिए हरसंभव प्रयास करते हैं। पिछले साल के आखिर में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को जबर्दस्त मात देकर केंद्र में सरकार की हैट्रिक का नारा देने के बाद से ही भाजपाई रणनीतिकार उसकी बिसात बिछाने में जुटे हैं। अब जबकि प्यार और जंग की तरह सत्ता-राजनीति में भी सब कुछ जायज मान लिया गया है तो चुनावी चुनौती पेश कर सकनेवाले इंडिया को तार-तार करने में भाजपा ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। 

भाजपा ने संयोजक न बनाए जाने पर नीतीश की निराशा को भांपा, लालू परिवार से उनके संशय को हवा दी, कर्पूरी ठाकुर को भारतरत्न दिया और एक-दूसरे के लिए बंद बताए जानेवाले खिड़की-दरवाजे सब खुल गए। बिहार का चुनावी समीकरण फिर भाजपा के पक्ष में झुक गया है। अलग चुनाव लड़ने की घोषणा करनेवाली मायावती के मन में जो भी हो, उससे अंतत: फायदा भाजपा को ही होगा। फिर भी सपा-कांग्रेस-रालोद मिल कर चुनौती दे सकते थे। इसलिए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में भी इंडिया के अंतर्विरोधों का लाभ उठाया। अब कांग्रेस-सपा के बीच सीट बंटवारे का जो भी अंजाम हो, भाजपा को चुनौती दे पाना संभव नहीं होगा।

Web Title: BJP's electoral chessboard amid opposition disintegration

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