महिलाओं के प्रति भयावह अपराधों की मानसिकता, समाज को शर्मसार करती घटनाएं
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: September 3, 2018 00:38 IST2018-09-03T00:38:05+5:302018-09-03T00:38:05+5:30
16 वर्षीय एक स्थानीय युवक का शव रेलवे लाइन के पास पाया गया। उसकी बहन इस सदमे को सहन न कर सकी और वह भी चल बसी। उस परिवार की त्नासदी के साथ किसकी सहानुभूति नहीं होगी।

महिलाओं के प्रति भयावह अपराधों की मानसिकता, समाज को शर्मसार करती घटनाएं
अवधेश कुमार
बिहार के बिहिया आरा की घटना ने पूरे देश को हिला दिया है। 35 वर्ष की एक महिला को निर्वस्त्न कर सड़कों पर आधा घंटा से ज्यादा घुमाए जाने का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। उसके साथ उन्मादित जुलूस अट्टहास करते हुए ऐसे चल रहा है मानो उसने कोई बड़ी विजय हासिल की है। जो जुलूस में शामिल नहीं थे वे या तो तमाशबीन बने रहे या फिर कुछ मोबाइल पर वीडियो बनाने लगे। एक अकेली नंगी की गई महिला और सामने समाज का हर वर्ग। उस महिला पर क्या गुजर रही होगी यह सोचकर ही आत्मा कांप जाती है। और उसका दोष क्या था?
16 वर्षीय एक स्थानीय युवक का शव रेलवे लाइन के पास पाया गया। उसकी बहन इस सदमे को सहन न कर सकी और वह भी चल बसी। उस परिवार की त्नासदी के साथ किसकी सहानुभूति नहीं होगी। किंतु क्या कोई सभ्य समाज अपने आक्रोश को इस तरह प्रकट करेगा? चूंकि उस महिला का घर सामने था इसलिए किसी ने शोर मचाया कि इसी ने मारा या मरवाया होगा। बस, फिर क्या था, भीड़ ने उसके घर पर धावा बोला, जितनी क्षति पहुंच सकती थी, पहुंचाया और कुछ लोगों ने उस महिला को पकड़कर पिटाई शुरू कर दी। उसके बाद उसके वस्त्न नोंच लिए गए।
बिहार सरकार को ऐसा माहौल बनाना होगा ताकि महिलाओं के प्रति भयावह अपराधों की मानसिकता वालों के अंदर भय पैदा हो। प्रशासन को भी उसके दायित्वों की याद दिलाना अपरिहार्य है। इन सबसे बढ़कर समाज के भद्र जनों को भी अपनी भद्रता की बनाई सीमा रेखा से बाहर आना होगा।
समाज में महिलाओं के सम्मान का वातावरण बनाने की जिम्मेवारी इन्हीं पर है। वैसे भीड़ की हिंसा का हमारे यहां समय-समय पर जैसा भयावह और वीभत्स चेहरा सामने आता है उस पर उच्चतम न्यायालय अपना फैसला तक दे चुका है। इसमें केंद्र से दिशानिर्देश तथा इसके लिए अलग से कानून बनाने का आदेश भी है।
राज्यों ने इसे रोकने के लिए क्या-क्या कदम उठाए, इसकी रिपोर्ट भी प्रस्तुत करने को कहा गया है। लेकिन अभी तक कानून नहीं बना और केवल एक राज्य ने उच्चतम न्यायालय में अपनी रिपोर्ट दी है। साफ है कि हम भीड़ की हिंसा पर चिंता जताते हैं, घटनाएं होने पर पुलिस कार्रवाई भी करती है, पर ऐसी घटनाएं न हों, केंद्र एवं राज्य साथ मिलकर इसके लिए कदम नहीं उठा रहे हैं।