बाहुबलियों को क्यों वोट देते हैं लोग?, बिहार में अपराधियों ने ऐसा नेटवर्क कायम कर रखा...

By विकास मिश्रा | Updated: November 11, 2025 05:15 IST2025-11-11T05:13:38+5:302025-11-11T05:15:17+5:30

बिहार में अपराधियों ने ऐसा नेटवर्क कायम कर रखा है कि सरकार कोई भी हो लेकिन उनकी हैसियत कम न हो!

bihar polls chunav Why do people vote strongmen criminals established such network no matter which government power their status does not diminish blog Vikas Mishra | बाहुबलियों को क्यों वोट देते हैं लोग?, बिहार में अपराधियों ने ऐसा नेटवर्क कायम कर रखा...

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Highlightsफिर यह सवाल भी फिर से उठेगा कि लोग बाहुबलियों को वोट क्यों देते हैं?कोई मजबूरी है या पूरा का पूरा सिस्टम ही ऐसा बन गया है कि लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं? विश्लेषण कहता है कि इस बार यानी 2025 में जो प्रत्याशी मैदान में हैं,

राजनीतिक दलों से अब कोई उम्मीद नहीं. बाहुबलियों के खिलाफ मतदाताओं को आगे आना होगा. लेकिन सवाल है कि विरोध का स्वरूप क्या होगा ? बिहार विधानसभा चुनाव का फैसला आने में कुछ ही दिन बाकी हैं. मतदाताओं ने जिसे अपने मत से नवाजा होगा, उसकी सरकार बन जाएगी. जो जीतेगा, वह तो कुलांचे भरेगा लेकिन जो हारेगा, निश्चित रूप से वह कलेजा पीटेगा! यह देखना भी दिलचस्प होगा कि इस बार कितने बाहुबली विधानसभा में पहुंचते हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता कि एक भी बाहुबली विधानसभा में न पहुंचे. तो  फिर यह सवाल भी फिर से उठेगा कि लोग बाहुबलियों को वोट क्यों देते हैं?

कोई मजबूरी है या पूरा का पूरा सिस्टम ही ऐसा बन गया है कि लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं? एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं इलेक्शन वॉच की पुरानी रिपोर्ट देखें तो 2020 में बिहार विधानसभा में 66 फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज थे. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं इलेक्शन वाच का ही विश्लेषण कहता है कि इस बार यानी 2025 में जो प्रत्याशी मैदान में हैं,

उनमें से 47 प्रतिशत पर कोई न कोई आपराधिक मामला चल रहा है. 27 प्रतिशत पर तो हत्या, हत्या के प्रयास, रंगदारी जैसे गंभीर आरोप हैं. प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने कहा कि वह किसी भी आपराधिक छवि वाले व्यक्ति को टिकट नहीं देगी लेकिन जनसुराज के कई प्रत्याशियों को लेकर सवाल खड़े हुए हैं.

राष्ट्रीय जनता दल, भारतीय जनता पार्टी और जदयू भी राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ बोलने में कहीं पीछे नहीं हैं लेकिन जब बात यह उठती है कि राजनीतिक दल ऐसे लोगों को टिकट क्यों देते हैं जो आपराधिक छवि वाले हैं तो बहाना बनाया जाता है कि जब तक उनके ऊपर कोई अपराध साबित नहीं हो जाता है तब तक उन्हें टिकट से वंचित करना न्यायसंगत नहीं होगा.

हकीकत यह है कि राजनीतिक दल इस बात का भी ध्यान नहीं रखते कि जिन्हें टिकट दिया जा रहा है, वे दुर्दांत बाहुबली हैं. चूंकि उनके खिलाफ अपराधों की गवाही देने वाला कोई नहीं मिलता और उनका खुद का राजनीतिक रसूख इतना तगड़ा होता है कि मामले कोर्ट में टिक नहीं पाते और ऐसे बाहुबली बरी हो जाते हैं. इस तरह राजनीतिक दलों को भी बचने का बहाना मिल जाता है.

वैसे यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि अपराधियों को राजनीति का हिस्सा बनाए रखने की बेशर्मी राजनीतिक दलों के पोर-पोर में समा चुकी है. बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार कम से कम 22 बाहुबली या फिर उनकी छत्रछाया में उनके परिवार के लोग चुनाव लड़ रहे हैं.

जब किसी बाहुबली के परिवार के किसी व्यक्ति को टिकट दिया जाता है तो राजनीतिक दलों को यह बहाना भी मिल जाता है कि जिसे टिकट मिला है, वह अपराधी नहीं है. इस तरह राजनीतिक दल अपने दागदार दामन को सफेद दिखाने की कोशिश करते हैं. कुछ भी आम आदमी से छिपा नहीं है लेकिन राजनीति और अपराध का गठजोड़ इतना तगड़ा हो चुका है कि उससे निपटना आसान नहीं है.

अब आप बिहार में सबसे ज्यादा चर्चित मोकामा विधानसभा क्षेत्र का ही मामला लें. वहां अनंत सिंह और सूरजभान सिंह नाम के दो खूंखार बाहुबलियों के बीच मुकाबला है. अनंत सिंह जदयू की ओर से खुद चुनाव लड़ रहे हैं और उन पर आरोप है कि बाहुबली से आरजेडी नेता बने दुलारचंद यादव को उन्होंने पहले गोली मारी और फिर गाड़ी चढ़ाकर कुचल दिया.

दुलारचंद की हत्या के  आरोप में वे जेल में हैं. दुलारचंद भी कम न थे. 75 साल की उम्र के दौरान वे 32 बार जेल गए! अनंत के खिलाफ सूरजभान की पत्नी वीणा देवी चुनाव मैदान में हैं जो आरजेडी के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं. अनंत जेल में हैं लेकिन उनका पलड़ा भारी बताया जा रहा है. इसका कारण सुन कर आप दंग रह जाएंगे.

वहां के लोगों का कहना है कि वे हर किसी की सहायता के लिए खड़े रहते हैं. साल मे कई बार लोगों को भोज खिलाते हैं. हर जरूरतमंद की हर तरह से सहायता करते हैं. उनका रसूख ऐसा है कि हर कोई उनसे अपनापन बनाता है और अपने इलाके में रसूखदार बन जाता है. उनका नेटवर्क ऐसा है कि लोग उन्हें वोट देते ही देते हैं.

उनकी इस छवि के भी लोग कायल हैं कि उनके यहां यदि कोई मजदूर पहुंचे और कोई करोड़पति पहुंचे, तो दोनों को ही अगल-बगल कुर्सी पर बिठाते हैं. छवि यह भी है कि कोई उनके खिलाफ चला जाए तो फिर...! बिहार में दरअसल बाहुबलियों ने रॉबिनहुड की छवि बना ली है. जो साथ है, उसकी सहायता करते हैं और जो खिलाफ गया, उसका तो फिर भगवान ही मालिक है.

राजनेताओं को भी पता है कि उन्हें यदि चुनाव जीतना है तो इन बाहुबलियों का साथ चाहिए. इसीलिए प्रशासनिक तौर पर वे उनकी रक्षा करते हैं. आपको याद ही होगा कि बिहार में जब लालू प्रसाद यादव की सरकार थी तो उस दौर के सबसे दुर्दांत और दो सगे भाइयों को तेजाब से नहला देने वाले खूंखार शहाबुद्दीन का कोई बाल बांका नहीं कर पाया.

आरजेडी से अब उसका बेटा ओसामा मैदान में है. यानी राजनीतिक दल चाहते हैं कि मतदाताओं में खौफ बना रहे. क्योंकि खौफ नहीं होगा तो मतदाता जाल से दूर जाने की हिम्मत करने लगेगा! तो सवाल यह है कि राजनीति को अपराधियों से बचाने का उपाय क्या है? उपाय बस एक ही है कि मतदाता ऐसे उम्मीदवार को वोट दें जिस पर कोई मुकदमा न हो.

संभव है कि एक-दो चुनाव तक इसका प्रभाव न हो लेकिन जब राजनीतिक दल यह महसूस करने लगेंगे कि मतदाता तो केवल साफ छवि वालों को ही वोट दे रहे हैं तो हो सकता है राजनीतिक दलों को भी साफ-सुथरी छवि वाले उम्मीदवार मैदान मेंं उतारने की प्रेरणा मिले! उम्मीद अब मतदाताओं से ही है!  

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