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भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: वायु प्रदूषण रोकने के लिए अनेक मोर्चो पर ध्यान देना जरूरी  

By भरत झुनझुनवाला | Updated: March 1, 2020 15:03 IST

वायु प्रदूषण पर नियंत्नण न करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्नण का बोझ न पड़े, उनके माल के उत्पादन की लागत कम आए, देश का आर्थिक विकास हो जिससे कि जनता के जीवन स्तर में सुधार हो.

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विश्व के बीस अधिकतम वायु प्रदूषित शहरों में से चौदह भारत में हैं. यह हमारे लिए शर्मनाक ही नहीं अपितु हमारे आर्थिक विकास के लिए अत्यधिक हानिप्रद है क्योंकि इस प्रदूषण से हमारे नागरिकों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. उनकी आय नए माल के उत्पादन में निवेश करने के स्थान पर अस्पतालों में व्यय हो रही है. 

वायु प्रदूषण पर नियंत्नण न करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि उद्योगों पर प्रदूषण नियंत्नण का बोझ न पड़े, उनके माल के उत्पादन की लागत कम आए, देश का आर्थिक विकास हो जिससे कि जनता के जीवन स्तर में सुधार हो. लेकिन इस प्रक्रिया में बढ़े वायु प्रदूषण से जनता का स्वास्थ्य और जीवन स्तर गिर रहा है. अत: वायु प्रदूषण बढ़ाकर जनहित हासिल करने के स्थान पर हमें वायु प्रदूषण नियंत्रित करके जनता के जीवन स्तर में सुधार लाने के प्रयास करने होंगे.

वायु प्रदूषण का प्रमुख स्रोत उद्योग हैं जिसमें थर्मल बिजली प्लांट सम्मिलित है. थर्मल बिजली प्लांटों द्वारा भारी मात्ना में कार्बन, सल्फर और नाइट्रोजन का उत्सर्जन किया जाता है जो कि वायु को प्रदूषित करते हैं. इस प्रदूषण को नियंत्रित करने का सीधा उपाय है कि उद्योगों द्वारा उत्सर्जित वायु के मानकों को कड़ा कर दिया जाए. जब इनके द्वारा साफ वायु छोड़ी जाएगी तो प्रदूषण नहीं होगा. लेकिन सरकार ने हाल में इसके विपरीत कदम उठाए हैं. सरकार ने इनके मानकों को ढीला कर दिया है जिसके कारण प्रदूषण बढ़ रहा है. इन मानकों को और कड़ा करके वायु प्रदूषण रोकना चाहिए.

सरकार का कहना है कि थर्मल के स्थान पर बिजली के दूसरे स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है जैसे जल विद्युत को. कोयले को जलाने से वायु प्रदूषित होती है यह तो सर्वविदित है और इसके विकल्प हमें खोजने ही चाहिए. लेकिन जलविद्युत के संबंध में भ्रम व्याप्त है. मूल रूप से जलविद्युत साफनहीं होती है. जलविद्युत परियोजनाओं के पीछे बड़ा तालाब बनता है जिसके अंदर मरे हुए पशु और पेड़-पत्तियां नीचे बैठ कर सड़ते हैं. इनके सड़ने से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है जो कि कार्बन डाई ऑक्साइड की तुलना में वायु को 20 गुना ज्यादा प्रदूषित करती है. लेकिन इस प्रदूषण का संज्ञान हमारी सरकार, विशेषत: पर्यावरण मंत्नालय लेता ही नहीं है. हमें कोयले और जलविद्युत को छोड़कर परमाणु और सौर ऊर्जा से बिजली उत्पादन की तरफ बढ़ना चाहिए.

परमाणु ऊर्जा में समस्या रेडियोधर्मिता और पानी की खपत की है. यदि इन संयंत्नों को रिहायशी इलाकों से दूर स्थापित किया जाए और इनमें पानी की खपत को कम किया जाए तो परमाणु ऊर्जा हमारे लिए उपयुक्त हो सकती है. इन संयंत्नों के लिए अनिवार्य कर देना चाहिए कि वे गर्म पानी को नदी में न छोड़ें बल्कि उसका तब तक उपयोग करते रहें जब तक वह समाप्त न हो जाए. ऐसा करने से इनकी पानी की खपत कम हो जाएगी. 

सौर ऊर्जा पर्यावरण के प्रति नरम है और इसके विस्तार के लिए हमारी सरकार प्रयास कर रही है जो कि सही दिशा में है और जिसके लिए सरकार को साधुवाद. अत: उद्योगों द्वारा वायु प्रदूषण रोकने के लिए दो कदम उठाने चाहिए. पहला यह कि उत्सर्जित वायु के मानकों को सख्त किया जाए और दूसरा कोयला और जलविद्युत का त्याग कर हम परमाणु और सौर ऊर्जा की तरफ बढ़ें.

वायु प्रदूषण का एक स्रोत पराली को जलाना है. यह अत्यंत दुखद है क्योंकि पराली उपयोगी बायोमास है. इससे कागज अथवा खाद बनाई जा सकती है. इसे जलाकर हम अपने बायोमास को अनायास ही नष्ट कर रहे हैं. लेकिन वर्तमान समय में किसान के लिए लाभप्रद नहीं है कि पराली को वह कागज फैक्ट्री तक पहुंचा सके. इसलिए सरकार को चाहिए कि फूड कॉर्पोरेशन को आदेश दे कि वह पर्याप्त मूल्य पर पराली खरीदे और कागज मिलों को सप्लाई करे.

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