भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: वैश्वीकरण में ही छुपी हैं कोरोना जैसी महामारियों की जड़ें?

By भरत झुनझुनवाला | Published: March 22, 2020 09:52 AM2020-03-22T09:52:49+5:302020-03-22T09:52:49+5:30

कोरोना वायरस के कारण आज हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है. प्रश्न है कि जिन ऑटो पार्ट्स का हम चीन से आयात कर रहे हैं क्या हम उन्हें अपने देश में नहीं बना सकते थे?

Bharat Jhunjhunwala Blog: Are the roots of epidemic like Coronavirus hidden in globalization? | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉग: वैश्वीकरण में ही छुपी हैं कोरोना जैसी महामारियों की जड़ें?

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

बीसवीं शताब्दी के अंतिम हिस्से में अफ्रीका में एचआईवी वायरस का प्रकोप बढ़ा था जो कि सामान्य रूप से एड्स के नाम से जाना जाता है. हुआ यूं कि उस शताब्दी के प्रारंभ में, यानी 1900 से 1930 की अवधि में, फ्रांस ने अफ्रीका के कई देशों पर कब्जा किया था और वहां बेरहमी से शासन किया. फ्रांस ने इन उपनिवेशों की जनता को जबरन उनके गांवों से उखाड़ा और शहर में लाकर बसाया. अक्सर इन श्रमिकों के परिवार इनके साथ नहीं आए और शहरों में वेश्यावृत्ति का विस्तार हुआ.

वैज्ञानिकों का मानना है कि ये श्रमिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव में काम करते थे. इस तनाव के कारण इनके इम्यून या प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास हुआ और एचआईवी वायरस जो कि पशुओं में सामान्य रूप से रहता है वह कूद कर मनुष्य में प्रवेश कर गया जैसे बीमार ताकतवर व्यक्ति को कमजोर व्यक्ति भी पटक देता है. समय क्रम में बीसवीं शताब्दी के ही अंतिम हिस्से में गरीबी के कारण, साफ-सुथरे इंजेक्शन का उपयोग न करने के कारण, नागरिकों को पर्याप्त पौष्टिक भोजन न मिलने के कारण अथवा रोजगार न मिलने के कारण, उस एचआईवी वायरस ने एड्स का रूप धारण कर लिया जो बाद में पूरे विश्व में फैला.

इसके बाद वर्तमान इक्कीसवीं शताब्दी के पहले दशक में चीन के ग्वांगडांग प्रांत में सार्स वायरस का प्रकोप हुआ. ग्वांगडांग चीन के आर्थिक विकास का केंद्र है. वहां पर चीन के अंदरूनी हिस्सों से बड़ी संख्या में श्रमिकों को लाकर बैरकों में रखा गया. इस अप्राकृतिक वातावरण में इनका इम्यून सिस्टम कमजोर हो गया और सार्स का वायरस जो कि सामान्य रूप से पशुओं में रहता है वह पुन: कूद कर मनुष्यों में आया और सार्स का प्रकोप पूरे विश्व में फैला. लगभग यही स्थिति कोरोना की है. वुहान राज्य ग्वांगडांग के नजदीक है. यह भी चीन के आर्थिक विकास का एक प्रमुख केंद्र है. यहां पर भी ग्वांगडांग जैसी अप्राकृतिक परिस्थितयों में श्रमिकों को रखा जाता है जिसके कारण उनके इम्यून सिस्टम कमजोर हुए प्रतीत होते हैं और कोरोना वायरस पशुओं से कूदकर मनुष्यों में प्रवेश कर गया. इसके बाद इसने म्यूटेट किया यानी अपने रूप का परिवर्तन किया और फिर संपूर्ण विश्व में फैल गया.

उपरोक्त उदाहरणों से संकेत मिलता है कि प्रकृति को एक गति से अधिक तेज दौड़ाने के कारण ही इस प्रकार के वायरस उत्पन्न हुए हैं. आने वाले समय के लिए हमें तय करना होगा कि हम तीव्र आर्थिक विकास के साथ कोरोना जैसे संकटों को अपनाएंगे अथवा आर्थिक विकास की गति को थोड़ा धीमा कर ऐसे संकटों से मुक्त रहेंगे.

कोरोना वायरस के कारण आज हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है. प्रश्न है कि जिन ऑटो पार्ट्स का हम चीन से आयात कर रहे हैं क्या हम उन्हें अपने देश में नहीं बना सकते थे? चीन से आयातित किए गए ऑटो पार्ट्स सस्ते पड़ते हैं. लेकिन इससे साथ-साथ विश्व अर्थव्यवस्था से हमारा जुड़ाव बढ़ता है और कोरोना जैसे वायरस से हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ जाती है. तुलना में यदि हम उन्हीं ऑटो पार्ट्स को स्वयं ही बनाते तो कुछ महंगे पड़ते लेकिन हम स्वायत्त रहते. हमारा विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव कम रहता.

मान लीजिए किसान के सामने दो विकल्प हैं. वह नीम के पानी का उपयोग कीटनाशक के रूप में कर सकता है जो कि महंगा पड़ता है. अथवा वह शहर से रासायनिक कीटनाशक लाकर छिड़क सकता है जो कि तुलना में सस्ता पड़ता है. वह यदि नीम का उपयोग करता है तो शहर में हड़ताल हो जाए, तो भी उसकी खेती प्रभावित नहीं होती क्योंकि वह अपने नीम के वृक्षों से कीटनाशक बनाकर उपयोग करता रहता. इसकी तुलना में यदि उसने शहर से रासायनिक कीटनाशक के आधार पर अपनी खेती की और यदि किसी आंदोलन या अन्य कारण शहर से संपर्क टूट गया तो वह असहाय हो जाएगा.

Web Title: Bharat Jhunjhunwala Blog: Are the roots of epidemic like Coronavirus hidden in globalization?

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