ब्लॉग: भैरों सिंह शेखावत ने आत्मीय संबंधों की डोर से जोड़े रखा सबको
By कलराज मिश्र | Published: October 23, 2023 10:16 AM2023-10-23T10:16:03+5:302023-10-23T10:26:56+5:30
संवैधानिक पदों पर रहते हुए भैरों सिंह ने उन संस्थानों के ऐसे आदर्श स्थापित किए, जिन्हें चाहकर भी कोई भुला नहीं सकता है। वे राज्यसभा के सदस्य रहे।
यह साल देश के पूर्व उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत का जन्म शताब्दी वर्ष का रहा है। उन्हें याद करने का अर्थ है, राजनीति की उस परंपरा का स्मरण, जिसमें दलीय सोच से ऊपर उठकर राजनेता अपना उदात्त व्यक्तित्व निर्मित करते हैं। भैरोंसिंह जी ऐसे ही थे। राजनीति में रहते हुए भी उसकी संकीर्णता से वह सदा दूर रहे। संवैधानिक मामलों के मर्मज्ञ विद्वान शेखावत जी राजनीतिक शुचिता से जुड़े विरल व्यक्तित्व थे। मुझे यह भी लगता है कि वह व्यक्ति नहीं, अपने आप में संवैधानिक संस्था थे।
संवैधानिक पदों पर रहते हुए उन्होंने उन संस्थानों के ऐसे आदर्श स्थापित किए, जिन्हें चाहकर भी कोई भुला नहीं सकता है। वे राज्यसभा के सदस्य रहे। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद भी उन्होंने बखूबी संभाला।
लोकतंत्र की इस यात्रा से साल 2002 में देश के उपराष्ट्रपति के प्रतिष्ठित पद के लिए उन्हें चुना गया। पर इन सबसे जुदा उनका वह व्यक्तित्व है जिसमें हरेक दल का प्रमुख राजनेता उनके अपनेपन की डोर से अपने को बंधा पाता था। उनके साथ की बहुत सारी स्मृतियां हैं। राजनीतिक सोच से ऊपर उठकर हरेक दल के लोगों से आत्मीय संबंध स्थापित करने वाले वह आदर्श व्यक्तित्व थे। मैं यह मानता हूं कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शुचिता को कैसे बनाए रखा जाए, यह उनसे सीखा जा सकता है।
मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने 'अन्त्योदय योजना', 'काम के बदले अनाज' जैसी योजनाएं प्रारंभ की, उससे गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रही जनता का ही भला नहीं हुआ, बल्कि देशभर के अन्य राज्यों ने भी उनकी इन योजनाओं को अपनाकर लोकप्रियता प्राप्त की।
मुझे उनका जो सबसे विशिष्ट पहलू नजर आता है वह है, उनका 'बाबोसा' का रूप। प्यार से लोग उन्हें बाबोसा कहते थे और यह संबोधन इसलिए उनके साथ जुड़ गया कि पहले लोग सरकार तक आते थे और उनके कार्यकाल में सरकार को लोगों तक पहुंचाने का कार्य हुआ। बाबोसा वह होता है, जो सबका ख्याल रखता है. सच में वह बहुत मिलनसार थे। आप खुद आकलन करें, उनके संवैधानिक कार्यों का कि उन्होंने जमींदारी घराने से होते हुए जमींदारी उन्मूलन का समर्थन किया। विरोध के बावजूद रूप कंवर सती मामले में सती प्रथा की निंदा की। गरीबों को अधिकार दिलाने के लिए राज की योजनाओं को उन तक पहुंचाने की व्यवस्था की।
मैंने स्व. भैरोंसिंह शेखावत को बहुत निकट से देखा है। वह जैसे थे वैसा ही दिखने का प्रयास करते थे। मैं हिंदी बोलता और यह अनुभव करता था कि वह अपनी हिंदी में भी मारवाड़ी शब्द बार-बार ले आते थे। यह उनके संस्कार थे। मैंने कई बार उनको कोई काम बताया और खुद भूल जाता। पर आश्चर्य होता था कि कुछ समय बाद वह उसके पूरा किए जाने की जानकारी देते थे। छोटी से छोटी बात को वह याद रखते थे। कोई राय उन्हें अधिकारियों से भी मिलती तो उसकी पड़ताल करते थे।
कई बार बड़ी-बड़ी जनसभाओं में मैंने देखा अंतिम छोर पर कोई व्यक्ति खड़ा है और वह दूर से ही उसका नाम लेकर उसे पास बुलाते थे, उसके पास चले जाते थे। यह मूल्य थे। उनका जन सरोकार था। लोकतंत्र इसी से सुदृढ़ होता है, जिन्होंने आपको चुनकर संसदीय संस्थाओं में भेजा है, उनके बारे में आपको पूरा-पूरा ज्ञान हो। अपने कार्यकर्ताओं ही नहीं आम जन से भी आपका इस तरह से जुड़ाव हो।
देश की सबसे बड़ी योजना अंत्योदय कैसे प्रकाश में आई, इसकी थोड़ी-बहुत जानकारी मुझे है। भैरोसिंह संविधान की संस्कृति से निकट से जुड़े हुए थे। उन्होंने दरिद्रनारायण के उत्थान के लिए इस योजना को मूर्त रूप दिया। हमारा संविधान जिस सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय की बात करता है, उस सारे की पालना 'अन्त्योदय' में समाहित है।
भैरोसिंह जी ने अन्त्योदय को मानवीय संवेदना से जोड़ा। ऐसे ही उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों से हर आम और खास का नाता कराया। राजनीतिक सूझ के साथ उदात्त मानवीय मूल्यों के पक्षधर वह संबंध निभाने के उस कौशल से जुड़े थे, जिसमें अपने-पराए का भेद समाप्त हो जाता है। उनको सच्ची श्रद्धांजलि यही है कि हम उनके बताए आदर्श संवैधानिक मूल्यों पर चलते हुए सद्भाव की संस्कृति को आत्मसात करें। राजनीति में शुचिता स्थापित करते हुए अपनेपन का संसार रचें।