कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉग: भगत सिंह : मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वफा आएगी

By कृष्ण प्रताप सिंह | Published: September 29, 2023 03:18 PM2023-09-29T15:18:23+5:302023-09-29T15:18:48+5:30

ऐतिहासिक लाहौर षडयंत्र केस में जिरह कर रहे सरकारी वकील ने एक दिन कोई ऐसी बात कह दी जो भगत सिंह की निगाह में मूर्खतापूर्ण भी थी और नागवार भी.

Bhagat Singh: The fragrance of loyalty will also come from my soil | कृष्णप्रताप सिंह का ब्लॉग: भगत सिंह : मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वफा आएगी

फाइल फोटो

वर्ष 1907 में आज के ही दिन जन्मे और होश संभालने के बाद से ही देश की आजादी के लिए तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ युद्धरत रहकर 1931 में 23 मार्च को लाहौर सेंट्रल जेल में शहीद हुए और शहीद-ए-आजम कहलाए भगत सिंह के 24 साल से भी कम के जीवन में संघर्ष, जीवट और बहादुरी के इतने आयाम हैं कि उनकी चर्चा में तय करना मुश्किल हो जाता है कि बात कहां से शुरू की जाए.

ऐतिहासिक लाहौर षडयंत्र केस में जिरह कर रहे सरकारी वकील ने एक दिन कोई ऐसी बात कह दी जो भगत सिंह की निगाह में मूर्खतापूर्ण भी थी और नागवार भी. उसे सुनकर वे बेसाख्ता हंसने लगे तो वकील की त्यौरियां चढ़ गईं. उसने जज से मुखातिब होकर कहा, 'योर ऑनर, अभियुक्त का इस तरह हंसना मेरी ही नहीं अदालत की और आपकी भी तौहीन है और इसके विरुद्ध सख्ती की जानी चाहिए." 

इस पर जज साहब तो तत्काल कुछ नहीं बोले, लेकिन भगत सिंह ने कहा, "वकील साहब, मैं तमाम जिंदगी हंसता रहा हूं और आगे भी हंसता रहूंगा. फांसी के तख्ते पर भी मैं आपको हंसता हुआ ही मिलूंगा. इस वक्त तो आप मेरे हंसने पर जज साहब से शिकायत कर रहे हैं, तब किससे करेंगे?"

वकील को समझ में नहीं आया कि इसके बाद वह क्या कहे, लेकिन भगत सिंह ने शहादत के दिन भी अपनी कही इस बात को याद रखा और सही सिद्ध कर दिखाया. जब उन्हें अपनी कालकोठरी से फांसीघर की ओर चलने को कहा गया, उस वक्त वे ब्लादिमिर लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे, जो उन्हें बहुत अनुरोध करने पर अपने वकील प्राणनाथ मेहता की मार्फत एक दिन पहले ही मिल पाई थी.

उन्होंने किंचित भी विचलित हुए बिना कहा, "ठहरो, अभी एक क्रांतिकारी की दूसरे से मुलाकात हो रही है. इसे हो लेने दो." 

फिर हंसते हुए सुखदेव व राजगुरु के बीच जाकर अपने दोनों हाथ उन दोनों के क्रमशः दाहिने व बायें हाथों में डाल दिए और 'इंकलाब जिंदाबाद' और 'साम्राज्यवाद मुर्दाबाद' के नारे लगाने लगे. फिर मिलकर शायर लालचंद फलक की ये पंक्तियां गायीं: दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्टी से भी खुशबू-ए-वफा आएगी.

दरअसल, अपनी शहादत के निर्णायक असर को लेकर वे बहुत आश्वस्त थे. उन्हीं के शब्दों में: 'मेरे दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते फांसी चढ़ जाने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए बलिदान होने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि साम्राज्यवाद की सारी शैतानी शक्तियों के लिए मिलकर भी इंकलाब को रोकना संभव नहीं होगा."

Web Title: Bhagat Singh: The fragrance of loyalty will also come from my soil

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