Ayodhya Ram Mandir: तेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार, काहे को डरे..!
By Amitabh Shrivastava | Published: January 6, 2024 02:48 PM2024-01-06T14:48:56+5:302024-01-06T14:54:13+5:30
Ayodhya Ram Mandir: महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक मंदिर के उद्घाटन से उफनती जन भावनाओं को भुनाना आसान दिख रहा है.
Ayodhya Ram Mandir: जैसे-जैसे अयोध्या के राम मंदिर के उद्घाटन का समय समीप आ रहा है, वैसे-वैसे राम मंदिर आंदोलन से जुड़े लोगों की बाछें खिलती जा रही हैं. निश्चित ही इसमें एक वर्ग ऐसा है, जिसने नि:स्वार्थ भाव से धार्मिक लड़ाई लड़ी और कानून के दायरे में परिणाम हासिल किए. दूसरी ओर वे लोग भी हैं, जिन्हें संघर्ष का लाभ अपने राजनीतिक भविष्य में भी दिखा.
महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक मंदिर के उद्घाटन से उफनती जन भावनाओं को भुनाना आसान दिख रहा है. हालांकि राज्य में मंदिर की लड़ाई में भाजपा की भागीदार शिवसेना भी है, किंतु उसका दो-फाड़ हो जाना वर्तमान परिदृश्य में नुकसानदेह साबित हो रहा है.
पिछले कुछ दिनों से राज्य में बनते चुनावी माहौल के बीच भाजपा ने 45 लोकसभा सीटों पर दावा करना आरंभ कर दिया है. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले 51 प्रतिशत मतों को मिलने का दावा कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर शिवसेना का शिंदे गुट 48 सीटों को जीतने का दावा कर रहा है.
हालांकि दोनों के बीच सीटों का बंटवारा तय नहीं हुआ है, लेकिन उत्साह इतना अधिक है कि दोनों दल किसी दूसरे दल के लिए कोई एक सीट भी जीत पाना मुश्किल मान रहे हैं. वर्तमान में दोनों दलों के साथ गठबंधन में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का एक टूटा हुआ दल हिस्सा है, जो अजित पवार के नेतृत्व में सरकार का भाग है.
अवश्य ही उसे भी सीटों के बंटवारे में अपने हिस्से की उम्मीद होगी. ऐसे में तीनों दलों का अपनी-अपनी सीटों पर सौ फीसदी सकारात्मक परिणाम पाना निश्चित नहीं हो सकता है, जबकि तीनों ही दलों का मत आधार अलग-अलग है. भाजपा और शिवसेना जब मिलकर चुनाव लड़ते थे, तब दोनों दल बमुश्किल एक-दो बार ही 50 प्रतिशत मतों का आंकड़ा छू पाए.
सीधे तौर पर देखा जाए तो राज्य में कांग्रेस के अलावा कोई भी दल अकेले दम पर पचास प्रतिशत से अधिक मत कभी प्राप्त नहीं कर सका. कांग्रेस को भी 50 प्रतिशत से अधिक आंकड़ा तब मिला, जब बाकी दल काफी कमजोर थे. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में पक्ष और विपक्ष दोनों में ही अलग-अलग विचारधारा के लोग हैं.
विपक्ष में जहां राकांपा का एक भाग और कांग्रेस के साथ शिवसेना का एक भाग है, वहीं दूसरा सत्ता पक्ष में शिवसेना और राकांपा का टूटा भाग भाजपा के साथ है. दोनों तरफ दक्षिणपंथी विचारधारा से लेकर धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर चलने वाले लोग हैं. बीते सभी चुनाव में दोनों के बीच आमने-सामने की लड़ाई होती थी, लेकिन इस बार संमिश्रित मुकाबला होने के आसार बन रहे हैं.
इनके अलावा बाकी छोटे दल भी अपना भाग्य आजमाने के लिए चुनावी मैदान में उतरे तो संघर्ष सीधा नहीं होगा. यदि राम के नाम पर मत मांगने की स्थितियां बनीं तो दोनों ही पक्षों में उपस्थित धर्मनिरपेक्ष दलों का क्या होगा? उनके साथ जुड़े धर्मनिरपेक्ष मत किस तरफ जाएंगे? यदि भाजपा ने मंदिर निर्माण का पूरा श्रेय लिया तो उसके साथीदारों को क्या मिलेगा?
स्पष्ट है कि यह राजनीतिक दलों के साथ मतदाता के लिए संभ्रम की स्थिति है. उसके लिए चुनावी निर्णय लेना आसान नहीं है. हालांकि, भाजपा देशभर में राम मंदिर के उद्घाटन के लिए विशेष माहौल तैयार कर भगवान पर आस्था रखने वालों को अपने साथ जोड़ने की कोशिश कर रही है. अनेक स्थानों पर अलग-अलग कार्यक्रम इसकी झांकी प्रस्तुत कर रहे हैं.
किंतु यदि भाजपा के आंकड़ों पर नजर दौड़ाई जाए तो भाजपा मंदिर आंदोलन के बीच वर्ष 1989 में हुए लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में केवल दस सीटें जीत पाई थी. उसके बाद वर्ष 1991 के आम चुनाव में उसे पांच सीटें मिलीं. फिर अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद वर्ष 1996 के चुनाव में भी उसे केवल 18 सीटें पाकर समझौता करना पड़ा.
वह भी शिवसेना के साथ साझा चुनाव लड़ने का लाभ लेते हुए उसे यह परिणाम मिला था. इसके बाद शिवसेना के साथ गठबंधन बना रहा और वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे 23 सीटें मिलीं, जो कि सबसे अच्छा प्रदर्शन माना गया. अब शिवसेना, राकांपा दोनों ही टूट चुके हैं. चुनाव में मतविभाजन तय है.
फिर अतिउत्साह में 48 सीटों को जीतने का दावा करना किसी आश्चर्य से कम नहीं है. ध्यान देने योग्य यह भी है कि भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय बैठक में लोकसभा चुनाव में चार सौ पार का नारा और पचास प्रतिशत से अधिक मत पाने का लक्ष्य रखा है. कुछ इसी कारण प्रदेश इकाई भी अपने जोश में 51 फीसदी मत पाने का दावा कर रही है.
उसे लग रहा है कि रामजी उसका बेड़ा पार कर देंगे, लेकिन राज्य के चुनावी समीकरण न कभी अतीत और न वर्तमान में इतने आसान रहे हैं कि कोई भी दल या गठबंधन 48 सीटों को जीत ले या कोई एक दल आसानी से पचास प्रतिशत मतों को पा ले. भाजपा राज्य में केवल ‘मोदी मैजिक’ या ‘मंदिर निर्माण’ के नाम पर जनमत को अपने पक्ष में मान रही है.
लेकिन एक वर्ग केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर खासा विरोध करने की तैयारी में भी है. मुद्दे, समस्याएं और चिंताएं समय के साथ बदलती हैं, जिनका प्रभाव सत्ताधारी दलों पड़ता है. गठबंधन के अपने लाभ-हानि से इंकार नहीं किया जा सकता है. प्रदेश सरकार प्रत्यक्ष रूप से तीन दलों के बीच की साझेदारी से चल रही है, किंतु अप्रत्यक्ष रूप से उसे अनेक छोटे दलों का सहारा भी है.
चुनाव में सभी अपने आभामंडल से अपना-अपना योगदान देंगे. इसलिए किसी एक मुद्दे पर जीत की पक्की उम्मीद करना खयाली पुलाव साबित हो सकता है. यह सही है कि राजनीति में आत्मविश्वास का होना आवश्यक होता है. किंतु उसका सही आकलन वास्तविकता के धरातल से ही होता है.
भाजपा जमीनी लड़ाई में विश्वास रखती है. इसलिए वह जमीनी हकीकत को भी समझने का प्रयास करेगी. हालांकि सभी दलों में चुनाव को लेकर राजनेताओं के जुमले तो चलते रहते हैं, कुछ के सच्चाई में बदल जाते हैं और कुछ के हवा में ही रह जाते हैं.