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अवधेश कुमार का ब्लॉग: कश्मीर में अपने इरादे में सफल नहीं होंगे आतंकी

By अवधेश कुमार | Updated: October 9, 2021 12:03 IST

इसमें दो राय नहीं कि इन हमलों से स्थिति बिगाड़ने की कोशिश हुई है। लेकिन आतंकवादी और पाकिस्तान अपने लक्ष्य में कतई सफल नहीं हो सकते। पिछले 2 वर्षो के अंदर के परिवर्तन पर नजर रखने वाले जानते हैं कि आज का जम्मू-कश्मीर वह नहीं है जो पहले था।

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आतंकवादियों ने कश्मीर घाटी में फिर से 1990 का दशक दोहराने का दुस्साहस किया है। जिस तरह श्रीनगर के विद्यालय में पहचान पत्र देखकर  एक हिंदू शिक्षक और  वहां की सिख प्रिंसिपल को गोली मारी गई, वह कश्मीर में जारी आतंकवाद के उसी घिनौने रूप को सामने लाती है जिसका सामना जम्मू-कश्मीर और भारत लंबे समय से करता रहा है। आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का हिट स्क्वाड कहलाने वाले संगठन टीआरएफ यानी द रेजिस्टेंस फ्रंट, जिसने इसकी जिम्मेदारी ली, उसने कहा है कि हमने छात्नों और उनके अभिभावकों को 15 अगस्त का स्वतंत्नता दिवस कार्यक्र म नहीं करने को कहा था लेकिन शिक्षक दीपक चंद तथा सुपिंदर कौर ने 15 अगस्त का कार्यक्रम आयोजित किया और बच्चों सहित उनके अभिभावकों को शामिल किया। इस बयान और उनके कृत्य से कल्पना की जा सकती है कि आतंकवादी कश्मीर घाटी में फिर से क्या संदेश देना चाहते हैं। हालांकि 15 अगस्त के कार्यक्र म में वहां के सारे शिक्षक शामिल हुए, यह भी संभव नहीं कि केवल एक हिंदू शिक्षक और एक सिख प्रिंसिपल के कहने से ही कार्यक्रम आयोजित हो गया होगा। किंतु आतंकवादियों ने मुसलमान शिक्षकों को नहीं मारा। 7 अक्तूबर की इस घटना के पूर्व 5 अक्तूबर को 3 और 2 अक्तूबर को भी दो हत्याएं आतंकवादियों ने की थीं और सब का कारण एक ही बताया है उन्होंने।  वह कारण है, भारत देश के प्रति निष्ठा रखना।

निश्चित रूप से 5 अक्तूबर को श्रीनगर की ही एक फार्मेसी के मालिक माखनलाल बिंदरू की इकबाल पार्क में उनके व्यावसायिक परिसर के अंदर आतंकवादियों द्वारा  गोली मारकर हत्या की घटना से वहां रहने वाले तथा वापसी पर विचार करने वाले हिंदुओं में भय पैदा हुआ है। पिछले कुछ दिनों में घाटी में हिंदुओं पर आतंकवादी हमले बढ़े हैं।  बिंदरू के पहले ठेले पर गोलगप्पे बेचने वाले बिहार के वीरेंद्र पासवान इनका शिकार हुए। पिछले महीने ही कुलगाम जिले के वनपुह गांव में आतंकवादियों ने बंटू शर्मा को मौत के घाट उतार दिया था। इससे पहले राकेश पंडित, शंकर कुमार, आकाश मेहरा सभी आतंकवादियों का शिकार हुए। आतंकवादी और उनको प्रायोजित करने वाला पाकिस्तान क्या चाहते हैं, यह बताने की आवश्यकता नहीं।

धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की स्थिति में आमूल बदलाव आतंकवादियों तथा पाकिस्तान को सहन नहीं हो पा रहा। वे इस बदलाव को ध्वस्त करने के लिए जो कुछ भी कर सकते हैं, करने की कोशिश कर रहे हैं। उनको लगता है कि अगर हिंदुओं, सिखों की फिर से हत्या शुरू की तो पलायन कर गए पंडितों की वापसी का जो माहौल बना है तथा कानून में परिवर्तन के बाद भारत की अन्य जगहों से व्यवसाय और अन्य कार्यो के लिए जो गैर मुस्लिम समुदाय के लोग वहां आने लगे हैं, उनको आघात लगेगा। पाकिस्तान और आतंकवादियों की सोच यही है कि अगर कश्मीर घाटी में एक ही समुदाय यानी मुस्लिम रहें तो उनके लिए अलगाववाद भड़काना तथा पाकिस्तान के समर्थन में फिर से नारे लगवाना आदि आसान हो जाएगा। तो क्या वे अपने इस कुत्सित उद्देश्य में सफल होंगे?

इसमें दो राय नहीं कि इन हमलों से स्थिति बिगाड़ने की कोशिश हुई है। लेकिन आतंकवादी और पाकिस्तान अपने लक्ष्य में कतई सफल नहीं हो सकते। पिछले 2 वर्षो के अंदर के परिवर्तन पर नजर रखने वाले जानते हैं कि आज का जम्मू-कश्मीर वह नहीं है जो पहले था। बिंदरू की हत्या के बाद उनकी डॉक्टर पुत्नी ने जिस तरह मीडिया के सामने सार्वजनिक रूप से आतंकवादियों को चुनौती दी, छाती ठोंक कर कहा कि हम कश्मीरी हिंदू पंडित हैं, यहां रहेंगे, वैसी स्थिति की कल्पना क्या कुछ वर्ष पहले की जा सकती थी? सिख प्रिंसिपल की हत्या के बाद जिस ढंग से श्रीनगर में ही आक्रोश प्रदर्शन हुआ, वह भी पहले संभव नहीं था। इसके विपरीत अगर कोई आतंकवादी मारा जाता तो उसके जनाजे में हजारों की भीड़ निकलती, भारत विरोधी नारे लगाए जाते और सुरक्षा बल वहां मूकदर्शक बने रहते थे। तो यह सब बदलाव का द्योतक है। कश्मीर के इस बदलाव ने वहां हिंदुओं, सिखों सबके अंदर आत्मविश्वास पैदा किया है कि अब वहां पहले वाली स्थिति लौट कर नहीं आने वाली।

इसका संदेश कश्मीर के बाहर भी गया है। तभी तो कश्मीर आने वाले पर्यटकों, व्यवसायियों आदि की संख्या लगातार बढ़ रही है। मोटा-मोटी आंकड़ा यह है कि जुलाई से लेकर सितंबर तक हर महीने औसतन 10 से 12 लाख के बीच बाहरी लोग वहां आए हैं। इन सबसे वहां के माहौल पर अंतर पड़ा है। बरसों से ध्वस्त वहां की आर्थिक गतिविधियां पटरी पर लौट रही हैं। व्यवसायी भी वहां निवेश करने आने लगे हैं। जैसी जानकारी है, करीब 26 हजार करोड़ रुपए के निवेश का एमओयू भी हस्ताक्षरित हुआ है।

जाहिर है, केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन को इस आत्मविश्वास को केवल सुदृढ़ करना है। इस वर्ष तुलनात्मक रूप से पिछले तीन दशकों के मुकाबले आतंकवाद की सबसे कम घटनाएं हुई हैं। तो हमें हौसला रखना चाहिए कि आगे बढ़ चुका कश्मीर अब पीछे नहीं लौटेगा। आतंकवादी सफल नहीं होंगे। उनका काम तमाम होगा तथा कश्मीर को सामान्य स्थिति में लौटने से अब कोई नहीं रोक सकता।

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