संपादकीयः कांग्रेस नेतृत्व ने अनुभव पर जताया भरोसा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 15, 2018 01:38 IST2018-12-15T01:38:50+5:302018-12-15T01:38:50+5:30
कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के चयन में कमलनाथ के नाम पर सहमति जताकर युवा नेतृत्व के बजाय अनुभव को प्राथमिकता दी. वैसे भी प्रदेश कांग्रेस के दूसरे तमाम बड़े नेता चाहते थे कि कमलनाथ ही कुर्सी पर बैठें.

संपादकीयः कांग्रेस नेतृत्व ने अनुभव पर जताया भरोसा
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावों में आशातीत सफलता के बाद कांग्रेस नेतृत्व मुख्यमंत्री के चयन को लेकर सतर्क और सजग नजर आया है. कांग्रेस नेतृत्व को यह बात भलीभांति मालूम है कि देश के तीन हृदय प्रदेशों में मिली सफलता को आगामी लोकसभा चुनावों में दोहराने के लिए जरूरी है कि उसका प्रादेशिक नेतृत्व न केवल जोश के साथ होश में ही रहे बल्कि भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप भी अपने आपको ढाले.
इसलिए कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री के चयन में कमलनाथ के नाम पर सहमति जताकर युवा नेतृत्व के बजाय अनुभव को प्राथमिकता दी. वैसे भी प्रदेश कांग्रेस के दूसरे तमाम बड़े नेता चाहते थे कि कमलनाथ ही कुर्सी पर बैठें. युवा होने के नाम पर यदि सिंधिया का राजतिलक किया जाता तो प्रदेश कांग्रेस के भीतर गुटीय टकराव की आशंका बढ़ जाती. यह खतरा इसलिए भी बड़ा था क्योंकि कुछ माह बाद ही लोकसभा चुनाव होने वाले हैं.
ऐसे में गुटीय टकराव कांग्रेस की चुनावी संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्थान पर प्रशासनिक अनुभव के धनी और बुजुर्ग राजनेता कमलनाथ को मुख्यमंत्री पद सौंपने का फैसला किया. मध्य प्रदेश में अपनाए गए फामरूले की तरह ही राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को एक बार फिर मुख्यमंत्री पद सौंप दिया गया.
इसके साथ ही सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने वरिष्ठ नेताओं के साथ ही युवाओं को भी अपने साथ रखा है. राजस्थान में ये दोनों ही नेता अत्यंत लोकप्रिय हैं. राजस्थान में कांग्रेस की समस्या यह थी कि वहां सचिन पायलट चाहते थे कि मुख्यमंत्री वही बनें. वे इसके लिए दबाव भी बना रहे थे. उनके समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन तक किए.
माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश और राजस्थान की तरह ही छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व सर्वस्वीकार्य फामरूला लेकर शनिवार तक आ सकता है. जाहिर है तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव की सफलता को कांग्रेस नेतृत्व भविष्य में कायम रखना चाह रहा है इसीलिए वह समन्वय के साथ आगे बढ़ रहा है.
राहुल गांधी ने जिस तरह से अनुभवी और युवा नेताओं को एक साथ रखा है, यह उनके नेतृत्व कौशल को दर्शाता है. यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि इन तीनों राज्यों में चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी गुटबाजी पर अंकुश लगाने में राहुल गांधी सफल नजर आए. यदि वे सभी राज्यों में समन्वय का यह फामरूला लागू कर पाए तो कांग्रेस के अच्छे दिन आ सकते हैं. फिर दिल्ली दूर नहीं रह जाएगी.