भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणः विश्वसनीयता के संकट में फंसा एएसआई!, 2014 में शुरू हुई कीलाडी खुदाई को ऐतिहासिक खोज...

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: October 18, 2025 05:15 IST2025-10-18T05:15:29+5:302025-10-18T05:15:29+5:30

Archaeological Survey of India: पुरातत्वविद् के. अमरनाथ रामकृष्ण और तमिलनाडु में कीलाडी उत्खनन से जुड़ा हालिया विवाद इस गहरे मुद्दे को उजागर करता है.

Archaeological Survey of India ASI faces credibility crisis excavation Keeladi began in 2014 hailed historic discovery blog Shashi Tharoor | भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षणः विश्वसनीयता के संकट में फंसा एएसआई!, 2014 में शुरू हुई कीलाडी खुदाई को ऐतिहासिक खोज...

Archaeological

Highlights जब 2017 में रामकृष्ण का अचानक असम तबादला कर दिया गया. स्थानांतरण को व्यापक रूप से निष्कर्षों को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा.एएसआई ने विवादास्पद रूप से दावा किया कि उस स्थल पर कोई महत्वपूर्ण खोज नहीं हुई है.

शशि थरूर

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई), जिसे भारत के समृद्ध इतिहास का संरक्षक माना जाता है, विश्वसनीयता के एक गंभीर संकट में फंस गया है. यह केवल कुछ खोई हुई कलाकृतियों या देरी से मिली रिपोर्ट का मामला नहीं है, जो भारत सरकार के अधीन किसी भी नौकरशाही संस्थान में आम बात है; यह पुरातात्विक कार्यकलापों की अखंडता और राजनीतिक एजेंडों के प्रति उसकी संवेदनशीलता का मामला है. पुरातत्वविद् के. अमरनाथ रामकृष्ण और तमिलनाडु में कीलाडी उत्खनन से जुड़ा हालिया विवाद इस गहरे मुद्दे को उजागर करता है.

रामकृष्ण के नेतृत्व में 2014 में शुरू हुई कीलाडी की खुदाई को एक ऐतिहासिक खोज के रूप में सराहा गया. इसने एक परिष्कृत, साक्षर शहरी समाज का पता लगाया जो सिंधु घाटी सभ्यता के हमारे ज्ञात इतिहास से भी पहले का था, और लौह युग व प्रारंभिक ऐतिहासिक काल के बीच ऐतिहासिक अंतर को पाटने के लिए महत्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान किए.

लेकिन इस परियोजना ने एक नाटकीय और संदिग्ध मोड़ तब ले लिया जब 2017 में रामकृष्ण का अचानक असम तबादला कर दिया गया. इस विवाद पर लिखने वाले विद्वान स्वरति सभापंडित और सीपी राजेंद्रन ने इस स्थानांतरण को व्यापक रूप से निष्कर्षों को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा.

कहा जाता है कुछ लोग इस बात से नाखुश थे कि दक्षिण भारत के एक स्थल ने एक ऐतिहासिकता और सभ्यतागत प्राचीनता का एक ऐसा स्तर हासिल कर लिया है जिसे अब तक उत्तर भारत का ही विशेषाधिकार माना जाता था. इससे भी बुरी बात यह है कि रामकृष्ण के स्थानांतरण के बाद, एएसआई ने विवादास्पद रूप से दावा किया कि उस स्थल पर कोई महत्वपूर्ण खोज नहीं हुई है.

उत्खनन के तीसरे चरण को रोक दिया. इसके कारण मद्रास उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा और उस स्थल को तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग को हस्तांतरित कर दिया गया, जिसने तब से हजारों और कलाकृतियों का पता लगाया है, जिससे उस स्थल का महत्व और भी पुख्ता हो गया है और एएसआई के उन अधिकारियों की पेशेवर ईमानदारी पर गंभीर संदेह पैदा हो गया है जिन्होंने पहले यह निर्णय लिया था.

रामकृष्ण के 2021 में तमिलनाडु लौटने और प्रारंभिक चरणों पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद भी, एएसआई ने संशोधन का अनुरोध किया. आलोचकों का मानना है कि यह कदम निष्कर्षों के महत्व को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया था. सभापंडित और राजेंद्रन का तर्क है कि यह प्रकरण ‘पुरातात्विक मामलों में राजनीति को रेखांकित करता है और एएसआई के सामने विश्वसनीयता के संकट को दर्शाता है.’

केंद्र सरकार का यह तर्क कि केवल एक ही निष्कर्ष व्यापक सत्यापन के बिना नए ऐतिहासिक आख्यानों को पुष्ट नहीं कर सकता, वैज्ञानिक जांच का एक मान्य सिद्धांत है. लेकिन सभापंडित और राजेंद्रन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आचरण में स्पष्ट विसंगति की ओर इशारा करते हैं. उपेक्षा और देरी का ऐसा ही एक पैटर्न तमिलनाडु के आदिचनल्लूर और शिवगलाई स्थलों के साथ भी देखा गया,

जहां लौह युग की कलाकृतियों से संबंधित निष्कर्षों को प्रकाशित करने में वर्षों लग गए और अदालती हस्तक्षेप भी करना पड़ा. कीलाडी के साथ अपने व्यवहार के बिल्कुल विपरीत, राजस्थान में एक उत्खनन के प्रति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का दृष्टिकोण बिल्कुल अलग था. एक प्राचीन पुरावाहिनी (पैलियोचैनल) की खोज को तुरंत ऋग्वेद में वर्णित पौराणिक सरस्वती नदी से जोड़ दिया गया,

और एक रिपोर्ट में तो ‘महाभारत काल’ से भी इसका संबंध होने का दावा किया गया. जबकि लोगों ने भारतीय सभ्यता के दक्षिणी मूल का तर्क दिया है - पारंपरिक रूप से स्वीकृत सिंधु घाटी की उत्पत्ति के बजाय - और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पास इस बारे में संकीर्ण सोच रखने का कोई कारण नहीं है.

इस विषय पर क्लेरेंस मैलोनी द्वारा लिखित एक पुस्तक, द बिगिनिंग्स ऑफ सिविलाइजेशन इन साउथ इंडिया, मुख्यधारा के इस कथन को चुनौती देती है कि भारतीय सभ्यता उत्तर-पश्चिम में हड़प्पा (सिंधु घाटी) संस्कृति के साथ शुरू हुई थी. इसके बजाय, उनका मानना है कि राजत्व, संगठित धर्म और लिपि जैसी विशेषताओं वाले प्रारंभिक नगरीय केंद्र तटीय तमिलनाडु में उभरे,

जो श्रीलंका और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ समुद्री व्यापार से प्रभावित थे. वे इस विचार के समर्थन में प्रारंभिक तमिल और सीलोन के शिलालेखों और साहित्य का हवाला देते हैं कि दक्षिणी भारत की सभ्यता के विकास की अपनी एक अलग दिशा थी, जो सिंधु घाटी से स्वतंत्र थी.चेन्नई की रोजा मुथैया रिसर्च लाइब्रेरी द्वारा दिसंबर 2019 में प्रकाशित ‘जर्नी ऑफ अ सिविलाइजेशन: इंडस टू वैगई’ में, सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी आर. बालकृष्णन, जिन्होंने 2018 में पद छोड़ दिया, ने सिंधु घाटी सभ्यता के लिए द्रविड़ आधार का प्रस्ताव रखा है,

जो इस मुख्यधारा के विचार को चुनौती देता है कि भारतीय सभ्यता केवल उत्तर-पश्चिम में शुरू हुई थी. वह सिंधु घाटी और दक्षिण के प्राचीन तमिल क्षेत्रों, विशेष रूप से वैगई नदी घाटी के बीच एक सभ्यतागत सातत्य का तर्क देते हैं. यह पुस्तक संगम संग्रह सहित भाषाई, पुरातात्विक और साहित्यिक साक्ष्यों का उपयोग करके यह सुझाव देती है कि तमिल परंपराओं की सिंधु लोगों से गहरी जड़ें हो सकती हैं.

यह उन प्रवासों और सांस्कृतिक आदान-प्रदानों पर भी प्रकाश डालती है जिन्होंने इन क्षेत्रों के बीच स्थानिक और लौकिक अंतराल को पाटा. इस कृति की भारतीय प्रागैतिहास पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करने और उत्तर-दक्षिण सभ्यतागत आख्यानों को जोड़ने के प्रयास के लिए प्रशंसा की गई है. कीलाडी उत्खनन बालकृष्णन के शोध की पुष्टि करता प्रतीत होता है.

अगर आप वैकल्पिक इतिहास और सांस्कृतिक निरंतरताओं में रुचि रखते हैं, तो ये किताबें पढ़ने लायक हैं. पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कीलाडी के निष्कर्षों को खारिज करते हुए उनके साक्ष्यों और तर्कों को क्यों नजरअंदाज करता है? क्या ऐसा हो सकता है कि एएसआई नेतृत्व अपने फैसलों में पेशेवर नहीं, बल्कि राजनीतिक रूप से काम कर रहा हो?

अगर ऐसा है तो क्या एएसआई का काम यही होना चाहिए? एएसआई के सामने मौजूद विश्वसनीयता का संकट एक बड़ी समस्या का लक्षण है और वह है इसकी संस्थागत स्वायत्तता का क्षरण तथा राष्ट्रवादी उत्साह के प्रति इसकी बढ़ती अधीनता. अपनी वैधता बहाल करने के लिए, एएसआई को व्यापक सुधारों, अधिक वित्तीय स्वायत्तता और एक मजबूत, वैज्ञानिक ढांचे के प्रति प्रतिबद्धता की आवश्यकता है जो भारत के ऐतिहासिक अतीत की बहुलता को समाहित करे, न कि किसी एकांगी, राजनीतिक रूप से सुविधाजनक आख्यान को थोपने की कोशिश करे.

अब समय आ गया है कि सरकार उन्हें बताए कि भारत को एक ऐसे एएसआई से कहीं अधिक लाभ होगा जिसका अपने निष्कर्षों के लिए दुनिया भर में सम्मान किया जाता हो, बजाय इसके कि वह अपने आकाओं को खुश करने की कल्पना में ही उलझा रहे.  

Web Title: Archaeological Survey of India ASI faces credibility crisis excavation Keeladi began in 2014 hailed historic discovery blog Shashi Tharoor

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे