रहीस सिंह का ब्लॉगः एक संपूर्ण सभ्यता के लिए संकट का सबब बनती महामारी

By रहीस सिंह | Published: March 29, 2020 12:57 PM2020-03-29T12:57:13+5:302020-03-29T12:57:13+5:30

An epidemic causing crisis for an entire civilization | रहीस सिंह का ब्लॉगः एक संपूर्ण सभ्यता के लिए संकट का सबब बनती महामारी

पूरी दुनिया के लिए बड़ा संकट बनता जा रहा है कोरोना वायरस

कई सभ्यताओं के पतन की कहानी पढ़ते समय जो निष्कर्ष सामने आए वे बताते हैं कि सभ्यताओं का पतन (डिक्लाइन) क्रमिक रहा और ध्वंस अकस्मात हुआ. इसके बाद वे सिर्फ अपने निशान छोड़ पाईं, मूल्यों का तो हम सिर्फ अनुमान लगा सकते हैं और उनकी व्याख्या अपने-अपने ढंग से कर सकते हैं या करते हैं. इसी परिप्रेक्ष्य में जब हम कोविड-19 जैसी महामारी और उसके प्रभावों को देखते हैं तो इतिहास के वे पन्ने भी खुलने शुरू हो जाते हैं जिनमें बहुत सी सभ्यताएं दफन हैं. अब देखना यह है कि कोविड-19 के प्रभाव और उससे उत्पन्न होने वाले इकोनॉमिक रेस्पांस का पैटर्न क्या होगा.

इसी से यह तय हो पाएगा कि यह मानव मूल्यों एवं सभ्यता को किस हद तक प्रभावित करेगा. यहां पर हमारे आकलन का परिप्रेक्ष्य अर्थव्यवस्था और उससे उपजी भौतिक सभ्यता तक है जिससे संपूर्ण मानव संस्कृति और उसका जीवन प्रभावित होता है. आज कोविड-19 को लेकर पूरी दुनिया के अर्थशास्त्री अपनी डिबेट्स में केवल दो ही छोर पकड़ रहे हैं. पहला छोर यह है कि इसका प्रभाव अंशकालिक यानी शॉर्ट-लिव्ड होगा और दूसरा है कि यह सस्टेन करेगा. कुछ अध्ययनों के अनुसार मध्य फरवरी से लेकर अब तक इस वायरस ने लगभग 23 ट्रिलियन की ग्लोबल मार्केट वैल्यू का खात्मा कर दिया है.

इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यदि इसका प्रभाव लंबे समय तक रहा तो न केवल पूंजीवादी ढांचे के तंतु बिखरेंगे बल्कि इस पर खड़ी एक संपूर्ण सभ्यता खतरे में पड़ जाएगी. यह तो निष्कर्षो की बात हुई लेकिन इससे पहले यह जानना जरूरी लगता है कि आखिर जिस एक संपूर्ण सभ्यता को सदियों के परिश्रम के बाद खड़ा किया गया है उसके विनाश की कहानी कौन लिख रहा है? इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाए? प्रकृति या मनुष्य अथवा कोई और? अब दूसरा सवाल यह है कि शुरू में यूरोप और अमेरिका की सरकारों ने जो रवैया इस महामारी को लेकर अपनाया, क्या वह उचित था? एक सवाल यह भी है कि हम अब तक ग्लोबलाइजेशन की डींगें हांकते रहे और इसे संपूर्ण विश्व की नियति बनाने के लिए दर्जनों देशों की अर्थव्यवस्था के ध्वंस के गवाह बनते रहे लेकिन आज उसी ग्लोबलाइजेशन की दुकानें और ऑफिसेज क्या कर रहे हैं? क्या वे उसी सक्रियता और ताकत के साथ कोरोना वायरस की महामारी से दुनिया को बचाने के लिए कार्रवाई कर रहे हैं जैसी 9/11 के बाद अफगानिस्तान में हुई थी, इराक में या फिर मध्य-पूर्व के अन्य देशों में हुई?

कुछ विद्वान इसे जैविक युद्घ के नजरिये से देख रहे हैं. उनका तर्क है कि वा¨शंगटन टाइम्स में एक इजराइली वैज्ञानिक के हवाले से लिखा गया है कि इस वायरस का निर्माण वुहान की एक प्रयोगशाला में किया गया. ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी. लेकिन हमें कारक पक्ष की बजाय प्रभाव पक्ष की दृष्टि से देखना चाहिए. पिछले दो दशक के युद्घों को देखें तो आसानी से पता चल जाएगा कि संपूर्ण मानवता ने अज्ञात और ज्ञात संकटों में घिरकर मृत्यु का सामना किया है, फिर चाहे वह अफगान युद्घ हो, इराक युद्घ हो, अरब स्प्रिंग हो या उसके बाद के संघर्ष. लाखों की संख्या में लोग इनका शिकार हुए या फिर शरणार्थी बनकर जीवन जीने के लिए विवश हुए. यह महामारी भी लोगों की जिंदगी ले रही है जिसके उदय का कारण तो वर्तमान व्यवस्था ही है जिसमें बाजार और तकनीक दोनों ही शामिल हैं. संभव है कि यह सस्टेन करे. यदि ऐसा हुआ तो स्थितियां बेहद भयावह होंगी. जो भी हो, कोरोना वायरस ने यदि कुछ शंकाओं को जन्म दिया है तो इसके साथ ही विश्व की प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं को स्वयं के मूल्यांकन का अवसर भी दिया है.

Web Title: An epidemic causing crisis for an entire civilization

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