ब्लॉग: मणिपुर में हिंसा के बीच पूर्वोत्तर में उग्रवाद खत्म होने का दावा

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: December 23, 2024 07:23 IST2024-12-23T07:23:02+5:302024-12-23T07:23:09+5:30

भले ही वह दो जातीय समूहों का संघर्ष हो, लेकिन उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

Amid violence in Manipur insurgency claimed to be over in Northeast | ब्लॉग: मणिपुर में हिंसा के बीच पूर्वोत्तर में उग्रवाद खत्म होने का दावा

ब्लॉग: मणिपुर में हिंसा के बीच पूर्वोत्तर में उग्रवाद खत्म होने का दावा

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को त्रिपुरा में ऐलान किया कि पूर्वोत्तर में उग्रवाद समाप्त हो गया है और अब वहां की पुलिस को अपने दृष्टिकोण में बदलाव लाना होगा, जिससे लोगों को जल्द न्याय मिले. उनके अनुसार बीते सालों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 शांति समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिससे पूर्वोत्तर में शांति आई है. करीब 9,000 सशस्त्र उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है.

केंद्रीय गृह मंत्री अपनी बात उस समय कह रहे थे, जिस समय मणिपुर में जातीय संघर्ष जारी है. इसके अलावा अभी-भी वहां के राज्यों से हथियार बरामद हो रहे हैं. यद्यपि इसमें कोई दो-राय नहीं है कि वर्तमान सरकार ने पूर्वोत्तर की ओर विशेष ध्यान दिया है, किंतु समस्याएं इतनी जल्दी हल नहीं हुई हैं. यूं तो देश में भौगोलिक दृष्टि से पूर्वोत्तर राज्यों का रणनीतिक महत्व है, जिनमें अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा आते हैं.

वर्ष 1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता के समय मणिपुर, त्रिपुरा और असम तीन राज्य ही थे. बाद में राज्यों के पुनर्गठन और समस्याओं तथा चिंताओं के निराकरण के बाद बाकी प्रदेश अलग-अलग सालों में अस्तित्व में आए. माना जाता है कि वर्तमान में सिक्किम सहित पूरे आठ राज्यों में 125 से अधिक प्रमुख स्वदेशी जनजातियां और 232 जातीय समूह रहते हैं और 400 से अधिक बोली बोलते हैं. इसी विविधता के कारण उनकी अपनी समस्याएं भी हैं. हालांकि वहां प्राकृतिक संसाधनों में समृद्धता है, लेकिन औद्योगिक या आर्थिक विकास का कम अनुभव किया गया है. बेरोजगारी युवाओं के बीच हताशा का कारण है. जनसांख्यिकीय परिवर्तनों से लोगों की विशेष जातीय पहचान के साथ-साथ संस्कृति एवं परंपराएं खतरे में पड़ गई हैं.

इसी से उग्रवाद को पनाह मिली. विशेष रूप से असम, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में उग्रवाद को जगह मिली. जिसके माध्यम से अधिकांशत: स्वतंत्र राज्य की स्थिति या क्षेत्रीय स्वायत्तता और संप्रभुता में वृद्धि की मांग गर्माई. मगर विभिन्न केंद्र सरकारों ने अपने-अपने स्तर पर कार्य कर असम, नगालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा जैसे राज्यों के उग्रवाद पर नियंत्रण पा लिया. मगर उसकी जड़ से समाप्ति का इंतजार है, क्योंकि उसकी पुष्टि जनता ही करेगी. हालांकि शाह कहते हैं कि पुलिस ने चार दशकों तक पूर्वोत्तर में उग्रवाद से लड़ाई लड़ी, जो समाप्त हो चुका है. ऐसे में पुलिस बल के दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है ताकि लोगों को प्राथमिकी दर्ज होने के तीन साल के अंदर न्याय मिल सके.

किंतु इस दावे को मणिपुर जैसे राज्य बार-बार खारिज कर रहे हैं. उसे केवल विपक्ष का उठाया हुआ मुद्दा मानने से अधिक जटिल समस्या के रूप में देखना चाहिए. वहां हजारों लोग बेघर हो चुके हैं. सरकारी प्रतिष्ठानों से लेकर नेताओं और पुलिस पर हमले हो रहे हैं. भले ही वह दो जातीय समूहों का संघर्ष हो, लेकिन उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इसलिए पूर्वोत्तर में उग्रवाद की समाप्ति समग्र रूप से शांति और विकास से स्वीकार की जा सकती है. उससे पहले तो सब बातें हैं बातों का क्या?

Web Title: Amid violence in Manipur insurgency claimed to be over in Northeast

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