आलोक मेहता का ब्लॉग: स्वर्गिक कश्मीर पर अब स्वर्णकलश
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 6, 2019 05:23 AM2019-08-06T05:23:57+5:302019-08-06T05:23:57+5:30
जम्मू-कश्मीर के लिए यह संपूर्ण भारत के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सुबह है. सत्तर वर्षो से दो विधान, दो प्रधान और दो निशान की कलंकित व्यवस्था भुगत रहे जम्मू-कश्मीर को राहत मिली है.
भारत ने आज इतिहास में नया स्वर्णिम अध्याय जोड़ दिया. जम्मू-कश्मीर को सही अर्थो में भारतीय लोकतंत्र से पूरी तरह जोड़ दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने का साहसिक निर्णय किया एवं राष्ट्रपति की अधिसूचना के साथ संसद में घोषणा कर दी.
जम्मू-कश्मीर के लिए यह संपूर्ण भारत के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सुबह है. सत्तर वर्षो से दो विधान, दो प्रधान और दो निशान की कलंकित व्यवस्था भुगत रहे जम्मू-कश्मीर को राहत मिली है. गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में इस क्रांतिकारी बदलाव के साथ राज्य के पुनर्गठन का विधेयक भी पेश कर दिया जिसमें अन्य राज्यों की तरह विधानसभा रखते हुए जम्मू-कश्मीर के अस्तित्व एवं लद्दाख को अलग से केंद्रशासित प्रदेश बनाने का प्रावधान है. इससे तीस वर्षो से आतंकवाद की जहरीली हिंसा को खत्म करने एवं पाक समर्थित आतंकवादी-अलगाववादी संगठनों को नियंत्रित करने में सुविधा होगी.
इसे संयोग या सौभाग्य कहा जा सकता है कि केवल तीन सप्ताह पहले मुझे भी श्रीनगर और पड़ोसी क्षेत्रों में भ्रमण, शीर्ष अधिकारियों, राज्यपाल एवं पचासों नागरिकों से बातचीत का अवसर मिला. पिछले एक वर्ष के दौरान राज्यपाल सत्यपाल मलिक के प्रशासन ने पंचायतों को अधिकारों एवं सुविधाओं से सशक्त बनाकर नया राजनीतिक वातावरण बना दिया. आतंकवाद की हिंसक घटनाओं और दिशाहीन युवाओं की पत्थरबाजी में भारी कमी हुई.
जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक पर्यटन पर निर्भर रही है. हिंसा से पर्यटन उद्योग प्रभावित होता रहा. इसी कारण पर्यटन व्यवसाय से जुड़े करीब पचास प्रतिनिधियों ने एक स्वर से इस बात का आग्रह किया कि आतंकवादी हिंसा की छवि से निजात जरूरी है. इसी तरह विभिन्न संगठनों का वर्षो से बना हुआ दर्द सामने आया कि अनुच्छेद 370 और धारा 35 ए की वजह से बाहरी उद्योग प्रदेश में नहीं आ पाए और युवाओं को बेरोजगारी का सामना करना पड़ा.
सबसे बड़ी विडंबना यह है कि केवल कश्मीरी पंडित ही नहीं, हजारों मुस्लिम परिवारों के सदस्य जम्मू-कश्मीर से भारत के किसी अन्य शहर-राज्य में जाने पर अपने बच्चों को कश्मीर की संपत्ति का अधिकार नहीं दे सकते थे.
दूसरी तरफ पाकिस्तान द्वारा सीमा पार से की जाने वाली गोलाबारी एवं आतंकवादी घुसपैठ जारी रही. दुर्भाग्य यह है कि शेख अब्दुल्ला परिवार (फारूक अब्दुल्ला - उमर अब्दुल्ला), मुफ्ती मोहम्मद और महबूबा मुफ्ती के राज में निहित स्वार्थो एवं भ्रष्टाचार के कारण अलगाववादी संगठन एवं विदेशी चंदों से पलने वाले नेता और उनके साथी सरकारी खजाने एवं जम्मू-कश्मीर बैंक से अरबों रुपया हजम करते रहे.
वरिष्ठ अधिकारियों एवं ईमानदार पुलिस अधिकारियों ने हमें ऐसे अनेक तथ्य और प्रमाण बताए, जिनसे फारूक-उमर अब्दुल्ला और महबूबा सत्ताकाल के भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों की पुष्टि होती है. अदालत इन मामलों पर देर-सबेर फैसला करेगी.
अब राजनीतिक खींचातानी एवं विरोध को किनारे कर कश्मीर को संपूर्ण भारत की प्रगतिधारा से जोड़ने का लाभ मिलना चाहिए.