आलोक मेहता का ब्लॉग: व्यावहारिक और दूरगामी नीतियां बनाएं

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 11, 2019 05:34 AM2019-11-11T05:34:49+5:302019-11-11T05:34:49+5:30

दुनिया के कई देश अब भारत को भी एक विकसित और शक्तिशाली देश की तरह महत्व देते हैं.  भारत से व्यापार करने के लिए हर देश इच्छुक होता है. समस्या यह है कि भारतीय हितों की रक्षा करते हुए खाद्य पदार्थो  के आयात  को लेकर स्पष्ट और कठोर नीति अब तक नहीं बनी है.

Alok Mehta Blog: Make practical and far-reaching policies | आलोक मेहता का ब्लॉग: व्यावहारिक और दूरगामी नीतियां बनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की फाइल फोटो।

एक बार फिर दोनों पक्ष के आंसू दिखाई दे रहे हैं. ऐसा अवसर बहुत कम आता है जबकि जनता के आंसू के साथ सरकार के भी आंसू सामने दिखाई दे रहे हों. प्याज हो या सेब  उत्पादक किसान, व्यापारी,  दुकानदार और खरीददार, जनता के साथ सरकार के लिए भी नया सिरदर्द सामने आया है. राजधानी दिल्ली अथवा कुछ अन्य शहरों में प्याज के दाम 80 से 100  रु. किलो हो जाने पर राजनीतिक दल सड़कों पर आंदोलन भी करने लगे. दिल्ली में कांग्रेस को यही मुद्दा मिल गया और उसको लगा 20 साल पहले की तरह प्याज के दाम को लेकर दिल्ली की वर्तमान राज्य सरकार और कुछ हद तक भाजपा को भी कठघरे में खड़ा कर सत्ता में वापसी हो सकती है.

प्याज के दाम, आयात-निर्यात के मुद्दे पर हर साल हंगामा होता है.  प्याज की कमी होने पर सरकार पहले निर्यात पर अंकुश लगाती है. फिर बाजार में  कीमत बढ़ने पर आयात के लिए टेंडर जारी करने लगती है.  प्याज का उत्पादक किसान हमेशा घाटे में रहता है. उसे अपनी मेहनत का सही मूल्य नहीं मिल पाता.  

प्याज उत्पादन में महाराष्ट्र सबसे आगे रहा है. सारी प्रगति के बावजूद   प्रदेश का किसान कम आमदनी  और कर्ज को लेकर दुखी दिखता है. लगभग यही हाल सेब का उत्पादन करने वाले हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू-कश्मीर के किसानों का बना हुआ है. पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में निर्यात की अपेक्षा सेब का आयात 24 गुना है.

जम्मू-कश्मीर तो फिर भी कुछ वर्षो से आतंकवाद का शिकार रहा है लेकिन हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश सहित कुछ अन्य राज्यों में सेब का उत्पादन और बाजार तक पहुंचाने के लिए समुचित इंतजाम सरकारें अब तक नहीं कर पा रही हैं. इससे भी बड़ा संकट इस बात का है कि भारत के बाजार में विदेश से आने वाले फल और सब्जियों की गुणवत्ता का सही आकलन नहीं होने से जहरीले फल और सब्जियां लोगों के घरों तक पहुंच रही हैं.  

हाल ही में देश के खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्नी रामविलास पासवान स्वयं यह अनुभव भुगत चुके हैं दिल्ली के सबसे महंगे माने जाने वाले खान मार्केट से भी जो फल खरीद कर लाए, वह काटने पर जहरीला निकला. फूड सेफ्टी के लिए वर्षो से काम कर रहा विभाग निकम्मा साबित हो रहा है.

विदेशों से आने वाली सब्जियों और फलों की शुद्धता पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता. कागजों में नियम कानून है लेकिन उनके पालन के लिए कोई उचित व्यवस्था भारत सरकार अब तक नहीं कर पाई है. सबसे मजेदार बात यह है कि दक्षिण एशिया ही नहीं अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी भारत के फूड सिक्योरिटी एक्सपर्ट सलाह देने जाते हैं. फूड सिक्योरिटी के लिए बने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत की स्थिति पर चिंता भी व्यक्त की जाती है लेकिन वह आवाज भारत में कोई नहीं सुनता.

दुनिया के कई देश अब भारत को भी एक विकसित और शक्तिशाली देश की तरह महत्व देते हैं.  भारत से व्यापार करने के लिए हर देश इच्छुक होता है. समस्या यह है कि भारतीय हितों की रक्षा करते हुए खाद्य पदार्थो  के आयात  को लेकर स्पष्ट और कठोर नीति अब तक नहीं बनी है.

दूसरी तरफ सब्जियों और फलों के उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए केंद्र  और राज्य सरकारों की ओर से कई योजनाएं बनती और क्रियान्वित भी होती हैं लेकिन उनके भंडारण तथा बिक्री के लिए कोई तंत्न ठीक से विकसित नहीं हो पाया है.

2018-19 में भारत ने अफगानिस्तान से 11 लाख टन प्याज मंगाया. वैसे किसी समय पाकिस्तान से भी प्याज आयात होता रहा है. दूसरी तरफ भारत मलेशिया, बांग्लादेश,  श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात को भी प्याज का निर्यात करता रहा है. प्याज की कमी होने पर जब कुछ महीनों के लिए सरकार निर्यात पर अस्थायी रोक लगाती है तो बांग्लादेश जैसे देश अपना विरोध भी  व्यक्त करते हैं. यदि उत्पादन और भंडारण की समुचित व्यवस्था हो तो न केवल सब्जियों और फलों का निर्यात कई गुना बढ़ सकता है, बल्कि किसानों को भी बड़े पैमाने पर लाभ पहुंचाया जा सकता है.

सरकार ने सेना के लिए हथियारों की खरीदी से लेकर किसानों से अनाज की खरीदी के लिए बिचौलिए खत्म करने  की दिशा में कई कदम उठाए हैं. विडंबना  यह है कि ग्रामीण स्तर पर सड़कों और परिवहन की व्यवस्था न होने से भारी मात्ना में सब्जियां और फल सड़ जाते हैं.

जो किसान मंडियों तक पहुंचते भी हैं वहां बिचौलिए ही खरीदी करके दुकानदारों तक पहुंचाते हैं.  इससे न किसानों को सही मूल्य मिलता है और न ही जनता को उचित दाम पर सब्जियां और फल मिल पाते हैं. मंत्नालयों में तालमेल नहीं होता. कृषि,  ग्रामीण विकास, खाद्य सुरक्षा, नागरिक आपूर्ति और वाणिज्य विभागों के अधिकारी फाइलों पर जो भी काम करते हों,  जनता तक लाभ नहीं पहुंचा पाते. राज्य सरकारों के लिए भी यह मुद्दा प्राथमिकता का नहीं होता.

किसान और उपभोक्ताओं की सुरक्षा के लिए  सभाओं में मंत्नी बड़ी-बड़ी बातें जरूर कह जाते हैं लेकिन क्रियान्वयन के लिए कोई ध्यान नहीं दे पाते. चीन अथवा यूरोपीय देशों में किसानों के उत्पादन और अनाज, सब्जी तथा फल के व्यापार के लिए बहुत बड़े पैमाने पर सरकारी तथा गैरसरकारी तंत्न विकसित हो चुके हैं.

अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के आम अथवा अन्य फलों की गुणवत्ता के लिए प्रश्नचिह्न् लगाते हुए आयात पर प्रतिबंध तक लगा देते हैं. भारत में बनी दूध की मिठाई कई देशों के हवाई अड्डों पर कस्टम ही रोक देता है जबकि भारत में कई तरह का चीज  यानी पनीर अधिक जांच पड़ताल किए बिना धड़ल्ले से बाजार में बिकता है.

आजकल भारतीय अमरूद के बजाय विदेशी फीका और महंगा अमरूद  धड़ल्ले से बाजार में बिक रहा है. इसीलिए सवाल उठता है कि जनता के दुख दर्द और आंसू पोंछने के लिए नेता और अधिकारी स्वयं आंसू बहाने के बजाय व्यावहारिक और दूरगामी नीतियां बनाकर पूरी प्राथमिकता से लागू क्यों नहीं करते?

Web Title: Alok Mehta Blog: Make practical and far-reaching policies

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