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अभिषेक कुमार सिंह का ब्लॉग: टूटती क्यों नहीं वायरसों की खतरनाक श्रृंखला?

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: January 22, 2020 07:09 IST

एक सवाल यह भी है कि आखिर क्यों नई-नई संक्रामक बीमारियां सामने आ रही हैं? क्या यह दुनिया के कमजोर स्वास्थ्य तंत्न का नतीजा है? वैज्ञानिकों का इस बारे में यह मत है कि ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने माइक्रोब्स (रोगाणुओं) के जीवनचक्रों को समझने की कोशिश नहीं की या संक्रमणों की कार्यप्रणाली को नहीं जाना. नतीजतन, हम संक्रमण की श्रंखला तोड़ने में ही नाकाम नहीं हुए, बल्कि कुछ मामलों में तो इसे और मजबूत भी बनाया गया है.

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दुनिया की सांस एक बार फिर नए वायरस के हमले के साथ अटकने लगी है. दिसंबर, 2019 में पहली बार चीन के वुहान में सामने आया अधुनातन नोवेल कोरोना वायरस सिर्फ बीजिंग और शेनजेन जैसे चीनी शहरों तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि जापान और थाईलैंड तक में इसकी खतरनाक आहट मिल चुकी है. फिलहाल थाईलैंड में दो और जापान में एक मामला सामने आया है. उधर दिल्ली के एक कारोबारी की शेनजेन (चीन) के एक स्कूल में पढ़ाने वाली पत्नी के इसकी चपेट में आने के बाद यह आशंका भी जताई जा रही है कि विमान यात्नाओं के जरिए तेज आवाजाही वाली इस दुनिया में कई और देश सार्स जैसे लक्षणों वाले इस नए रहस्यमय वायरस की चपेट में आ सकते हैं. फिलहाल चीन में इसके करीब डेढ़ सौ मामलों की जानकारी मिल चुकी है और कहा नहीं जा सकता कि यह वायरस अभी कितने और देशों के नागरिकों के लिए सांस लेना मुश्किल बना सकता है.

खतरनाक वायरसों का हमला नया नहीं है. बीते कुछ वर्षो से यह तथ्य बार-बार सामने आया है कि दुनिया का कोई एक हिस्सा अचानक किसी पुराने या एकदम नए वायरस की जद में आ जाता है और देखते ही देखते, पूरे विश्व के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर देता है. जहां तक नए कोरोना वायरस की बात है तो इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस किस्म के छह वायरसों से दुनिया पहले से वाकिफ है, लेकिन इधर जिसने चीन से हमले की शुरु आत की है, वह एकदम नई सातवीं किस्म का है. इसका सबसे खतरनाक पहलू यह है कि संहारक क्षमता के मामले में यह इंसानों को संक्रमित करने वाले अपने दूसरे भाईबंदों (किस्मों) के मुकाबले बेहद खतरनाक वायरस सार्स जैसा है.

ध्यान रहे कि सार्स ने वर्ष 2002 में चीन में ही आठ हजार से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया था, जिनमें से पौने आठ सौ लोगों की मौत हो गई थी. सार्स से नजदीकी के इसी पहलू से कोरोना वायरस की नई किस्म से दुनिया चिंता में है और उसके प्रसार को देखते हुए स्वास्थ्य तंत्न के हाथ-पांव फूल गए हैं.

एक सवाल यह भी है कि आखिर क्यों नई-नई संक्रामक बीमारियां सामने आ रही हैं? क्या यह दुनिया के कमजोर स्वास्थ्य तंत्न का नतीजा है? वैज्ञानिकों का इस बारे में यह मत है कि ज्यादातर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने माइक्रोब्स (रोगाणुओं) के जीवनचक्रों को समझने की कोशिश नहीं की या संक्रमणों की कार्यप्रणाली को नहीं जाना. नतीजतन, हम संक्रमण की श्रंखला तोड़ने में ही नाकाम नहीं हुए, बल्कि कुछ मामलों में तो इसे और मजबूत भी बनाया गया है. कोरोना, बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, इबोला, मलेरिया, डेंगू बुखार, जीका और एचआईवी-एड्स से होने वाली मौतों में बीते कुछ दशकों में कई गुना बढ़ोत्तरी हो चुकी है और कहा जा रहा है कि 1973 के बाद से विषाणुजनित 30 नई बीमारियों ने मानव समुदाय को घेर लिया है.

धरती पर फैले सबसे घातक रोगाणुओं ने एंटीबायोटिक और अन्य दवाओं के खिलाफ जबर्दस्त जंग छेड़ रखी है और बीमारियों के ऐसे उत्परिवर्तित वायरस (रोगाणु) आ गए हैं, जिन पर नियंत्नण नहीं हो पा रहा है. समस्या यह भी है कि ये वायरस म्यूटेशन (यानी उत्परिवर्तन) का रुख अपना रहे हैं. इसका मतलब यह है कि मौका पड़ने पर वायरस अपना स्वरूप बदल लेते हैं जिससे उनके प्रतिरोध के लिए बनी दवाइयां और टीके कारगर नहीं रह पाते हैं.

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