अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: 'क्लेप्टोक्रेसी’ बनाम ‘स्पीड मनी’

By अभय कुमार दुबे | Published: April 6, 2021 12:57 PM2021-04-06T12:57:06+5:302021-04-06T12:58:07+5:30

भारत में भ्रष्टाचार की जड़े काफी गहरी हैं. खासकर राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार एक बड़ी चुनौती है. आखिर इसका निदान कैसे निकाला जा सकता है.

Abhay Kumar Dubey's blog: Corruption in India, Kleptocracy and money | अभय कुमार दुबे का ब्लॉग: 'क्लेप्टोक्रेसी’ बनाम ‘स्पीड मनी’

भारत में भ्रष्टाचार बड़ी समस्या (फाइल फोटो)

राजनीतिक-प्रशासनिक भ्रष्टाचार का मसला बहुत गहरा है. इसे समझने के लिए जरूरी है कि इसे दो हिस्सों में बांटकर समझा जाए. पहला हिस्सा है शीर्ष पदों पर होने वाला बड़ा भ्रष्टाचार, और दूसरा हिस्सा है निचले मुकामों पर होने वाला छोटा-मोटा भ्रष्टाचार. 

विद्वानों ने शीर्ष पदों पर होने वाले भ्रष्टाचार को ‘क्लेप्टोक्रेसी’ की संज्ञा दी है. तंत्र के शीर्ष पर बैठा कोई बड़ा राजनेता या कोई बड़ा नौकरशाह जब मंत्रियों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार करता है तो उसे क्लेप्टोक्रेसी कहते हैं.

भारत में पब्लिक सेक्टर संस्थाओं के मुखिया अफसरों को ‘सरकारी मुगलों’ की संज्ञा दी जा चुकी है. न्यायिक भ्रष्टाचार की परिघटना भारत में अभी नई है लेकिन उसका असर दिखाई देने लगा है. दिल्ली में राष्ट्रमंडलीय खेलों के आयोजन में हुए भीषण भ्रष्टाचार के पीछे भी नेताओं और अफसरों का शीर्ष खेल ही था. 

टूजी स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुए भ्रष्टाचार को भी क्लेप्टोक्रेसी के उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है. दूसरी तरफ, निचले स्तर पर होने वाला भ्रष्टाचार ‘स्पीड मनी’ या ‘सुविधा शुल्क’ के तौर पर जाना जाता है. 

थाना स्तर के पुलिस अधिकारी, बिक्री कर या आय कर अधिकारी, सीमा और उत्पाद-शुल्क अधिकारी और विभिन्न किस्म के इंस्पेक्टर इस तरह के भ्रष्टाचार से लाभान्वित होते हैं. इसी तरह जिला स्तर पर दिए जाने वाले ठेकों के आवंटन में पूरे जिला प्रशासन में कमीशन की रकम का बंटना एक आम बात है.

कौन सा भ्रष्टाचार ज्यादा बड़ी समस्या?

यहां इन दोनों तरह के भ्रष्टाचारों के मूल्यांकन संबंधी विवाद का जिक्र करना जरूरी है. सार्वजनिक जीवन में अक्सर यह बहस होती रहती है कि क्लेप्टोक्रेसी ज्यादा बड़ी समस्या है, या फिर सुविधा शुल्क? समाज शीर्ष पदों पर होने वाले भ्रष्टाचार से अधिक प्रभावित होता है, या निचले स्तर पर होने वाले अपेक्षाकृत छोटे भ्रष्टाचार से? 

इस बहस के पीछे एक विमर्श है जो क्लेप्टोक्रेसी से जुड़ा हुआ है. सत्तर और अस्सी के दशकों में देखा यह गया था कि कई बार शीर्ष पर बैठे हुए क्लेप्टोक्रेटिक शासक या अफसर निचले स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार को नापसंद करते हैं. 

उन्हें लगता था कि इस छुटभैये भ्रष्टाचार से व्यवस्था बदनाम होती है, और अवैध लाभ उठाने की खुद उनकी क्षमता घट जाती है. इस दृष्टिकोण में निचले स्तर का भ्रष्टाचार प्रशासनिक अक्षमता का द्योतक था.

यह सही है कि छोटे स्तर का भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी को पूरे समाज में विकेंद्रित कर देता है. एकरमैन ने भी अपनी रचना में इस पहलू की शिनाख्त की है. 

भारत में इसके सामाजिक प्रभाव का एक उदाहरण विवाह के बाजार में लाभ के पदों पर बैठे वरों की ऊंची दहेज-दरों के रूप में देखा जा सकता है. लेकिन दूसरी तरफ भारतीय उदाहरण ही यह बताता है कि भ्रष्टाचार का यह रूप न केवल शीर्ष पदों पर होने वाली कमीशनखोरी, दलाली और उगाही से जुड़ता है, बल्कि दोनों एक-दूसरे को पानी देते हैं. 

पिछले बीस वर्षो से भारतीय लोकतंत्र में राज्य सरकारों के स्तर पर सत्तारूढ़ निजाम द्वारा अगला चुनाव लड़ने के लिए नौकरशाही के जरिए नियोजित उगाही करने की प्रौद्योगिकी लगभग स्थापित हो चुकी है. इस प्रक्रिया ने क्लेप्टोक्रेसी और सुविधा शुल्क के बीच का फर्क काफी हद तक कम कर दिया है.

चुनाव लड़ने और जीतने-हारने के तहत होनी वाले भ्रष्टाचार का इलाज क्या

भारत जैसे संसदीय लोकतंत्र में चुनाव लड़ने और उसमें जीतने-हारने की प्रक्रिया अवैध धन के इस्तेमाल और उसके परिणामस्वरूप भ्रष्टाचार का प्रमुख स्नेत बनी हुई है. यह समस्या अर्थव्यवस्था पर सरकारी नियंत्रण के दिनों में भी थी, लेकिन बाजारोन्मुख व्यवस्था के जमाने में इसने पहले से कहीं ज्यादा भीषण रूप ग्रहण कर लिया है. 

एक तरफ चुनावों की संख्या और बारंबारता बढ़ रही है, दूसरी तरफ राजनेताओं को चुनाव लड़ने और पार्टियां चलाने के लिए धन की जरूरत. नौकरशाही का इस्तेमाल करके धन उगाहने के साथ-साथ राजनीतिक दल निजी स्नेतों से बड़े पैमाने पर खुफिया अनुदान प्राप्त करते हैं. 

यह काला धन होता है. बदले में नेतागण उन्हीं आर्थिक हितों की सेवा करने का वचन देते हैं. निजी पूंजी न केवल उन नेताओं और राजनीतिक पार्टियों की आर्थिक मदद करती है जिनके सत्ता में आने की संभावना है, बल्कि वह चालाकी से हाशिये पर पड़ी राजनीतिक ताकतों को भी पटाए रखना चाहती है ताकि मौका आने पर उनका इस्तेमाल कर सके. 

एक तरफ संगठित अपराध जगत द्वारा चुनाव प्रक्रिया में धन का निवेश, और दूसरी तरफ स्वयं माफिया सरदारों द्वारा पार्टियों के उम्मीदवार बनकर चुनाव जीतने की कोशिश करना. इस पहलू को राजनीति के अपराधीकरण के रूप में भी देखा जाता है. राजनीतिक भ्रष्टाचार का यह रूप शायद इस समस्या का सबसे संगीन पक्ष है.

Web Title: Abhay Kumar Dubey's blog: Corruption in India, Kleptocracy and money

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