ब्लॉग: गुरु गोविंद सिंह जी के 4 साहिबजादें ऐसे हुए थे शहीद, जानें उनकी अद्वितीय शहादत

By नरेंद्र कौर छाबड़ा | Published: December 26, 2022 12:53 PM2022-12-26T12:53:13+5:302022-12-26T13:03:11+5:30

आपको बता दें कि गुरु गोविंद सिंह जी के साथ मात्र चालीस सिख सैनिक थे और मुगलों की विशाल सेना लाखों में थी। साहिबजादा अजीत सिंह जो 17 वर्ष के थे और जुझार सिंह 14 वर्ष के थे, पिता से आज्ञा लेकर युद्ध के मैदान में उतरे थे और दोनों ने अपनी तलवार, युद्ध कौशल के जौहर दिखाए और अंत में दोनों शहीद हो गए थे।

4 Sahibzade of Guru Gobind Singh ji were martyred know their unique martyrdom | ब्लॉग: गुरु गोविंद सिंह जी के 4 साहिबजादें ऐसे हुए थे शहीद, जानें उनकी अद्वितीय शहादत

फोटो सोर्स: Wikipedia CC (https://commons.wikimedia.org/wiki/File:A_view_of_Fatehgarh_Sahib_Gurudwara,_martyrdom_of_Fateh_and_Zorawar_Singh,_Punjab_India.jpg)

Highlightsगुरु गोविंद सिंह जी के चार साहिबजादें थे।इनके दो साहिबजादें जंग के दौरान शहीद हो गए थे। जब दो और साहिबजादों को दीवार में चुनवाकर फिर यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया था।

दशमेश पिता गुरु गोविंद सिंह जी को सरबंसदानी भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने अपने सारे वंश को धर्म, मानवता और देश की रक्षा के लिए कुर्बान कर दिया था। गुरुजी के चार पुत्र साहिबजादा अजीत सिंह, जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह थे। चारों के लिए आनंदपुर साहिब में ही शिक्षा का प्रबंध किया गया था।

सरसा नदी के किनारे युद्ध में गुरुजी का परिवार बिछड़ गया था

दिसंबर 1704 में आनंदपुर साहिब में गुरुजी के शूरवीर तथा मुगल सेना के बीच घमासान युद्ध जारी था। तब औरंगजेब ने गुरुजी को पत्र लिखा कि यदि वे आनंदपुर का किला खाली कर दें तो उन्हें बिना किसी रोक-टोक के जाने दिया जाएगा। गुरुजी के किले से निकलते ही उन पर मुगल सेना ने हमला कर दिया था। 

इसके बाद सरसा नदी के किनारे भयानक युद्ध हुआ, यहां उनका परिवार बिछड़ गया था। उनके साथ दोनों बड़े साहिबजादे भी थे। छोटे दोनों साहिबजादे दादी माता गुजरी जी के साथ चले गए। बड़े साहिबजादे युद्ध लड़ते हुए पिता के साथ नदी पार करके चमकौर की गढ़ी में जा पहुंचे। आपको बता दें कि 21 दिसंबर 1704 को यहां भयानक युद्ध हुआ जिसे चमकौर का युद्ध कहा जाता है। 

युद्ध में अजीत और जुझार सिंह हो गए थे शहीद

गुरुजी के साथ मात्र चालीस सिख सैनिक थे और मुगलों की विशाल सेना लाखों में थी। साहिबजादा अजीत सिंह जो 17 वर्ष के थे और जुझार सिंह 14 वर्ष के थे, पिता से आज्ञा लेकर युद्ध के मैदान में उतरे थे। दोनों ने अपनी तलवार, युद्ध कौशल के जौहर दिखाए और अंत में दोनों शहीद हो गए थे।

इधर माता गुजरी जी आठ और छह वर्षीय पोते जोरावर सिंह तथा फतह सिंह को लेकर गंगू रसोइए के साथ निकल गईं। वह उन्हें अपने गांव ले गया था। ऐसे में माताजी के पास कीमती सामान देख उसे लालच आ गया था। उसने मोरिंडा के कोतवाल को खबर करके माताजी व साहिबजादों को गिरफ्तार करवा दिया ताकि उसे कुछ इनाम मिल सके।

माताजी तथा साहिबजादों को सरहिंद के बस्सी थाना ले जाया गया और रात भर उन्हें ठंडे बुर्ज में रखा गया जहां बला की ठंड थी। अगले दिन साहिबजादा जोरावर सिंह, फतेह सिंह को सरहिंद के सूबेदार वजीर खान की कचहरी में लाया गया था।

ऐसे शहीद हुए जोरावर और फतह सिंह

पहले तो उन्हें लालच दिए गए फिर डराया और धमकाया गया। यही नहीं उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए भी कहा गया था लेकिन उन्होंने स्पष्ट इंकार कर दिया था। अंत में दरबार में मौजूद काजी ने फतवा जारी किया कि इन्हें जिंदा ही नींव में चिनवा दिया जाए। इसके बाद दोनों साहिबजादों को समाना शहर के जल्लाद शिशाल बेग और विशाल बेग दीवार में चिनने लगे।

जब दीवार उनकी छाती तक पहुंची तो दोनों कष्ट सहते-सहते अचेत हो गए और गिर गए तो दीवार भी गिर गई। वे तीन दिन तक बेहोश रहे। 27 दिसंबर 1704 को सुबह दोनों साहिबजादों को यातनाएं देकर शहीद कर दिया गया।
 

Web Title: 4 Sahibzade of Guru Gobind Singh ji were martyred know their unique martyrdom

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