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World Health Day 2025: जन-जन तक स्वास्थ्य सेवा को पहुंचाने की चुनौती

By योगेश कुमार गोयल | Updated: April 7, 2025 05:52 IST

World Health Day 2025: प्रतिवर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस एक खास विषय के साथ मनाया जाता है और इस साल इस दिवस के लिए ‘स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य’ विषय का चयन किया गया है.

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ठळक मुद्देआबादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने की हकदार है.स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा पूरी तरह से कवर नहीं किए गए हैं. डब्ल्यूएचओ की संस्थापना वर्षगांठ को चिन्हित करने के उद्देश्य से किया गया था.

World Health Day 2025: दुनिया के हर व्यक्ति को स्वास्थ्य को लेकर जागरूक करने तथा स्वास्थ्य स्तर सुधारने के उद्देश्य से हर साल 7 अप्रैल को ‘विश्व स्वास्थ्य दिवस’ मनाया जाता है. यह दिवस मनाए जाने का प्रमुख उद्देश्य दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को इलाज की अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना, उनका स्वास्थ्य बेहतर बनाना तथा समाज को बीमारियों के प्रति जागरूक करना है. प्रतिवर्ष विश्व स्वास्थ्य दिवस एक खास विषय के साथ मनाया जाता है और इस साल इस दिवस के लिए ‘स्वस्थ शुरुआत, आशापूर्ण भविष्य’ विषय का चयन किया गया है.

डब्ल्यूएचओ परिषद के मुताबिक दुनिया में कम से कम 140 देश अपने संविधान में स्वास्थ्य को मानव अधिकार के रूप में तो मान्यता देते हैं लेकिन फिर भी यह सुनिश्चित करने के लिए कानून पारित नहीं कर रहे या व्यवहार में नहीं ला रहे कि उनकी आबादी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने की हकदार है.

डब्ल्यूएचओ का कहना है कि साढ़े चार अरब से भी ज्यादा लोग आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं द्वारा पूरी तरह से कवर नहीं किए गए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के बैनर तले मनाए जाने वाले इस दिवस की शुरुआत 7 अप्रैल 1950 को हुई थी और यह दिवस मनाने के लिए इसी तारीख का निर्धारण डब्ल्यूएचओ की संस्थापना वर्षगांठ को चिन्हित करने के उद्देश्य से किया गया था.

विभिन्न आंकड़ों के मुताबिक देश में 543 मेडिकल कॉलेज हैं जबकि कम से कम 600 मेडिकल कॉलेज, 50 एम्स तथा 200 सुपर स्पेशलिटी अस्पतालों की आवश्यकता है. इंफ्रास्ट्रक्चर में 24-38 फीसदी की कमी है. देश में कुल 157921 उप स्वास्थ्य केंद्र, 5649 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) तथा 30813 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं, जिनकी देश में क्रमशः 24, 38 और 39 फीसदी की कमी है. कुल 810 जिला अस्पताल (डीएच) तथा 1193 उपमंडल अस्पताल (एसडीएच) हैं.

2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 60 फीसदी पीएचसी में केवल एक ही डॉक्टर उपलब्ध है जबकि 5 फीसदी पीएचसी में तो एक भी डॉक्टर नहीं है. देश में करीब 78 फीसदी डॉक्टर शहरी क्षेत्रों की महज 30 फीसदी आबादी की स्वास्थ्य देखभाल के लिए हैं जबकि देश की करीब 70 फीसदी ग्रामीण आबादी शेष 22 फीसदी डॉक्टरों के भरोसे है.

ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल को लेकर तो न केवल भारत बल्कि दुनिया के अनेक देशों में उदासीनता की स्थिति है और चिंता की बात यह है कि डब्ल्यूएचओ तथा यूनिसेफ जैसी संस्थाओं द्वारा भी इस दिशा में कोई सार्थक प्रयास होते नहीं दिख रहे.

हालांकि  सस्ती और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, आयुष्मान भारत जैसे कुछ कार्यक्रमों के माध्यम से सकारात्मक पहल की जा रही है, फिर भी हमारे यहां भी ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच से दूर है.

टॅग्स :वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशनHealth and Family Welfare Department
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