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World AIDS Day 2024: एड्स के उन्मूलन की दिशा में बढ़ते ठोस कदम

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: December 3, 2024 05:27 IST

World AIDS Day 2024: मलेरिया, फ्लू, टायफाइड, हैजा, प्लेग, चेचक, पोलियो, डायरिया जैसी बीमारियां किसी जमाने में महामारी की तरह आती थीं और देखते-देखते हजारों-लाखों लोगों की जान ले लेती थीं.

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ठळक मुद्देविजय जागरूकता के साथ ही पाई जा सकती है.विभिन्न महामारियों की चपेट में आ जाती थी.गैरजिम्मेदाराना गतिविधियों के कारण पनपती थीं.

World AIDS Day 2024: आज से तीस दशक पहले एड्स का खौफ वैसा ही था, जैसा तीन वर्ष पहले हमने कोविड-19 का देखा था. लेकिन जिस तरह हमने देखते-देखते कोविड-19 या कोरोना पर विजय पा ली, उसी तरह हम एड्स को भी मात देने की राह पर हैं. एड्स अपनी उत्पत्ति के चार दशक बाद भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है, मगर उत्साहवर्धक संकेत हैं कि अगले एक दशक में यह बीमारी भी लगभग जड़ से खत्म हो जाएगी. किसी बीमारी के इलाज के लिए आप कितनी भी प्रभावशाली दवा का आविष्कार क्यों न कर लें, उस पर पूरी तरह विजय जागरूकता के साथ ही पाई जा सकती है.

दुनिया आज से सौ डेढ़ सौ वर्ष पहले अक्सर विभिन्न महामारियों की चपेट में आ जाती थी, लेकिन उनका इलाज ढूंढ लिया गया और लोगों के जागरूक हो जाने से उन पर काबू पाना आसान हो गया. मलेरिया, फ्लू, टायफाइड, हैजा, प्लेग, चेचक, पोलियो, डायरिया जैसी बीमारियां किसी जमाने में महामारी की तरह आती थीं और देखते-देखते हजारों-लाखों लोगों की जान ले लेती थीं.

ये बीमारियां हमारी कुछ असावधानियों तथा गैरजिम्मेदाराना गतिविधियों के कारण पनपती थीं. दवा के साथ-साथ जागरूकता से ये महामारियां अब मामूली मर्ज बनकर रह गई हैं. पिछले कुछ वर्षों में मस्तिष्क ज्वर, डेंगू, पीला ज्वर, स्वाइन फ्लू जैसी बीमारियों ने भी सिर उठाया लेकिन दवा और जागरूकता के बल पर उन पर जल्दी ही काबू पा लिया गया है.

एड्स ने अस्सी और नब्बे के दशक में पांव पसारे थे. अफ्रीकी देशों से होती हुई यह बीमारी नब्बे के दशक में महामारी की तरह फैल गई और भारत भी इसकी चपेट में आ गया. भारत में 1986 में एड्स का पहला मामल सामने आया. नब्बे के दशक से लेकर 20वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों तक एड्स ने भारत में कहर बरपाया.

इस बीमारी से लोग बुरी तरह दहशत में आ गए थे क्योंकि वह नाइलाज थी और छोटी सी गलती या असावधानी के कारण कोई भी व्यक्ति जाने-अनजाने उसकी चपेट में आ सकता था. समय के साथ-साथ असरदार दवाओं की खोज हुई और लोगों को उन बातों के बारे में जागरूक किया गया, जिससे इस बीमारी का प्रसार हो सकता था.

भारत ने एड्स की पीड़ा को बहुत झेला है. पिछले 35 वर्षों में एड्स से भारत में लाखों लोगों की मौत हुई. दुनिया में करीब चार करोड़ लोगों को इस बीमारी ने अपनी चपेट में लिया और उनमें से तीन करोड़ से ज्यादा लोगों ने जान गंवा दी. अब तस्वीर एकदम बदल चुकी है. रविवार को केंद्रीय स्वास्थ्य तथा परिवार कल्याण मंत्री जे.पी. नड्डा ने विश्व एड्स दिवस पर जो तथ्य सामने रखे, वे इस बात के संकेत हैं कि एड्स अब महामारी नहीं रही और लोगों की जागरुकता ने एड्स को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है.

नड्डा के मुताबिक एड्स से संक्रमित होने के मामलों में 44 प्रतिशत तक की कमी आई है और इस जानलेवा मर्ज से जान गंवाने वालों की तादाद भी 79 प्रतिशत कम हो गई है. एड्स जब शुरू में फैला तब उसके प्रसार के कारणों के बारे में ज्यादातर जानकारी नहीं थी लेकिन जल्दी ही पता चल गया कि एक ही सिरिंज बार-बार इस्तेमाल करने, ठीक ढंग से उबाले बिना सिरिंज का उपयोग करने, रक्त चढ़ाते समय असावधानियां बरतने, इंजेक्शन के जरिये नशे की दवाएं लेने, असुरक्षित शारीरिक संबंध स्थापित करने के कारण एड्स का प्रसार होता है.

उस दौर में भारत में चिकित्सा सुविधाओं का ढांचा आज की तरह मजबूत एवं व्यापक नहीं था. औद्योगीकृत शहरों, खदान वाले क्षेत्रों, गंदी बस्तियों और ग्रामीण क्षेत्रों में एड्स ने तेजी से पैर पसारा. भारत सरकार ने इस महामारी से निपटने के लिए तेजी से कदम उठाए. उसने दो मोर्चों पर असरदार ढंग से काम किया.

सरकार ने ग्रामीण इलाकों तक एड्स के परीक्षण तथा उसके इलाज का विशाल नेटवर्क बिछाया और साथ ही उसने एड्स के प्रसार के कारणों के प्रति जबर्दस्त जनजागरण अभियान चलाया. लोगों को समझ में आ गया कि एड्स को आत्म संयम तथा कुछ छोटी-छोटी सावधानियां अपनाकर टाला जा सकता है.

एड्स को नियंत्रित करने में हमारे चिकित्सकों तथा चिकित्सा कर्मियों ने भी अभूतपूर्व योगदान दिया. ऐसा नहीं है कि एड्स का समूल नाश हो गया है. 17 लाख से ज्यादा लोग भारत में अभी भी एड्स या एचआईवी ग्रस्त हैं लेकिन प्रभावी दवाएं उपलब्ध होने और प्रतिरोधात्मक उपायों पर अमल करने के कारण इन लोगों की जिंदगी सामान्य लोगों की तरह ही गुजर रही है.

एड्स का पूरी तरह खात्मा आत्मनियंत्रण तथा जागरूकता के बिना संभव नहीं है. इसे लापरवाही तथा उच्छृंखलताजनित बीमारी कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. इसके बावजूद हमने एड्स को काबू में कर उसके उन्मूलन की दिशा में ठोस कदम बढ़ा लिया है.

टॅग्स :एड्सHealth and Family Welfare Departmentजेपी नड्डा
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