देवेंद्रराज सुथार
हर साल 24 मार्च को विश्व क्षय रोग (टीबी) दिवस मनाया जाता है ताकि इस गंभीर बीमारी के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके और इसके उन्मूलन के लिए वैश्विक प्रयासों को प्रोत्साहन मिले. यह तारीख 1882 में डॉ. रॉबर्ट कोच द्वारा माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस की खोज के उपलक्ष्य में चुनी गई थी. आज भी टीबी एक प्रमुख संक्रामक रोग है और हाल के आंकड़े इसकी रोकथाम में प्रगति और चुनौतियों को उजागर करते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में लगभग 1.08 करोड़ लोग टीबी से प्रभावित हुए, जिनमें से 10.25 लाख लोगों की मृत्यु हुई. यह आंकड़ा टीबी को मृत्यु के प्रमुख संक्रामक कारणों में से एक साबित करता है. टीबी का सबसे अधिक प्रभाव निम्न और मध्यम आय वाले देशों में देखा जाता है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और गरीबी इसके प्रसार को बढ़ाती है.
दक्षिण-पूर्व एशिया और अफ्रीका क्षेत्र क्रमशः वैश्विक मामलों का 46% और 23% हिस्सा रखते हैं. भारत में स्थिति विशेष रूप से गंभीर है, जहां 2023 में 28 लाख नए मामले सामने आए, जो कुल वैश्विक टीबी बोझ का लगभग 27% है. भारत सरकार ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, जो वैश्विक लक्ष्य 2030 से पांच साल पहले है.हाल के वर्षों में टीबी के उपचार में उल्लेखनीय प्रगति हुई है.
वर्ष 2023 में टीबी उपचार की सफलता दर वैश्विक स्तर पर 87% रही. हालांकि फंडिंग की कमी बड़ी बाधा है. डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि 2030 तक टीबी उन्मूलन के लिए हर साल 22 अरब डॉलर की जरूरत है, लेकिन वर्तमान में 5.7 अरब डॉलर ही उपलब्ध है.
विश्व टीबी दिवस 2025 की थीम ‘हां! हम टीबी को खत्म कर सकते हैं: प्रतिबद्धता, निवेश और क्रियान्वयन’ इस बात पर जोर देती है कि प्रतिबद्धता, निवेश और कार्यान्वयन से इस बीमारी को समाप्त किया जा सकता है. टीबी हवा के माध्यम से फैलती है और इसके शुरुआती लक्षणों जैसे खांसी, बुखार और वजन घटने को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है.
इसके उन्मूलन के लिए सरकारों, स्वास्थ्य संगठनों और समुदायों को एकजुट होकर निदान, उपचार और रोकथाम के संसाधनों को सुलभ बनाना होगा. आंकड़े बताते हैं कि चुनौतियां बड़ी हैं, लेकिन सामूहिक प्रयासों से टीबीमुक्त विश्व संभव है।