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पीरियड्स में पैड? ना बाबा ना, हम ये सब इस्तेमाल नहीं करते !!

By गुलनीत कौर | Updated: June 23, 2018 17:07 IST

भारत में 355 मिलियन महिलाओं में से मात्र 12 फीसदी महिलाएं ही पीरियड्स में पैड का इस्तेमाल करती हैं

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सच ही कहते हैं कि शहर में रहने वाले गांवों का हाल कैसे समझ पाएंगे जहां आज भी लोग सुख सुविधाओं से वंचित होकर बैठे हैं। इन गांवों में कहने को बिजली-पानी तो पहुंच गया है लेकिन आज भी ऐसी कई सुविधाओं का नाम तक इन लोगों को मालूम नहीं हुआ है, जिनके बिना शहरी लोग जीना सोच भी नहीं सकते हैं। दिल्ली के जिस इलाके में मेरा बसेरा है वहां ऐसे लोगों की काफी तादाद है जो यूपी-बिहार के छोटे-छोटे गांवों से रोजी-रोटी के चलते यहां आकर बस गए हैं। ये लोग 10x10 के छोटे से कमरे में रहते हैं। इस कमरे में एक से अधिक लोग भी रहते हैं। खैर आमदनी के चक्कर में ना जाने ऐसे कितने ही लोग बड़े शहरों में जाकर बस गए हैं। 

जब ये लोग अपने घरों से शहरों का रुख क्मारते हैं तो शेरोन की चकाचौंध और यहां आने के बाद मिलने वाली चुनौतियों से अनजान होते हैं। किसी तरह से शहरों के वातावरण में खुद को ढाल भी लेते हैं। गांवों से कुछ पुरुष अकेले निकलते हैं तो कुछ अपनी बीवी-बच्चों को या तो साथ लेकर आते हैं या फिर कुछ समय के बाद थोड़ी कमाई करने पर बुला लेते हैं। शहर में आकर सभी परिवार वाले कमाई का साधन खोजते हैं और फिर चल पड़ती है इनके जीवन की गाड़ी। 

खैर बात यहां गांव से शहरों में बसी महिलाओं की करना चाहूंगी। शहर में आने के कुछ सालों में मध्य वर्गी से भी नीचे की रेखा के इन लोगों के छोटे-छोटे कमरों में आपको धीरे-धीरे नई सुविधाएं दिख जायेंगी। जिस इलाके में मैं रहती हूं, वहां ऐसे परिवर्तन देखने को मिल जाते हैं। टीवी, फ्रिज, कूलर, बाइक, आदि चीजें ये लोग समय के साथ खरीद ही लेते हैं। इनकी महिलाओं भी गांव से आने के कुछ समय बाद ही कई बदलाव देखने को मिलते हैं। शहर की महिलाओं की तरह सुन्दर साड़ी, अच्छा भोजन, श्रृंगार का सारा सामान, यह सब तो करती ही हैं लेकिन कुछ चीजों से आज भी ये महिलाएं दूर हैं।

कुछ दिन पहले यूं ही मैं, मेरी मम्मी और पास में रहने वाली एक महिला (जिनका नाम प्रियंका है और ये भी बिहार के एक गांव से दिल्ली अपने परिवार संग रह रही हैं), हम तीनों कुछ बात कर रहे थे। साथ में टीवी भी चल रहा था। टीवी में अचानक 'सेनेटरी पैड' की ऐड चली। उसे देख वह महिला अजीब सा मुंह बनाने लगी और कुछ शर्मा के हंसने भी लगी और बोली, 'पता नहीं क्या-क्या दिखाते रहते हैं'। उनकी ये बात सुन मैनें पूछा कि इसमें हंसने वाली क्या बात थी, ये तो हर महिला की जरूरत है। इसके बाद उन्होंने जो कहा वह सुन मेरे होश उड़ गए। 

वो कहती ये पैड-वैड क्या होता है हम नहीं जानते, हम ये सब नहीं इस्तेमाल करते। यह सुन मुझे कुछ हैरानी हुई तो मैनें पूछा कि फिर आप क्या करती हैं? तो उन्होंने झट से जवाब दिया कि हम तो कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। ये पड़ हम कभी नहीं लाए। हमारे गांव में भी लड़कियां कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं और यहां भी जितनी गांव से आई महिलाएं हैं वो ऐसा ही करती हैं। यह सुन कुछ देर के लिए मैं और मेरी मम्मी चुप कर गए और एक दूसरे की ओर हैरानी भरी नजरों से देखने लगे। फिर मैंने उनसे पूछा कि 'आंटी आपको दिल्ली आए हुए कितना टाइम हो गया?' तो उन्होंने बताया कि यही कुछ 15-16 साल। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने बेबाक होकर कह डाला कि 'इतने सालों में अभी भी आप गांव की महिलओं  की तरह तरह रह रही हिं? अभी भी आप पीरियड्स में साधारण कपड़े का इस्तेमाल कर अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं? 

मेरे इन सवालों का उनके पास कोई जवाब नहीं था। बस वो इतना बोलकर चल दी कि बेटा सेहत को कुछ नहीं होता। गांव में सब महिलाएं ऐसा ही करती हैं और हम भी वही कर रहे हैं। यह सब कहने वाली बातें हैं बस.........

बस इतना कहकर वो क्न्हाली गई। उनकी इन बातों ने मेरे अन्दर जिज्ञासा पैदा कर दी कि अगर मेरे आसपास रहने वाली इतनी महिलाएं पीरियड्स में पैड का इस्तेमाल करने से सह्र्माती हैं, तो पूरे देश भर में ऐसी कितनी महिलाएं होंगी? और केवल गनाव की ही क्यों, क्या शहरी महिलाएं भी ऐसा करती हैं? इस जिज्ञासा को शांत करने के लिए जब मैंने गूगल की मदद ली तो कई हैरान कर देने वाले फैक्ट्स मेरे सामने आए-- एक शोध के अनुसार भारत में 355 मिलियन महिलाओं में से मात्र 12 फीसदी महिलाएं ही पीरियड्स में पैड का इस्तेमाल करती हैं- 88 फीसदी महिलाएं पीरियड्स के दौरान घर में रखे कपड़े, राख या मिट्टी का इस्तेमाल करती हैं जो उन्हें कई तरह की बीमारियों की ओर ले जाता है- शोध की मानें तो इनमें से 70 फीसदी महिलाएं आरटीआई यानी प्रजनन क्षमता से संबंधी जानलेवा रोगों का शिकार हो जाती हैं- आंकड़ों की मानें तो देश में सेनेटरी पैड इस्तेमाल करने वाली महिलाओं में 48.5 प्रतिशत ग्रामीण इलाके में और 77,5 प्रतिशत शहरी इलाकों में रहती हैं- बात सिर्फ पैड के इस्तेमाल की ही नहीं है, पीरियड्स को इतना भयानक रोग बनाया हुआ है कि इसके होने पर लड़कियां घर से बाहर ही नहीं निकलती हैं। भारत में 24 फीसदी लड़कियां पीरियड्स हो जाने पर स्कूल, कॉलेज नहीं जाती हैं

लड़कियों के पीरियड्स के चलते स्कूल ना जाने के कारण को जब कई संस्थाओं द्वारा खोजा गया तो वे बिना किसी ठोस कारण के ही खाली हाथ लौटीं। देश में पीरियड्स संबंधी इतनी जानकारी देने, इसपर फिल्में बनने के बावजूद भी यहां की महिलाएं आज भी वहीं खड़ी हैं जहां सालों पहले थीं। अफसोस होता है कि सरकार और मीडिया की कई कोशिशें आज भी काम नहीं आ रही हैं, लेकिन जरूरत है तो हर किसी को इस पक्ष में कदम उठाने की। क्योंकि महिलाएं सवस्थ हैं, तो परिवार स्वस्थ है और देश भी स्वस्थ ही रहेगा।

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