पिछले दिनों खबर आई थी कि मध्यप्रदेश के दमोह के मिशन अस्पताल में एक फर्जी हृदयरोग विशेषज्ञ नरेंद्र जॉन कैम उर्फ दरेंद्र यादव ने जिन 7 मरीजों का ऑपरेशन किया, उन सभी की मौत हो गई थी. इस खुलासे के बाद उस फर्जी डॉक्टर को गिरफ्तार कर लिया गया था. अब नया खुलासा यह है कि उसी नरेंद्र यादव ने 19 साल पहले छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला के हृदय की भी सर्जरी की थी और कुछ दिनों बाद उनकी मौत हो गई थी.
यादव के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया है. मगर सवाल यह पैदा होता है कि क्या यह गैरइरादतन हत्या का मामला ही है? यादव जब डॉक्टर नहीं है, उसके पास डिग्री नहीं है और उसने यह जानते-समझते हुए मरीजों का ऑपरेशन किया तो इसका मतलब है कि वह जानता था कि जिस मरीज का ऑपरेशन करेगा, उसके मरने की आशंका होगी ही होगी.
इस नजरिये से देखें तो यह साजिशपूर्ण तरीके से हत्या का मामला बनता है. वास्तव में यह पूरा प्रसंग ही कई सवाल खड़े करता है. सवाल यह है कि वह व्यक्ति जब यह दावा कर रहा था कि वह ब्रिटेन में 18,740 कोरोनरी एंजियोग्राफी और 14,236 कोरोनरी एंजियोप्लास्टी कर चुका है तो क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की कि वह सच बोल रहा है या झूठ बोल रहा है? जिस मिशन अस्पताल ने उसे नौकरी पर रखा, क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं थी कि एक-एक डिग्री की सत्यता की जांच कराए और डॉक्टर असली होने की पुष्टि के बाद ही उसे नौकरी पर रखे!
अस्पताल ने कहा है कि उसने एक एजेंसी के माध्यम से यादव को काम पर रखा था इसलिए जिम्मेदारी उस एजेंसी की है. निश्चित रूप से एजेंसी की जिम्मेदारी तो थी ही, अस्पताल की भी जिम्मेदारी थी, लेकिन दोनों ने ही लापरवाही और गैरजिम्मेदारी दिखाई. एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि वह डॉक्टर फर्जी है तो अस्पताल के दूसरे चिकित्सकों को इस बात का अंदाजा क्यों नहीं हुआ?
और सबसे बड़ी बात कि विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद शुक्ला का ऑपरेशन तो सरकार ने कराया था और वे 18 दिनों तक वेंटिलेटर पर थे, तो क्या सरकारी अधिकारियों ने भी यह नहीं समझा कि यादव की गुणवत्ता क्या है? दरअसल सरकारी स्तर पर यही लापरवाही भारत में झोलाछाप डॉक्टरों के फलने-फूलने का बड़ा कारण है. यादव जैसे न जाने कितने फर्जी चिकित्सक किसी अस्पताल में काम कर रहे होंगे या फिर किसी गांव में डिस्पेंसरी खोलकर बैठे होंगे, किसी को क्या पता?
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन लगातार कहता रहा है कि झोलाछाप चिकित्सकों के खिलाफ मुकम्मल कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है. नियमानुसार चिकित्सकों को अपने क्लिनिक या डिस्पेंसरी में अपनी डिग्री सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करनी चाहिए. चिकित्सक ऐसा करते भी हैं लेकिन इस बात की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है कि यदि कोई अस्पताल खुल रहा है तो उसके हर चिकित्सक की डिग्री की जांच हो जाए.
नियम है और कहने को ऐसा होता भी है लेकिन यदि वास्तव में व्यवस्था पुख्ता होती तो नरेंद्र यादव झांसा देकर अस्पताल में काम कैसे कर रहा होता? यदि उसकी जांच पहले ही हो गई होती तो निश्चय ही उन हृदय रोगियों की जिंदगी बच जाती जिन्हें नरेंद्र यादव ने मौत के घाट उतार दिया.