प्राचीन ऋग्वेद और चरक-सुश्रुत की परंपरा से लेकर आधुनिक वैज्ञानिक शोध तक आयुर्वेद ने हमेशा रोगों की रोकथाम, जीवनशैली सुधार और प्रकृति के साथ सामंजस्य को प्राथमिकता दी है. जब आधुनिक जीवनशैली रोगों और जलवायु संकटों से जूझ रही है, तब आयुर्वेद मानवता को सुरक्षित, टिकाऊ और संतुलित भविष्य की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक बनकर उभर रहा है.
23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस का 10वां संस्करण मनाया जा रहा है, जो इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है. ‘आयुर्वेद : जन-जन के लिए, पृथ्वी के कल्याण के लिए’ थीम के साथ मनाया जा रहा यह दिवस न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरणीय स्थिरता के लिए भी सामूहिक संकल्प का प्रतीक है.
आयुर्वेद दिवस भारतीय पारंपरिक चिकित्सा की वैश्विक पहचान, सामाजिक प्रासंगिकता और पर्यावरण से जुड़ी उसकी जिम्मेदारी का सशक्त मंच बन गया है. भारत सरकार द्वारा 23 मार्च 2025 की राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से 23 सितंबर को आयुर्वेद दिवस की निश्चित तिथि निर्धारित करना एक ऐतिहासिक बदलाव है,
जो इसे धनतेरस की परिवर्तनशील तिथि से मुक्त कर वैश्विक कैलेंडर में स्थायी पहचान प्रदान करता है. यह आयुर्वेद के सार्वभौमिक महत्व को मान्यता दिलाने की रणनीति भी है. गोवा के अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) में आयोजित होने वाले 10वें आयुर्वेद दिवस पर कई महत्वपूर्ण पहल शुरू की जाएंगी, कैंसर उपचार के लिए एक आधुनिक ऑन्कोलॉजी इकाई का भी उद्घाटन होगा.
आयुष मंत्रालय द्वारा ‘कल्याण के लिए छोटे कदम’, ‘गुमराह को राह दिखाएं’ और ‘मोटापे के लिए आयुर्वेद आहार’ जैसे जन-केंद्रित अभियान भी शुरू किए जाएंगे. आयुर्वेद दिवस को पहले ‘धनतेरस’ (धन्वंतरि जयंती) के अनुसार मनाया जाता था, लेकिन अब यह प्रतिवर्ष 23 सितंबर को मनाया जाएगा.
फास्ट-फूड, प्रदूषण, दवाओं के दुष्प्रभाव, मानसिक तनाव इत्यादि आधुनिक जीवनशैली की चुनौतियां निरंतर बढ़ रही हैं. आयुर्वेद इनमें सामंजस्य, ऋतुचर्या, दिनचर्या, योग-ध्यान, आहार-विहार के नियम आदि स्वीकृत करके स्वस्थ्य और पर्यावरणीय दृष्टि से आदर्श जीवन सिखाता है.
कुल मिलाकर, आयुर्वेद दिवस न केवल अतीत की उपलब्धियों का उत्सव है बल्कि भविष्य के लिए एक मजबूत नींव भी तैयार करता है. वैश्विक स्तर पर बढ़ती स्वास्थ्य चुनौतियों, जीवनशैली संबंधी विकारों और पर्यावरणीय संकटों के समाधान में आयुर्वेद की भूमिका निरंतर बढ़ती जा रही है.