गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: समाज के लिए आशा की किरण हैं शिक्षक
By गिरीश्वर मिश्र | Updated: September 5, 2019 12:13 IST2019-09-05T12:13:43+5:302019-09-05T12:13:43+5:30
अच्छे शिक्षक छात्नों को प्रश्न और विवेचन का अवसर देते हुए उनकी जिज्ञासा को पुष्ट करते हए एक समग्र बोध और सीखने की प्रक्रिया को आत्मसात कराते हैं. ऐसे में ही एक संभावना से भरा व्यक्तित्व पल्लवित और पुष्पित होता है.

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: समाज के लिए आशा की किरण हैं शिक्षक
आज के जटिल होते जा रहे सामाजिक परिदृश्य में सिर्फ स्वार्थ साधन ही परम लक्ष्य होता जा रहा है. परमार्थ की चिंता घटती जा रही है और विनाश और संहार की भाषा की धूम मच रही है. हम सब देख रहे हैं कि सुख की खोज आत्म संतुष्टि तक सिमट जाने से आए दिन आक्रोश, घृणा और हिंसा का दौर शुरू होने लगता है.
आत्मकेंद्रित स्वार्थ ही चारों ओर प्रभावी हो रहा है. आज सभी के मन में अच्छे समाज के निर्माण की चुनौती गहराती जा रही है. उनकी नजर घूम फिर कर स्कूलों की ओर जाती है जहां नौनिहाल जीवन के अगले चरण की तैयारी में व्यस्त हैं.
वैसे तो हर बच्चा किसी माता-पिता का सपना होता है पर यह भी उतना ही सच है कि ये बच्चे भविष्य के समाज की बुनियाद भी हैं. इस अर्थ में उनकी शिक्षा-दीक्षा भविष्य के समाज के निर्माण की आधारशिला होती है और हमें भविष्य को रचने का विकल्प मुहैया कराती है.
अधिकांश माता-पिता अभी भी यही मानते हैं कि अच्छे आचरण वाले, विचारशील और सुलङो शिक्षक अपने आचरण, विचार और मानवीय मूल्यों के प्रति समर्पण द्वारा स्कूल में सक्रि य रूप से एक सार्थक सामाजिक परिवेश की रचना करते हैं जो छात्नों को सही राह की ओर ले जा सकता है.
वस्तुत: विद्यालय घर और समाज के बीच सेतु हैं और दोनों उससे प्रभावित होते हैं. ऐसे में विद्यालय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. विद्यालय ऐसे स्थल हैं जहां सही रास्ते की समझ, रिश्तों की गहराई और उसकी पवित्नता की अनुभूति संभव है. विद्यालय परिसर से ही प्रकाश और विवेक का उदय हो सकता है.
अच्छे शिक्षक छात्नों को प्रश्न और विवेचन का अवसर देते हुए उनकी जिज्ञासा को पुष्ट करते हए एक समग्र बोध और सीखने की प्रक्रिया को आत्मसात कराते हैं. ऐसे में ही एक संभावना से भरा व्यक्तित्व पल्लवित और पुष्पित होता है. हम देखते हैं कि एक पौधा भी पनपने के लिए स्वतंत्नता चाहता है और उसे धूप, हवा, पानी, खाद आदि का समुचित मात्ना में पोषण मिलना चाहिए. ऐसे ही मन और शरीर सबका प्रस्फुटित होना ही शिक्षा का अभिप्राय होना चाहिए.
इसके लिए सीखने की स्वतंत्नता और आवश्यक समर्थन चाहिए. अभय की स्थिति में ही स्वतंत्न विचार की शक्ति आती है. उसी के साथ आदमी में अच्छाई का विकास होता है. इसके लिए शिक्षक में मानवीय संवेदना की जरूरत होती है. छात्र में दायित्व का भाव पैदा करना, मनुष्य और उसके दैनिक जीवन को संस्कारित करना शिक्षक का दायित्व है.
इसकी वास्तविकता को महसूस कराना और सात्विकता और सद्गुण का विकास शिक्षक के लिए प्रमुख सरोकार होना चाहिए. सीखने का गंभीर माहौल जिसमें प्रसन्नता और स्वतंत्नता दोनों ही मौजूद हों, इसका निर्माण करने में शिक्षक की केंद्रीय भूमिका है.