Blog: उच्च शिक्षा पर टैक्स लगाना कितना उचित?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: July 21, 2018 05:11 AM2018-07-21T05:11:57+5:302018-07-21T05:11:57+5:30
सेवाओं का जब शिक्षा जैसे क्षेत्र में उपभोग होता है तब उनके ऊपर टैक्स लादना क्या तर्कसंगत है? एक ऐसे देश में, जहां युवाओं की आबादी ज्यादा हो, वहां शिक्षा पर टैक्स कैसे लगाया जा सकता है? यह सेवा है या उद्योग?
(डॉ. एस.एस. मंठा)
उच्च शिक्षा पर जीएसटी लागू है. क्या उच्च शिक्षा पर कर लगाना चाहिए? क्या हम वास्तव में उन सेवाओं को अलग कर सकते हैं जो शिक्षा के वितरण पक्ष को मूल्यवर्धित करते हैं और ऐसी सेवाओं पर कर लगा सकते हैं? फिर सेवाओं के रूप में किसे वर्गीकृत किया जा सकता है? सामान्य अर्थो में लेखांकन, बैंकिंग, सफाई, परामर्श, शिक्षा, बीमा, विशेषज्ञता, चिकित्सा, उपचार या परिवहन जैसे सभी उत्पाद सेवाएं हैं. सेवाओं का जब शिक्षा जैसे क्षेत्र में उपभोग होता है तब उनके ऊपर टैक्स लादना क्या तर्कसंगत है? एक ऐसे देश में, जहां युवाओं की आबादी ज्यादा हो, वहां शिक्षा पर टैक्स कैसे लगाया जा सकता है? यह सेवा है या उद्योग? विश्व व्यापार संगठन ने शिक्षा को सेवा क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया है. निजी क्षेत्र भले ही इसे उद्योग के रूप में स्वीकार करे, लेकिन कई बार, औद्योगिक उद्यमों के लिए उपलब्ध होने वाला वित्त पोषण शिक्षा के लिए उपलब्ध नहीं होता.
कर निर्धारण शिक्षा के लिए प्रतिकूल हो सकता है, चाहे हम इसे सेवा के रूप में स्वीकार करें या उद्योग के रूप में. दूरस्थ शिक्षा जो कि दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंच बनाने के लिए महत्वपूर्ण है, को भी उच्च शिक्षा माना जाता है और उस पर कर लगाया जाता है. इससे कुछ असहज प्रश्न उठते हैं. यह देखते हुए कि संविधान में शिक्षा को लाभ के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, क्या राज्य इसके व्यवसायीकरण को मंजूरी दे रहा है? देश की अधिकांश आबादी 25 वर्ष से कम आयुवर्ग की होने के कारण शिक्षा के महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता है. बड़ी आबादी और गरीबी की वजह से, शिक्षा कम लागत पर आसानी से उपलब्ध होनी चाहिए. जीएसटी लगाने से उच्च शिक्षा और दूरस्थ शिक्षा की लागत में वृद्धि हुई है.
एक वर्ष पहले लागू जीएसटी ने कुछ रोमांचक संभावनाओं और कुछ वास्तविक चिंताओं को सामने लाया है. जीएसटी लॉ एक व्यापक, बहु-चरणीय, गंतव्य आधारित कर है, जो हर मूल्यवर्धन पर लगाया जाता है. राज्य के भीतर के मामले में, केंद्रीय जीएसटी और राज्य जीएसटी वसूल की जाती है, जबकि अंतर्राज्यीय बिक्री होने पर एकीकृत जीएसटी लगाई जाती है. सरल शब्दों में यह एक अप्रत्यक्ष कर है जो माल और सेवाओं की आपूर्ति पर लगाया जाता है. इसने देश में पहले मौजूद कई अप्रत्यक्ष करों की जगह ले ली है.
आइए देखें कि इसकी कार्यशैली क्या है. विनिर्माण के संदर्भ में, उत्पाद की आपूर्ति के साथ उपभोक्ता को अंतिम बिक्री तक उत्पाद आपूर्ति श्रृंखला में कई हाथों तक जाता है. आम तौर पर कच्चे माल की खरीद या उत्पादन, तैयार माल को गोदाम में रखना, थोक व्यापारी को बिक्री, वहां से खुदरा विक्रेताओं को उत्पाद की बिक्री की एक लंबी श्रृंखला होती है. इसमें से हर चरण में जीएसटी लगाई जाती है, जो इसे एक बहु-स्तरीय कर बनाता है. उदाहरण के लिए एक निर्माता कुकीज बनाने के लिए आटा, चीनी और अन्य सामग्री खरीदता है. इसके बाद जब चीनी और आटा मिश्रित होते हैं और बेक्ड होकर कुकीज बनते हैं तो उसका मूल्य बढ़ जाता है. इसके बाद निर्माता एक वेयरहाउसिंग एजेंट को कुकीज भेजता है, जो बड़ी मात्र में कुकीज को पैक करता है और लेबल लगाता है. यहां से जब वह खुदरा विक्रेता को कुकीज भेजता है तो अतिरिक्त मूल्यवर्धन होता है. खुदरा विक्रेता कुकीज को छोटी-छोटी मात्र में पैक करता है और कुकीज की मार्केटिंग में निवेश करता है, जिससे उसके मूल्य में और वृद्धि होती है. इस प्रकार ग्राहक को अंतिम बिक्री होने तक प्रत्येक चरण में मूल्य बढ़ता है.
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शिक्षा में यह मूल्य श्रृंखला क्या होगी? विशेष रूप से उच्च शिक्षा में? जो संस्थान शिक्षा प्रदान करता है वह शिक्षकों को नियुक्त करता है, बुनियादी ढांचा और अन्य इनपुट प्रदान करता है. शैक्षिक सहायता प्रदान किए जाने पर उसका मूल्य बढ़ता है, विशेषज्ञों को शामिल किया जाता है अनुभवी शिक्षा के लिए उपकरण प्रदान किए जाते हैं, समकालीन उद्योगों द्वारा विशिष्ट प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है, इंटर्नशिप की व्यवस्था की जाती है और यह सब कुछ बतौर उत्पाद छात्र को तैयार करने के लिए किया जाता है. लेकिन विनिर्माण संदर्भ के विपरीत, संस्थान अपने उत्पाद को उद्योगों को बेच नहीं सकते हैं (हालांकि पश्चिम में कुछ संस्थान संभावित नियोक्ता से प्रति छात्र शुल्क लेते हैं). छात्र को नौकरी पर लेने के बाद कंपनियां उसे प्रशिक्षण देती हैं, जिससे उससे मूल्य में और वृद्धि होती है.
डिजिटल विनिर्माण पर जोर देने के साथ विनिर्माण उद्योग में पिछले दो दशकों में असाधारण परिवर्तन आया है. बड़े पैमाने पर स्वचलन, एआई, रोबोटिक्स और विशेष उद्देश्यों के लिए बनाए गए रोबोटिक्स टूल्स ने नौकरी की भूमिकाओं को फिर से परिभाषित किया है. कई निर्माता 90 प्रतिशत से अधिक की सीमा तक आउटसोर्स करते हैं क्योंकि कर्मचारी के कौशल के पेशेवर उन्नयन पर बहुत सारा पैसा खर्च होता है. शिक्षा पर अगर जीएसटी हटा दी जाए तो निश्चित रूप से कर्मचारियों के कौशल का उन्नयन किया जा सकता है.
ऑनलाइन एनालिटिक्स ट्रेनिंग इंस्टीटय़ूट एडवांसर द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में डाटा एनालिटिक्स के क्षेत्र में करीब पचास हजार रिक्तियां हैं, जिनके इस साल के अंत तक बढ़ कर एक लाख हो जाने की संभावना है. इसके अलावा, डिजिटल मार्केटिंग क्षेत्र इसी अवधि में भारत में दो लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा करेगा. क्या हमारे पास वास्तव में इस उपलब्ध बाजार को भरने के लिए स्टॉक है? क्या हम पेशेवर कर्मियों को तैयार करने के लिए जीएसटी के बोझ को सीमित अवधि के लिए ही सही, छोड़ नहीं सकते?
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