डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः सिखाने के तरीके में बदलाव लाएं
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 8, 2018 05:41 AM2018-11-08T05:41:11+5:302018-11-08T05:41:11+5:30
देश में तकनीकी शिक्षा ने कई चुनौतियों का सामना किया है। स्नातक स्तर की शिक्षा तो स्तरीय रही है, लेकिन स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए बेहतर गुणवत्ता की चाह में कई युवा देश छोड़कर बाहर जाते रहे हैं।
डॉ. एस.एस. मंठा
शिक्षा का उद्देश्य सीखने, ज्ञान हासिल करने, मूल्यों, कौशल विकास आदि को सुगम बनाना होना चाहिए। इसके तरीकों में कहानी सुनाना, चर्चा, शिक्षण, प्रशिक्षण और विषय केंद्रित अनुसंधान शामिल है। लेकिन पंचतंत्र काल के विष्णु शर्मा के बाद से ही सिखाने की एक पद्धति के रूप में कहानी सुनाने की कला का उपयोग नहीं किया गया है। प्राचीन काल में गुरु-शिष्य परंपरा में विद्वत्ता खूब फली-फूली। महाभारत काल में एकलव्य को जब गुरु द्रोणाचार्य ने धनुर्विद्या सिखाने से इंकार कर दिया तो उसने कई वर्षो तक अनुशासित ढंग से खुद ही अभ्यास किया और असाधारण धनुर्धर बना, जिससे साबित होता है कि शिक्षा या ज्ञान औपचारिक तथा अनौपचारिक - दोनों तरह से हासिल किया जा सकता है।
देश में तकनीकी शिक्षा ने कई चुनौतियों का सामना किया है। स्नातक स्तर की शिक्षा तो स्तरीय रही है, लेकिन स्नातकोत्तर शिक्षा के लिए बेहतर गुणवत्ता की चाह में कई युवा देश छोड़कर बाहर जाते रहे हैं। विनिर्माण उद्योग में डिजिटल निर्माण पर जोर दिए जाने के कारण पिछले दो दशकों में आमूलचूल परिवर्तन आया है। बड़े पैमाने पर स्वचालन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, स्पेशल पर्पस मशीन टूल्स आदि ने रोजगार की भूमिकाओं को नए सिरे से परिभाषित किया है और पारंपरिक रोजगारों में भारी कटौती की है।
शिक्षा प्रदान करने की वर्तमान प्रणाली की सबसे प्रमुख कमी इसके क्रियान्वयन और संरचना में है। सार्वजनिक क्षेत्र में बेशुमार जानकारी उपलब्ध है और सोशल नेटवर्किग साइट्स के आदी हो चुके बच्चों को उससे सीखने-समझने की अनुमति दी जानी चाहिए। किसी भी अन्य माध्यम की अपेक्षा विजुअल माध्यम सीखने में 30 प्रतिशत अधिक प्रभावी होते हैं। यूटय़ूब जैसे सोशल नेटवर्क हर जगह लोकप्रिय हैं। प्राय: सभी प्रमुख सोशल नेटवर्को ने अपने एप्प और वेबसाइटों में वीडियो अपलोड करना, देखना और साझा करना आसान बना दिया है। सीखने-सिखाने की पद्धतियों को अवरुद्ध नहीं करना चाहिए बल्कि समय के साथ आगे बढ़ाते रहना चाहिए।