Madhya Pradesh: किताबों से फूटती हिंसा?, हमारे परिवार भी दोषी, 12वीं के छात्र ने प्राचार्य की कट्टे से गोली मारकर...

By प्रमोद भार्गव | Updated: December 16, 2024 05:35 IST2024-12-16T05:35:03+5:302024-12-16T05:35:03+5:30

Madhya Pradesh: भारत का समाज अमेरिकी समाज की तरह आधुनिक नहीं है कि जहां पिस्तौल अथवा चाकू जैसे हथियार रखने की छूट छात्रों को हो.

Madhya Pradesh Violence erupts from books Our families are also guilty blog Pramod Bhargava Minor student 12th class shot principal pistol | Madhya Pradesh: किताबों से फूटती हिंसा?, हमारे परिवार भी दोषी, 12वीं के छात्र ने प्राचार्य की कट्टे से गोली मारकर...

सांकेतिक फोटो

Highlightsलाड-प्यार से उपेक्षित बच्चे घर, मोहल्ले और संस्थाओं में जब-तब पिस्तौल चला दिया करते हैं.मानवीय मूल्यों को रौंदकर बेतहाशा दौलत कमाई और फिर नवधनाढ्यों के वर्ग में शामिल हो गया.अब आपराधिक कृत्यों को अंजाम देकर जिनका अहंकार तुष्ट हो रहा है.

Madhya Pradeshमध्य प्रदेश के छतरपुर के एक सरकारी विद्यालय में 12वीं के नाबालिग छात्र ने प्राचार्य की कट्टे से गोली मारकर हत्या कर दी. प्राचार्य सुरेंद्र कुमार सक्सेना का दोष इतना भर था कि उन्होंने इस छात्र को नियमित स्कूल नहीं आने पर फटकार लगाई थी. विद्यालयों में छात्र हिंसा से जुड़ी ऐसी घटनाएं पहले अमेरिका जैसे विकसित देशों में ही देखने में आती थीं, लेकिन अब भारत जैसे विकासशील देशों में भी क्रूरता का यह सिलसिला चल पड़ा है. हालांकि भारत का समाज अमेरिकी समाज की तरह आधुनिक नहीं है कि जहां पिस्तौल अथवा चाकू जैसे हथियार रखने की छूट छात्रों को हो.

अमेरिका में तो ऐसी विकृत संस्कृति पनप चुकी है, जहां अकेलेपन के शिकार एवं मां-बाप के लाड-प्यार से उपेक्षित बच्चे घर, मोहल्ले और संस्थाओं में जब-तब पिस्तौल चला दिया करते हैं. पाठशालाओं में घट रहीं ऐसी घटनाएं उस बर्बर, वीभत्स और निरंकुश संस्कृति की देन हैं, जिसने नैतिक एवं मानवीय मूल्यों को रौंदकर बेतहाशा दौलत कमाई और फिर नवधनाढ्यों के वर्ग में शामिल हो गया.

अब आपराधिक कृत्यों को अंजाम देकर जिनका अहंकार तुष्ट हो रहा है. इस तरह की पनप रही हिंसक मानसिकता के लिए हमारी कानून व्यवस्था के साथ परिवार भी दोषी है क्योंकि धन के बूते अभिभावक ऐन-केन-प्रकारेण बच्चों को कानूनी शिकंजे से बचा लेते हैं. शिक्षा को व्यवसाय का दर्जा देकर निजी क्षेत्र के हवाले छोड़कर हमने बड़ी भूल की है.

ये प्रयास शिक्षा में समानता के लिहाज से बेमानी हैं क्योंकि ऐसे ही विरोधाभासी व एकांगी प्रयासों से समाज में आर्थिक विषमता बढ़ी है. यदि ऐसे प्रयासों को और बढ़ावा दिया गया तो विषमता की यह खाई और बढ़ेगी? जबकि इस खाई को पाटने की जरूरत है. यदि ऐसा नहीं किया गया तो शिक्षा केवल धन से हासिल करने का हथियार रह जाएगी?

जिसके परिणाम कालांतर में और भी घातक व विस्फोटक होंगे. यदि शिक्षा के समान अवसर बिना किसी जातीय, वर्गीय व आर्थिक भेद के सर्वसुलभ होते हैं तो छात्रों में नैतिक मूल्यों के प्रति चेतना, संवेदनशीलता और पारस्परिक सहयोग व समर्पण वाले सहअस्तित्व का बोध पनपेगा, जो सामाजिक न्याय और सामाजिक संरचना को स्थिर बनाएगा.

Web Title: Madhya Pradesh Violence erupts from books Our families are also guilty blog Pramod Bhargava Minor student 12th class shot principal pistol

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