आखिर इतना अहंकारी कोई क्यों हो जाता है?
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: February 26, 2025 09:58 IST2025-02-26T09:55:12+5:302025-02-26T09:58:20+5:30
ठीक इसी तरह जब आप किसी के कौशल और काबिलियत की प्रशंसा करते हैं तो उससे आपका कद बड़ा होता है.

आखिर इतना अहंकारी कोई क्यों हो जाता है?
भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच के दौरान 18वें ओवर की तीसरी गेंद पर धांसू बल्लेबाज शुभमन गिल को आउट करने के बाद पाकिस्तानी स्पिनर अबरार अहमद ने जिस तरह से अपनी गर्दन तरेरी और शुभमन को पैवेलियन लौटने का इशारा किया, उस फूहड़ अंदाज की हर कोई आलोचना कर रहा है. भारतीय क्रिकेट प्रेमियों का तो नाराज होना स्वाभाविक ही था, पाकिस्तान की ओर से वर्षों क्रिकेट खेलने वाले वसीम अकरम ने भी इसकी आलोचना की है.
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब अबरार ने इस तरह की अहंकारी हरकत की हो! अहंकार में चूर रहने वाले और भी कई खिलाड़ी रहे हैं लेकिन सवाल है कि अबरार जब देख रहे थे कि उनकी टीम मजबूत स्थिति में नहीं है इसके बावजूद इस तरह की हरकत का मतलब है कि अहंकार उनके स्वभाव में है. क्रिकेट में ही क्यों, मनुष्य की जिंदगी में हर ओर अहंकार भरा है.
तो सवाल है कि ये अहंकार है क्या और मनुष्य के चेतन में मौजूद विवेक इसे क्यों नहीं रोक पाता? यदि आप विश्लेषण करें तो अहंकार वहीं पैदा होता है जहां अंधकार और अज्ञानता का वास होता है. यहां अंधकार का मतलब अंधेरे से बिल्कुल नहीं है. बाहरी अंधकार को तो दीपक की एक लौ या बिजली के एक बल्ब से तत्क्षण दूर किया जा सकता है. बात है आंतरिक अंधकार की. जब आप किसी विषय को केवल अपने नजरिये से देखने के आदी हो जाते हैं तो उस विषय के दूसरे आयाम देख नहीं पाते. दूसरे के देखने का नजरिया आप समझ नहीं पाते हैं.
जब तक आप समग्र दृष्टिकोण से विषय को नहीं समझेंगे, खुद के प्रति भी न्याय नहीं कर सकते. ऐसी स्थिति में आपके भीतर का तत्व विकसित नहीं होगा और आपको लगेगा कि आप जो कर रहे हैं, जो सोच रहे हैं वही सत्य है!
फिर आपका विवेक मरने लगता है. चूंकि मन तक ज्ञान का प्रकाश नहीं पहुंच पाता इसलिए अंधेरा और घना व गहरा होता जाता है. अबरार तो महज एक उदाहरण हैं. इस तरह के हजारों अबरार आपको इधर-उधर बिखरे मिलेंगे. दो पैसे क्या कमा लिए, थोड़ी सी शोहरत क्या पा ली, अहंकार की ज्वाला भभकने लगती है. इसीलिए भारतीय परंपरा में उपनिषद के श्लोक ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ को जिंदगी के लिए सबसे महत्वपूर्ण श्लोक के रूप में स्वीकार किया गया है.
इसका अर्थ है, हे प्रभु, हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो! प्रकाश का अर्थ है ज्ञान का प्रकाश! जिंदगी जब ज्ञान के प्रकाश से आलोकित होती है तो मनुष्यता निखर उठती है. आपने देखा होगा कि कोई गेंदबाज यदि अच्छी गेंद फेंकता है तो बीट होने के बावजूद बल्लेबाज इशारों ही इशारों में गेंदबाज को संदेश देता है कि गेंद शानदार थी! ठीक इसी तरह जब आप किसी के कौशल और काबिलियत की प्रशंसा करते हैं तो उससे आपका कद बड़ा होता है. किसी को नीचा दिखाने की हर हरकत आपको प्रकाश से बहुत दूर, अंधेरे की ओर ले जाती है. इंसानियत का तकाजा यही है कि आप एक अच्छे इंसान बनें.
अच्छा इंसान बनने के लिए जरूरी है कि आपके भीतर सात्विकता पनपे. अपनी सफलता पर गर्दन तरेरने से जिंदगी में ऋणात्मकता का वास होता है. ऐसी स्थिति में आप जिंदगी के किसी भी खेल में विजयी नहीं हो सकते और न ही कोई जंग जीत सकते हैं!