Virat Kohli IND vs PAK: भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मुकाबले का जब 43 वां ओवर चल रहा था तब ओटीटी के केवल एक स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म पर ही 66 करोड़ से ज्यादा लोग मैच देख रहे थे. दूसरे चैनलों का आंकड़ा इसमें शामिल नहीं है. भारत की जीत पक्की हो चुकी थी और भारतीय फैंस कुलांचे भर रहे थे. जीत पाकिस्तान के खिलाफ हो तो वह जीत नहीं बल्कि पूरे देश के लिए जश्न बन जाता है. 43 वें ओवर की तीसरी गेंद से पहले भारत को जीत के लिए 2 रनों की जरूरत थी और विराट कोहली को वन डे में अपना 51 वां शतक पूरा करने के लिए चार रन चाहिए थे.
क्रिकेट का हर दीवाना विराट के शतक के लिए दुआ कर रहा था. यहां तक कि पैवेलियन में बैठे कप्तान रोहित शर्मा भी छक्का मारने का इशारा कर रहे थे. 43 वें ओवर की उस तीसरी गेंद पर विराट ने जबर्दस्त चौका लगाया और उनके शतक के साथ ही भारत की जीत और पाकिस्तान की हार से ज्यादा विराट कोहली की चर्चा होने लगी. तारीफों के पुल बांधे जाने लगे.
दरअसल 2023 के बाद वनडे में उन्होंने कोई शतक नहीं लगाया था. 36 साल के इस धांसू नौजवान को लेकर कुछ आलोचक तो यहां तक कहने लगे थे कि विराट का वक्त अब खत्म हो चला है लेकिन विराट ने उन सभी को बता दिया कि बंदे में अभी ढेर सारा और कई वर्षों का खेल बाकी है. दरअसल हम विराट के व्यक्तित्व को देखें, उनके अंदाज को देखें, उनके परिश्रम, लगन और समर्पण को देखें तो युवाओं के लिए उन्हें एक पाठशाला के रूप में देख सकते हैं. केवल क्रिकेट खेल रहे युवा खिलाड़ियों के लिए ही नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में युवाओं के लिए वे प्रेरणा की तरह हैं.
सबसे पहले तो उनकी फिटनेस पर गौर करिए! जब 25 साल के शुभमन गिल के साथ वे दौड़ रहे थे तब उनकी रफ्तार शुभमन से ज्यादा दिख रही थी और उनकी सांसें भी नहीं फूल रही थीं. जरा सोचिए कि 36 साल की उम्र में 25 साल के युवा से भी ज्यादा शारीरिक क्षमता बनाए रखने के लिए वे क्या-क्या करते होंगे! विराट दिल्ली के हैं और दिल्ली खाने वालों का शहर है.
विराट को छोले-भटूरे बेहद पसंद हैं लेकिन फिटनेस की खातिर उन्होंने वर्षों से उस ओर देखा तक नहीं. विराट की तरह हर युवा को यह समझना होगा कि स्वास्थ्य से बड़ी न कोई शक्ति होती है और न जमा पूंजी! विराट से दूसरी बड़ी बात जो सीखी जा सकती है, वह है खुद पर भरोसा. जब उनके आलोचक गला फाड़ रहे थे तब उन्होंने एक बार भी किसी का प्रतिकार नहीं किया.
वे कहते हैं कि बाहर की आवाज को वे अपने भीतर प्रवेश नहीं करने देते हैं. यह स्थिति प्राप्त करना साधना की उच्चतम अवस्था पर पहुंचना है. यह कोई सहज काम नहीं है. कोई भी व्यक्ति परिपूर्णता तभी प्राप्त करता है जब वह क्षमता, कौशल, रणनीति और चीते की चपलता जैसे गुणों से सुसज्जित होता है. वह लक्ष्य केंद्रित हो जाता है और लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अपने सारे सद्गुणों को एकाकार कर लेता है.
आज के दौर में विराट कोहली इन सारे गुणों के प्रतिमान हैं. खेल तो वास्तव में इन गुणों की अभिव्यक्ति का माध्यम है. विराट की विशालता पर जय-जयकार करना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है कि हमारे युवा विराट कोहली को न केवल आदर्श मानें बल्कि उनकी तरह खुद को स्वस्थ, क्षमता, कौशल और कला से परिपूर्ण भी बनाएं. सफलता की सीढ़ी यही होती है.