अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मुंह में दांत कम, चने ज्यादा?, भारत की पीठ में छुरा घोंपेंगे!

By विकास मिश्रा | Updated: September 9, 2025 05:19 IST2025-09-09T05:19:41+5:302025-09-09T05:19:41+5:30

ट्रम्प को यह बात समझ में आने लगी है कि भारत को लेकर उनका आकलन सही नहीं बैठा है. वे यह मानकर चल रहे थे कि भारत पर टैरिफ का हमला करेंगे तो वह घुटने टेक देगा.

US President Donald Trump more grams than teeth mouth stab India in back blog Vikas Mishra | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मुंह में दांत कम, चने ज्यादा?, भारत की पीठ में छुरा घोंपेंगे!

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Highlightsसोचे-समझे तरीके से भारत की उपेक्षा की और पाकिस्तान को अपनी गोद में बिठाया. भारत तो क्या दुनिया के हर देश को पता था कि ट्रम्प केवल गुब्बारे में हवा भर रहे हैं. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दोस्त कहने वाले ट्रम्प भारत की पीठ में छुरा घोंपेंगे!

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की स्थिति को लेकर एक कहावत याद आ रही है कि मुंह में दांत कम हैं और चने ज्यादा हो गए हैं! कहावत दो स्थितियों की ओर इशारा करती है. या तो ट्रम्प ने अपने दांतों पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर लिया या फिर चनों के इतने कड़क होने का अनुमान वे नहीं लगा पाए. ट्रम्प के मामले में ये दोनों ही बातें सही बैठती दिख रही हैैं. लेकिन अब सवाल है कि ट्रम्प आखिर करेंगे क्या? वास्तविकता तो यही है कि चनों को तोड़ने की बात तो बहुत दूर की है. जो उनके मुंह में है, न तो वह निगलते बन रहा है और न ही उगलते बन रहा है. वे बावले हो रहे हैं.

हकीकत तो यह है कि ट्रम्प को यह बात समझ में आने लगी है कि भारत को लेकर उनका आकलन सही नहीं बैठा है. वे यह मानकर चल रहे थे कि भारत पर टैरिफ का हमला करेंगे तो वह घुटने टेक देगा क्योंकि उसके पास और कोई दूसरा रास्ता नहीं होगा. इसीलिए उन्होंने बहुत सोचे-समझे तरीके से भारत की उपेक्षा की और पाकिस्तान को अपनी गोद में बिठाया.

यह भ्रम फैलाने की कोशिश की कि पाकिस्तान के पास इतना जमीनी संसाधन उपलब्ध होने वाला है कि वह भारत को बहुत पीछे छोड़ देगा लेकिन भारत तो क्या दुनिया के हर देश को पता था कि ट्रम्प केवल गुब्बारे में हवा भर रहे हैं. वैसे सच यह भी है कि भारत के कूटनीति विशेषज्ञों को भी यह अंदाजा नहीं था कि खुद को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दोस्त कहने वाले ट्रम्प भारत की पीठ में छुरा घोंपेंगे!

खैर ट्रम्प को जो करना था, वह कर दिया. मगर भारत ने गजब की चुप्पी साधे रखी है. एक कहावत भी है कि चुप्पी भी किसी बड़े हथियार से कम नहीं होती है. यही चुप्पी ट्रम्प को परेशान कर रही है जबकि वे अपनी मालिकी वाले सोशल चैनल ट्रुथ पर एक के बाद संदेश दिए जा रहे हैं. भारत ज्यादातर संदेशों का कोई जवाब भी नहीं दे रहा है.

बड़े दिनों बाद पिछले शुक्रवार को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक संदेश का जवाब दिया. वह भी इसलिए कि ट्रम्प का संदेश बहुत नरम किस्म का था. ट्रम्प ने ट्रुथ पर लिखा कि भारत-अमेरिका संबंधों की चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि दोनों देशों के संबंध अच्छे हैं. ट्रम्प ने यह भी जोड़ा कि नरेंद्र मोदी महान प्रधानमंत्री हैं और हमेशा उनके दोस्त रहेंगे.

कूटनीति पर नजर रखने वालों ने नोट किया कि नरेंद्र मोदी ने ट्रम्प के विचारों की सराहना तो की लेकिन एक्स पर संदेश में उन्होंने ट्रम्प को दोस्त कहने से परहेज किया. इसके पहले के संदेशों में ट्रम्प को दोस्त बताते रहे हैं. कूटनीति के जानकारों का मानना है कि नरेंद्र मोदी ने दोस्त न लिखकर कड़क संदेश दे दिया है.

इसके पहले यह बात भी उजागर हो ही चुकी है कि ट्रम्प ने नरेंद्र मोदी को चार बार फोन किया लेकिन मोदी ने कोई जवाब तक नहीं दिया. जाहिर है कि ऐसे में ट्रम्प को समझ में नहीं आ रहा है कि क्या किया जाए. ये व्यक्ति (नरेंद्र मोदी) तो कोई भाव ही नहीं दे रहा है. ट्रम्प को यह समझना चाहिए कि आप किसी पर हमला करते रहें और यह उम्मीद करें कि वह आपको इज्जत बख्शेगा! क्यों इज्जत देगा?

आप हमारे किसानों के हाथ में कटोरा थमाना चाहते हैं और हम चुपचाप आपको अपना खेत चरने दें या अपने डेयरी उद्योग को हजम कर जाने दें? स्वाभाविक सी बात है कि हम अपनी संप्रभुता की रक्षा करेंगे. एक तरफ तो ट्रम्प भारत को फिर दोस्त बता रहे हैं और दूसरी तरफ उनका वाणिज्य मंत्री  हॉवर्ड लुटनिक कह रहा है कि भारत दो-तीन महीने में बातचीत की टेबल पर आएगा और सॉरी बोलेगा.

उसके बाद ट्रम्प तय करेंगे कि मोदी के साथ कैसे डील करना है! कमाल है मि. लुटनिक! भारत को आपने समझ क्या रखा है? हम दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश हैं. हम चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था हैं. हमें समझ क्या रखा है? हकीकत तो यह है कि ट्रम्प का अमेरिका भारत का कुछ नहीं बिगाड़ पा रहा है तो अब यूरोपीय यूनियन से गुहार लगा रहे हैं कि आप साथ आइए और भारत पर दबाव डालिए कि रूस से तेल न खरीदे. यूरोपीय यूनियन किस मुंह से ट्रम्प के साथ जाएगा. यह किसे मालूम नहीं है कि यूरोपीय संघ लिक्विफाइड नेचुरल गैस और खाद बड़े पैमाने पर खरीद रहा है.

समुद्री तेल पर प्रतिबंध है, लेकिन प्राकृतिक गैस का बिजनेस जारी है. अमेरिका भी क्या रूस से कम खरीदी कर रहा है? आंकड़े देखें तो 2024 में अमेरिका ने रूस से 62 करोड़ डॉलर से ज्यादा का संवर्धित यूरेनियम और प्लूटोनियम खरीदा. पिछले साल ही रूस ने अमेरिका को 87.8 करोड़ डॉलर का पैलेडियम निर्यात किया.

जानकारी के लिए बता दें कि पैलेडियम का उपयोग ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री से लेकर व्हाइट गोल्ड बनाने तक में होता है. कमाल की बात तो यह भी है कि भारत से जो डीजल यूक्रेन खरीद रहा है वह भी तो रूस से ही आयातित है! यूक्रेन पहले रूस और बेलारूस से तेल खरीदता था. रूस पर प्रतिबंध के बाद उसने भारत से खरीदी शुरु कर दी.

2025 की पहली तिमाही का आंकड़ा बताता है कि यूक्रेन ने अपनी जरूरत का करीब 15 प्रतिशत डीजल भारत से आयात किया है. ये सारी जानकारियां ओपन फोरम में हैं. दुनिया को पता है कि रूस से सबसे ज्यादा तेल चीन आयात करता है लेकिन टैरिफ का मोटा हंटर ट्रम्प ने भारत पर चलाया है. लेकिन भारत टस से मस नहीं हो रहा है.

उधर अमेरिका में उनका विरोध बढ़ता जा रहा है. सारे कूटनीति विशेषज्ञ और अर्थशास्त्र के जानकार कह रहे हैं कि ट्रम्प ने इस तरह का मकड़जाल बुन लिया है कि वे खुद उसमें उलझ गए हैं. इसलिए वे दिन-ब-दिन और बौखला रहे हैं. दो-चार देशी चमचों को छोड़कर अमेरिका में कोई उनका साथ नहीं दे रहा है.

यहां तक कि उनके चुनाव में पानी की तरह पैसा बहाने वाले एलन मस्क भी उनका दामन छोड़ चुके हैं. उनके बुलावे पर बैठक में भी नहीं गए. इधर दुनिया में कोई उन पर विश्वास करने को तैयार नहीं है. ट्रम्प के लिए यह लोहे के चने चबाने जैसी स्थिति हो गई है और दांत साथ नहीं दे रहे हैं!  

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