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भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंकता ग्रामीण भारत, 2024-25 में 35.77 करोड़ टन अनाज पैदा करके ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया

By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Updated: December 16, 2025 05:35 IST

खेती में आत्मनिर्भरता और गांवों के विकास की तरफ देश की लगातार बढ़ती प्रतिबद्धता को दिखाता है. देश की बढ़ती विकास दर में गांवों का योगदान उभरकर दिखाई दे रहा है.

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ठळक मुद्देजी-7 देशों की व्यवस्थाएं औसतन करीब 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं.खर्च करने की क्षमता और इच्छा दोनों में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है.ग्रामीण परिवारों के द्वारा पिछले एक साल में अपनी खपत में वृद्धि की सूचना दी गई है.

इन दिनों प्रकाशित हो रही भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रिपोर्टों के मुताबिक ग्रामीण भारत भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंकते हुए दिखाई दे रहा है. इन रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि भारत ने 2024-25 में 35.77 करोड़ टन अनाज पैदा करके एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड बनाया है. पिछले दस वर्षों में भारत का खाद्यान्न उत्पादन 10 करोड़ टन बढ़ा है. ये खेती में आत्मनिर्भरता और गांवों के विकास की तरफ देश की लगातार बढ़ती प्रतिबद्धता को दिखाता है. देश की बढ़ती विकास दर में गांवों का योगदान उभरकर दिखाई दे रहा है.

जहां इस समय वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर लगभग तीन प्रतिशत है और जी-7 देशों की व्यवस्थाएं औसतन करीब 1.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही हैं, वहीं भारत में वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही में जीडीपी की वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत रही है. गौरतलब है कि हाल ही में 11 दिसंबर को राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के द्वारा जारी आठवें चरण के ग्रामीण आर्थिक स्थिति एवं भावना सर्वेक्षण (आरईसीएसएस) में बताया गया है कि देश  में पिछले एक साल में ग्रामीण परिवारों की आमदनी बढ़ने से खर्च करने की क्षमता और इच्छा दोनों में उल्लेखनीय बढ़ोत्तरी हुई है.

सर्वे के मुताबिक 80 फीसदी ग्रामीण परिवारों के द्वारा पिछले एक साल में अपनी खपत में वृद्धि की सूचना दी गई है. नाबार्ड के सर्वे में यह उभरकर सामने आया है कि अब तक ग्रामीण क्षेत्रों में खपत इतनी तेज रफ्तार से कभी नहीं बढ़ी है. ग्रामीण परिवारों की मासिक आय का 67.3 फीसदी हिस्सा अब खपत पर खर्च हो रहा है, जो सर्वे की शुरुआत से अब तक का सबसे ऊंचा अनुपात है.

ग्रामीण परिवारों में भविष्य को लेकर भी आशावाद है. सर्वे यह भी बताता है कि निवेश और औपचारिक ऋण में भी रिकॉर्ड तेजी दर्ज की गई है जो बढ़ती आय के समानुपातिक मानी जा सकती है.  29.3 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने पिछले एक साल में पूंजीगत निवेश (खेती और गैर-खेती दोनों क्षेत्रों में) बढ़ाया है.

केवल औपचारिक स्रोतों (बैंक, सहकारी संस्थाएं आदि) से कर्ज लेने वाले परिवारों का हिस्सा 58.3 फीसदी हो गया, जो सितंबर 2024 में 48.7 फीसदी था. वस्तुतः ग्रामीण भारत में  बढ़ती क्रयशक्ति वास्तविक आय वृद्धि, जीएसटी सुधार, कम महंगाई और मजबूत सरकारी समर्थन का संयुक्त परिणाम है.

निस्संदेह गांवों में सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं. गांवों में भविष्य की आर्थिक स्थिति को लेकर विश्वास बढ़ने, ग्रामीण गरीबी में कमी, छोटे किसानों की साहूकारी कर्ज की निर्भरता में कमी, ग्रामीण खपत में वृद्धि, किसानों का जीवन स्तर बढ़ने जैसी विभिन्न अनुकूलताओं से ग्रामीण भारत मजबूती की राह पर आगे बढ़ रहा है.

विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण सुधार, बेहतर कृषि उत्पादन, ग्रामीण वेतन वृद्धि, ग्रामीण उपभोग में बढ़ोत्तरी तथा कर सुधार जैसे घटकों के दम पर भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहेगा. इसी तरह स्टेट बैंक ऑफ इंडिया रिसर्च के द्वारा गरीबी पर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीबी में कमी शहरी इलाकों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में अधिक तेजी से हुई है.

जहां वर्ष 2011-12 में ग्रामीण गरीबी 25.7 प्रतिशत और शहरी गरीबी 13.7 प्रतिशत थी, वहीं वर्ष 2023-24 में ग्रामीण गरीबी घटकर 4.86 प्रतिशत और शहरी गरीबी 4.09 प्रतिशत पर आ गई. इसमें कोई दो मत नहीं है कि वर्ष 2019 से शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना देश के करोड़ों छोटे और सीमांत किसानों को वित्तीय मजबूती देते हुए दिखाई दे रही है.

देश के गांवों में अप्रैल 2020 से शुरू की गई पीएम स्वामित्व योजना के तहत ग्रामीणों को उनकी जमीन का कानूनी हक देकर उनके आर्थिक सशक्तिकरण का नया अध्याय लिखा जा रहा है. ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिक ऋण व्यवस्था ने अच्छी प्रगति की है. गांवों में किसानों को औपचारिक ऋण से जोड़ने के मद्देनजर सरकार के द्वारा राष्ट्रीयकृत बैंकों की शाखाओं में वृद्धि महत्वपूर्ण है.

गांवों में बैंक शाखाओं की संख्या मार्च 2010 के 33,378 से बढ़कर दिसंबर 2024 तक 56,579 हो गई. साथ ही किसान क्रेडिट कार्ड, कृषि इंफ्राक्ट्रक्चर फंड, सहकारी समितियों और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं सहायता समूह, ग्रामीण बैंकिंग व्यवस्था आदि प्रभावी भूमिका निभा रहे हैं. लेकिन हमें अभी भी ग्रामीण भारत के विकास और किसानों की प्रगति के लिए कई बातों पर ध्यान देना होगा.

गांवों में साहूकारों और अनौपचारिक ऋणों पर निर्भरता घटाने के लिए बैंक शाखा विस्तार के अलावा नई रणनीति के तहत दूसरे कदम उठाने की जरूरत है.  सरकार ने किसानों को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए जो कानून बनाए हैं, उन कानूनों के पर्याप्त परिपालन पर ध्यान देना होगा.  छोटे ऋणों और कम अवधि के ऋण वाली कई योजनाएं तैयार करके साहूकारों पर निर्भरता कम की जानी होगी.

 ग्रामीण ऋण लागत कम करने और विश्वास बढ़ाने के लिए तकनीक का लाभ उठाया जाना होगा.  औपचारिक ऋणों के लिए बेहतर प्रोत्साहन और डिजिटल उपकरणों से लैस बैंक प्रतिनिधियों को ग्रामीण परिवारों और संस्थानों के बीच समन्वय का माध्यम बनाया जाना होगा. खासतौर से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के अंतिम छोर तक मजबूत गैरबैंकिग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) की भूमिका को प्रभावी बनाना होगा.

गांवों में प्रधानमंत्री स्वामित्व योजना का तेजी से विस्तार करना होगा, छोटे किसानों की संस्थागत ऋण तक पहुंच बढ़ाई जा सकेगी अभी गांवों में गरीबी नियंत्रण, कृषि क्षेत्र में आधुनिकीकरण और उत्पादकता बढ़ाने, ग्रामीण बुनियादी ढांचे के विकास, ग्रामीण स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और नए दौर की कौशलयुक्त शिक्षा तथा ग्रामीण बेरोजगारी चुनौतियों के निराकरण के लिए अधिक रणनीतिक प्रयास किए जाने होंगे.  

उम्मीद करें कि 12 दिसंबर को केंद्रीय कैबिनेट के द्वारा महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लायमेंट गारंटी स्कीम (मनरेगा) का नाम बदलकर ‘पूज्य बापू ग्रामीण रोजगार योजना’ किए जाने और काम के दिनों की संख्या भी 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन किए जाने संबंधी विधेयक को मंजूरी और अब  इसके शीघ्र ही कानून बनने के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में क्रयशक्ति में और वृद्धि होगी. उम्मीद करें कि सरकार के द्वारा खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने,  कृषि विकास और ग्रामीण विकास के और अधिक बहुआयामी उपायों से छोटे किसानों की खुशहाली और गांवों में समृद्धि  बढ़ेगी.  

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