Isro 100th launch: इसरो की सौवीं उड़ान के साथ अब उम्मीदें आसमान पर
By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: February 1, 2025 05:34 IST2025-02-01T05:34:43+5:302025-02-01T05:34:43+5:30
Isro’s 100th launch: इसरो ने कुल 548 उपग्रहों को अंतरिक्ष की विभिन्न कक्षाओं में स्थापित किया है. इनमें से 433 उपग्रह विदेशी हैं.

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Isro’s 100th launch: भारत एक नई उड़ान पर है. उसकी यह नई उड़ान चंद्रमा और मंगल की राह पर है, कारोबार की दिशा में है और साथ में, देश की जनता के सतत विकास के लक्ष्य को साधने वाली है. इस उड़ान में उसके सपनों को साकार करने में अहम भूमिका भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी- इसरो के ताकतवर रॉकेटों की है जो सफलता के नए कीर्तिमान रचते हुए अपनी क्षमता और योग्यता साबित कर रहे हैं.
इसमें सबसे ताजा किस्सा 29 जनवरी का है, जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी रॉकेट के जरिये एक नेविगेशन उपग्रह एनवीएस-2 का सफल प्रक्षेपण किया. उपग्रह प्रक्षेपण के मामले में यह इसरो का 100वां मिशन था.
देश में विकसित नई पीढ़ी के रॉकेटों ने आश्वस्त किया है कि इसरो अब अंतरिक्ष और फिर चांद पर इंसान भेजने के अपने मिशन में ज्यादा देरी नहीं करेगा, अमेरिका और चीन की तरह भारत का भी अपना अंतरिक्ष स्टेशन होगा. साथ ही, इन सफलताओं ने यह भी साबित किया है कि भारी उपग्रहों को स्पेस में भेजने का काम अब तक रूस, अमेरिका जैसे देश करते रहे हैं.
उसमें भारत की योग्यता अब बराबरी तक पहुंचने की है. ताजा प्रक्षेपण की सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि जो कामयाबी इसरो को हासिल करने में 46 साल का लंबा अरसा लग गया, उसे दोहराने में अब पांच-छह साल ही लगेंगे. इस अरसे में इसरो ने कुल 548 उपग्रहों को अंतरिक्ष की विभिन्न कक्षाओं में स्थापित किया है. इनमें से 433 उपग्रह विदेशी हैं.
इनके प्रक्षेपण को कम लागत और सटीकता के साथ प्रक्षेपित करने के लिए विदेशी स्पेस एजेंसियों ने इसरो का सहयोग लेना बेहतर समझा. चूंकि इस संबंध में इसरो अपनी योग्यता प्रमाणित कर चुका है इसलिए बहुत संभव है कि सौ अन्य उपग्रहों का प्रक्षेपण इसरो अगले पांच वर्षों में ही कर डाले और इस तरह 200 उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने का करिश्माई आंकड़ा छू ले.
चंद्रमा, मंगल और सूरज के अनुसंधान में लंबी दूरियां नापने वाली इसरो की ये सफलताएं यह भरोसा भी जगा रही हैं कि इनसे जहां देश की जनता के जीवन-स्तर में सुधार होगा, भारत उस वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में मजबूती से कदम जमा पाएगा, जिसमें अभी उसकी हिस्सेदारी बहुत सीमित है.
रॉकेट साइंस के क्षेत्र में जीएसएलवी प्रक्षेपण वाहनों की कामयाबी का स्तर यदि हम नापना चाहें तो इसकी एक कसौटी अमेरिका के शुरुआती चंद्र मिशन होंगे. करीब 50 साल पहले अमेरिकी स्पेस एजेंसी-नासा ने अपने जिस यान अपोलो-11 से नील आर्मस्ट्रांग को चांद पर भेजा था, उसका वजह 4932 किलोग्राम था.
यानी यदि किसी देश का रॉकेट 5 टन तक का वजन अंतरिक्ष में ले जाने की हैसियत रखता है, तभी उसे चंद्रमा पर इंसान भेजने के बारे में सोचना चाहिए. उल्लेखनीय है कि जीएसएलवी मार्क-3 से इसरो 3423 किलोग्राम वजन का संचार उपग्रह जीसैट-29 पहले ही अंतरिक्ष में भेज चुका है.