ऊर्जा: नागरिकों के अधिकार का विस्तार करती सौर छतें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: November 10, 2025 05:25 IST2025-11-10T05:25:39+5:302025-11-10T05:25:39+5:30

Energy: यूनिवर्सिटी ऑफ डरहम (यूके) के मानद प्रोफेसर डॉ. साइमन पिरानी बताती हैं कि सौर ऊर्जा केवल तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन की संभावना भी अपने भीतर लिए हुए है.

Energy Solar rooftops expand citizens' rights blog Kumar Siddharth | ऊर्जा: नागरिकों के अधिकार का विस्तार करती सौर छतें

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Highlightsआम लोगों की छतों पर उगती छोटी-छोटी सौर क्रांतियां, जो ऊर्जा के विकेंद्रीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं.सरलता, स्थानीय नियंत्रण और सामुदायिक स्वामित्व की क्षमता के कारण, ऊर्जा क्षेत्र में लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ सकता है.पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में भी रूफटॉप सोलर आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है.

कुमार सिद्धार्थ

तेजी से बदलती जलवायु, बढ़ती ऊर्जा मांग और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की वैश्विक होड़ के बीच सौर ऊर्जा अब केवल तकनीकी विकल्प नहीं रही, बल्कि यह आने वाले सामाजिक-आर्थिक संतुलन का पैमाना बनती जा रही है. भारत, चीन और ब्राजील जैसे देश सौर ऊर्जा विस्तार की गति में अमीर देशों- अमेरिका, जापान और जर्मनी- को पीछे छोड़ चुके हैं. पर इस तेज रफ्तार के दो चेहरे हैं एक, ऊंची पूंजी पर खड़ा विशाल कॉरपोरेट सौर उद्योग; दूसरा, आम लोगों की छतों पर उगती छोटी-छोटी सौर क्रांतियां, जो ऊर्जा के विकेंद्रीकरण की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ डरहम (यूके) के मानद प्रोफेसर डॉ. साइमन पिरानी बताती हैं कि सौर ऊर्जा केवल तकनीकी बदलाव नहीं है, बल्कि यह सामाजिक परिवर्तन की संभावना भी अपने भीतर लिए हुए है. रूफटॉप सोलर, अपनी सरलता, स्थानीय नियंत्रण और सामुदायिक स्वामित्व की क्षमता के कारण, ऊर्जा क्षेत्र में लोकतंत्र की नई परिभाषा गढ़ सकता है.

चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा सौर उत्पादक देश है. वहां लगभग 80 प्रतिशत सौर छतों का स्वामित्व सरकारी ऊर्जा कंपनियों के पास है. वर्ष 2022 में इनसे उत्पन्न 120 टेरावॉट-घंटा बिजली नीदरलैंड की सालाना खपत के बराबर रही. पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में भी रूफटॉप सोलर आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन चुका है.

पाकिस्तान में 2024 में 8 गीगावॉट नई सौर क्षमता जुड़ी और 1.5 लाख उपभोक्ता अब अपनी अतिरिक्त बिजली बेच रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका में लोग इसे बार-बार होने वाले बिजली संकट से निजात पाने के साधन के रूप में देख रहे हैं. इन देशों का अनुभव बताता है कि सौर ऊर्जा अब केवल जलवायु का नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा, आत्मनिर्भरता का प्रश्न भी बन चुकी है.

भारत ने 2030 तक 500 गीगावॉट स्वच्छ ऊर्जा का लक्ष्य तय किया है, जिसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है.   भारत में कई स्थानीय प्रयोग उम्मीद की किरण दिखाते हैं. केरल के त्रिशूर जिले में सौर ग्राम पंचायत मॉडल के तहत पंचायतों ने सामूहिक स्वामित्व और साझा रखरखाव व्यवस्था अपनाई है.

गुजरात के आनंद जिले में दुग्ध सहकारी समितियां अब अपने चिलिंग प्लांट सौर ऊर्जा से चला रही हैं. उत्तराखंड, झारखंड और लद्दाख जैसे दूरदराज इलाकों में माइक्रोग्रिड मॉडल के ज़रिये छोटे समुदाय बिना राष्ट्रीय ग्रिड पर निर्भरता के 24 घंटे बिजली पा रहे हैं. भारत सरकार की प्रधानमंत्री सौर रूफटॉप योजना (2024) में 10 लाख घरों को सौर ऊर्जा से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है.

परंतु शुरुआती लागत, रखरखाव और वित्तीय संस्थानों की अनिच्छा अभी भी बड़ी बाधा हैं. दरअसल, सौर ऊर्जा का भविष्य इस सवाल पर निर्भर करेगा कि इसका स्वामित्व किसके पास है. अगर ऊर्जा उत्पादन कॉरपोरेट नियंत्रण में ही रहा, तो यह इंटरनेट की तरह कुछ कंपनियों के प्रभुत्व वाला औजार बन जाएगा.

लेकिन यदि इसका संचालन सहकारी समितियों, नगरपालिकाओं और समुदायों के हाथों में आता है, तो यह ऊर्जा को सार्वजनिक वस्तु बना सकता है, जो नागरिकों के अधिकार का विस्तार होगा, न कि केवल सुविधा का साधन.

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